ग्रामीण युवा रोजगार के क्रांति-द्वार

एक समय था जब योरप े रईस खानदान की लड़कियों को स्विट्जरलैंड स्थित 'कौशल निखारक' (फिनिशिंग स्कूल) स्कूलों में राजपरिवार के योग्य-दक्ष दुल्हन बनाने हेतु भेजा गया था। इन स्कूलों में उन्हें फूलों की साज-सज्जा से लेकर खान-पान के तौर-तरीकों की ट्रेनिंग दी जाती थी।

इसी से मिलता-जुलता परिदृश्य भारत में भी दिखाई देने लगा है, लेकिन अंतर यह है कि यहाँ स्थित सॉफ्टवेयर कंपनियों द्वारा अपूर्व पश्चाताप और हीनभावना से ग्रसित ग्रामीण क्षेत्रों के युवा किशोर-किशोरियों के लिए वृहद पैमाने पर कौशल निखारक स्कूल स्थापित किए जा रहे हैं।

इन संस्थानों में ग्रामीण क्षेत्रों के किशोर-किशोरियों को संवाद करने, खान-पान तथा शिष्टाचार के आधुनिक तरीकों की ट्रेनिंग दी जाएगी। इनमें प्रमुख हैं- इन्फोसिस, विप्रो, नास्काम, भारतीय उद्योग परिसंघ, चेन्नाई की कांग्नीज टेक्नोलॉजी सोलूशंस और केंद्रीय माध्यमिक बोर्ड (सीबीएसई) आदि।

निःसंदेह कुछेक सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियाँ और कुछेक औद्योगिक घराने अपने यहाँ रोजगार देने के पूर्व भी छात्रवृत्ति देकर ट्रेनिंग की व्यवस्था कर रहे थे, लेकिन बेरोजगार ग्रामीण युवाओं की ओर उनका विशेष ध्यान नहीं गया। यह बेरोजगार वर्ग मुख्यतः दो प्रकार का होता है- एक रोजी की तलाश में और दूसरा शिक्षा की तलाश में। गाँवों में प्रायः रोजगार संबंधी जानकारियों का सर्वथा अभाव रहता है।

दूरदराज देहातों में सूचना केंद्र या रोजगार दफ्तर जैसी कोई संस्था नहीं होती है। दूर होने के कारण या संकोच के कारण ग्रामीण बेरोजगार बहुधा अपने गाँव से बाहर नहीं निकल पाते। इनकी अंतर्वेदना और भी गहरी हो जाती है जब केवल शहरी युवाओं को कुशल समझकर रोजगार देने वाले संस्थान उन्हीं को तरजीह देते हैं। गाँव में रहने के कारण उनकी अँगरेजी भाषा इतनी परिष्कृत नहीं होती कि वे लोगों से अँगरेजी में बात कर सकें या रोजगार क्षेत्रों से जुड़े रोजमर्रा के कार्यों में दक्षता प्राप्त कर सकें।

इस वर्ग के पास न तो इतने साधन हैं और न ही इतना समय कि वह भूमंडलीकरण और उदारवाद की प्रतिस्पर्धा में पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके। दुर्भाग्य से देश में ग्रामीण युवाओं के लिए स्पष्ट नीति निर्देश भी नहीं।

इन्हीं कमियों को दूर करने के लिए हाल ही में इन्फोसिस कंपनी ने महाराष्ट्र में कोल्हापुर की शिवाजी यूनिवर्सिटी और धारवाड़ की कर्नाटक यूनिवर्सिटी के साथ अनुबंध कर 12वीं कक्षा पास करने वाले विद्यर्थियों के लिए संवाद दक्षता हासिल करने की व्यवस्था की है। इन्फोसिस का लक्ष्य है कि इन अनुबंधों द्वारा आगामी दो-तीन वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों के एक लाख किशोर-किशोरियों को रोजगार-बाजार के लिए तैयार किया जाए।

सामान्य तौर पर ऐसे कौशल निखारक स्कूलों में प्रशिक्षित विद्यार्थी रोजगार योग्य होंगे ही, साथ ही कंपनियों में उनकी निष्ठा अधिक समय तक बनी रहेगी। इसी प्रकार विप्रो के अध्यक्ष अजीम प्रेमजी के दक्षता निखारक स्कूल की अवधारणा के अनुसार 10वीं या 12वीं कक्षा पास ग्रामीण विद्यार्थियों को छह महीने का प्रशिक्षण दिए जाने के साथ-साथ अँगरेजी भाषा का ज्ञान भी दिया जाएगा।

वर्तमान में विप्रो सोलह राज्यों में ऐसे पच्चीस लाख ग्रामीण विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर रहा है। मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही दक्षता निखारक स्कूल छिंदवाड़ा में पिछले छह महीनों से कार्यरत है।

ऐसे प्रशिक्षित ग्रामीण युवा जब दक्षता निखारक स्कूलों से प्रशिक्षित होकर बाहर जाएँगे, तब नई रोजगार क्रांति की शुरुआत होगी। नास्काम कंपनी भी कौशल निखारक स्कूल स्थापित करने में पीछे नहीं रही है। उसने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ मिलकर नेशनल स्कूल ऑफ टेक्नोलॉजी में तकनीकी और कौशल दक्षता प्राप्त करने हेतु रूड़की, त्रिचि, वारंगल, जयपुर, दुर्गापुर, कोझीकोड, कुरुक्षेत्र और सूरतकल में कौशल निखारक स्कूल स्थापित किए हैं।

इसी उद्देश्य से भारतीय उद्योग परिसंघ के पुणे चेप्टर ने भी सिमबायोसिस इंग्लिश लर्निंग संस्थान के साथ मिलकर सामाजिक रूप से पिछड़े और दलित वर्गों के विद्यार्थियों के लिए तीन महीनों की प्रशिक्षण अवधि निर्धारित की है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने भी बारहवीं कक्षा पास करने वाले विद्यार्थियों के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रम और सामान्य स्वास्थ्य देखभाल का विषय सेकंडरी स्कूल स्तर पर शामिल करने का निर्णय लिया है।

इस पाठ्यक्रम की शुरुआत फिक्की के साथ मिलकर संयुक्त रूप से की जाएगी, जिसके तहत छात्रों को रोगियों की देखभाल और डॉक्टरों और चिकित्सा पेशेवरों की मदद करने में प्रशिक्षण दिया जाएगा तथा छात्रों को स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी सभी आवश्यक पहलुओं से अवगत कराया जाएगा। सफल छात्रों को विभिन्न अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में नौकरी मिल सकती है। वे रोगियों की देखभाल और स्वागत कक्ष में काम भी संभाल सकते हैं। ऐसे पाठ्यक्रम की शुरुआत वैकल्पिक विषय के रूप में की जाएगी। छात्रों को तीन प्रशिक्षण सत्रों की परीक्षा देनी होगी। मौजूदा समय में दसवीं कक्षा पास विद्यार्थी बगैर किसी तरह की टे्रनिंग या कोचिंग के नौकरी कर रहे हैं।

आशा है कि इन प्रयासों से सन्‌ 2010 तक सूचना प्रौद्योगिकी के लिए 10 लाख किशोर-किशोरियों को रोजगार के अवसर मुहैया कराए जा सकेंगे। नास्काम और मैंकेंजी द्वारा किए गए नए अध्ययन के अनुसार 2010 तक अकेले सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में 15 लाख प्रशिक्षित लोगों की आवश्यकता होगी। वर्तमान में प्रमुख समस्या रोजगार योग्यता की है। केवल 30 प्रतिशत इंजीनियर ही सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के लिए योग्य हैं।

दूसरी ओर केवल 20 प्रतिशत सामान्य स्नातक ही सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में दस्तक दे पाते हैं। ऐसे कौशल निखारक स्कूल भारतीय समाज को ज्ञान का समाज तो बनाएँगे ही, साथ ही ज्ञान के विकास के साथ नए क्षितिज पर भी पहुँचाएँगे। प्रशिक्षित ग्रामीण युवा किसानों, मजदूरों और ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक सेवा क्षेत्रों को ज्ञान समाजों में परिवर्तित करने में सहायक होंगे तथा अन्वेषण और ज्ञान के प्रति अनुकूल वातावरण का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाएँगे।

दरअसल, आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी बहुमुखी ग्रामीण बौद्धिक संपदा के प्रति समाज को जाग्रत करें और सरकार के निर्णयों और नीतियों को प्रभावित करें। ज्ञान अर्जित करने तक ही अपने प्रयासों को सीमित नहीं रखें, बल्कि भारतीय युवा पीढ़ी को अपूर्व पश्चाताप और हीनभावना से बचने की बुद्धिमानी विकसित करें। इस दिशा में कौशल निखारक स्कूल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

लेकिन यह क्रांति सार्थक और सफल तब ही होगी, जब देश के सभी बड़े औद्योगिक घराने और सेवा क्षेत्र के संस्थान बड़े पैमाने पर दसवीं और बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण ग्रामीण युवाओं के लिए प्रशिक्षण संस्थाएँ स्थापित करेंगे। इस प्रकार के प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करने से जहाँ एक ओर उद्योग और सेवा क्षेत्र से जुड़े संस्थानों को मानव संसाधन विकास का प्रत्यक्ष लाभ होगा, वहीं दूसरी ओर सामाजिक स्तर पर नई सामाजिक प्रौद्योगिकी उभरेगी।


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