कविताएँ भी पढ़िए, अच्छे चित्र भी देखिए

WD
ब्लॉग की दुनिया में दो तरह के कवियों के ब्लॉग हैं। एक वे जो वास्तव में कवि हैं। यानी वे कवि जो समकालीन हिदी कविता के साथ ही गैर हिंदी भाषी कविता और समकालीन विश्व कविता के साथ भी ताल्लुक रखते हैं। उसे पढ़ते-समझते हैं। ये कवि देश-दुनिया के हालातों के मद्देनजर यथार्थ को अभिव्यक्त करने के लिए तमाम तरह के जोखिम उठाते हुए अपनी बात को कहने की कोशिश करते हैं। इनके कविता संग्रह छपते हैं, समीक्षाएँ छपती हैं और इन्हें पुरस्कार भी मिलते हैं।

ब्लॉग की दुनिया में दूसरे तरह के वे कवि हैं जो अपने अहसासों को कविता का रूप देने की कोशिश करते हैं। इनमें ज्यादातर निजी दुनिया के दुःख-दर्द हैं। इनमें ज्यादातर वे कवि हैं जो इश्क-ओ-मोहब्बत की कविता करते हैं। इनमें अपनी बात को कहने के लिए बस कहने का अंदाज भर है। कोई बनावट नहीं, कोई श्रृंगार नहीं है। अधिकांशतः भावोच्छवास है। आह है और कराह है।

इनमें से ही एक ब्लॉग है आवारापन...बंजारापन। इसके ब्लॉगर हैं- रजत नरूला। वे अपने परिचय में कहते हैं कि बंद किताब-सी जिंदगी मेरी, बेरूखा-सा मेरा इतिहास। जाने क्यों अतीत के पन्ने जला रहे हैं मेरा आज। जाहिर है अपने इस परिचय से ही उनकी कविता के स्वभाव के बारे में एक सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

लेकिन इस ब्लॉग पर सिर्फ कविताएँ ही नहीं हैं, यहाँ गीत भी है, गजल भी है। और इसके साथ ही कोई उस कविता, गीत, नज्म या गजल के साथ एक सुंदर-सा चित्र है। यानी यह ब्लॉग सिर्फ शब्द ही नहीं रंग और रेखाओं के साथ भी लुभाने की एक कोशिश करता नजर आता है। इनमें कई बार फोटो होता है। कई बार कोई पेंटिंग होती है और कई बार कोई रेखाचित्र या स्कैच होता है। जाहिर है यह पढ़ने के साथ ही देखने के लिए भी आमंत्रित करता है।

मिसाल के तौर पर उनकी एक कविता तलाश ली जा सकती है। इस कविता में रजत कहते हैं कि -
जाने क्या ढूँढ रहा हूँ मैं
जाने किस से मिलने की आस है
सब कुछ तो है
फिर भी एक तलाश है।

इस कविता के साथ ही उन्होंने एक बहुत ही दिलचस्प फोटो लगाया है। इसमें एक भवन की गोल खिड़की से एक आदमी अपना शरीर बाहर निकालकर दूरबीन से कुछ देखने की कोशिश करता दिखाया गया है। कहने की जरूरत नहीं कि यह कविता के शीर्षक और भावों को ज्यादा बेहतर ढंग से अभिव्यक्त करता है। यानी कविता में जो कहा जा रहा है उसे यह चित्र ज्यादा प्रभावी तरीके से व्यक्त कर जाता है। यहाँ कविता के साथ चित्र दिए गए हैं लेकिन कभी-कभी किसी खूबसूरत चित्र पर ही कोई कविता चस्पाँ कर दी गई है। यहाँ कविताओं के साथ चित्र ज्यादा दिलचस्पी जगाते हैं।

उदाहरण के लिए एक कविता ली जा सकती है। कविता का शीर्षक है- अब पूछो, तब पूछो, जब पूछो। यह कविता दौड़ती-भागती जिंदगी में लोगों के पास वक्त की कमी पर व्यंग्य भी करती है और थोड़ा-सा दुःख भी जताती है कि अब लोगों के पास मिलने-जुलने का वक्त ही नहीं है। यह हमारे इस जीवन की वक्त नहीं है की प्रवृत्ति पर व्यंग्य करती है। लेकिन यहाँ फिर इस कविता के साथ एक खूबसूरत चित्र दिया गया है। इसमें नीले खुले आसमान के बीच एक हथेली में पिघलती हुई घड़ी दिखाई गई है। जाहिर है यह कविता में कही गई बात को प्रतीकात्मक ढंग से बताती है और यहाँ विश्वविख्यात स्पैनिश चित्रकार सल्वाडोर डाली के चित्र को भी याद किया जा सकता है जिसमें उन्होंने पिघलती घड़ियाँ बनाई थीं।

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रजन कविता के साथ ही जो चित्र लगाते हैं उनमें पेंटिंग भी लगाई जाती है। जैसे उनकी एक कविता को तो मुझे सोचना पड़ा में एक चिंतनरत आदमी की खूबसूरत पेंटिंग लगाई गई है। इसमें पीले औऱ नीले रंगों का खूबसूरत इस्तेमाल हुआ है। इसी तरह एक अन्य रचना में सुंदर फोटो लगाया गया है। इसमें एक आदमी पेड़ के नीचे और बहती नदी के सामने बैठा दिखाया गया है। यह सुंदर और नीरव प्रकृति के बीच अकेले आदमी की मौजूदगी के अहसास को व्यक्त करती है। बीतते समय को बताती है। यह कविता लम्हा लम्हा कहती है-

लम्हों लम्हों में गुजरती जिंदगी
लम्हा लम्हा तेरे इंतजार में गुजरता मैं
लम्हा लम्हा तेरे साथ को याद करता
लम्हा लम्हा तेरे साथ को तरसता मैं....

इसी तरह से आखिरी खत कविता में एक खत के बारे में कहा गया है कि जब मुझे दफनाया जाए तो मेरे साथ ही इस खत को भी कफन में थोड़ी-सी जगह दे दी जाए। इसी कविता के साथ एक श्वेत-श्याम रेखाचित्र भी लगाया गया है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यहाँ कविताएँ हैं। कविताओं में पानी और हवा की तरह बहती सहज-सरल इच्छाएँ और भावनाएँ हैं। और इन्हीं इच्छाओं-भावनाओं को और अच्छे ढंग से व्यक्त करते चित्र हैं।

ये रहा इसका पता-
http://rajatnarula.blogspot.com/