ब्‍लॉग-चर्चा : कस्‍बे में बसे रवीश कुमार

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ब्‍लॉग चर्चा का सफर जारी है और इस सफर में हमारे साथ नए-नए हमराह जुड़ते जा रहे हैं। इस बार हमारी यह यात्रा जाकर रुकी है, रवीश के कस्‍बे में। कस्‍बे में कुछ देर रुके, ठहरें, कस्‍बे की बसाहट का जायजा लें, उस पर कुछ बतियाएँ और फिर आगे बढ़ें, अगले पड़ाव की ओर। सो इस बार - रवीश कुमार का ‘कस्‍ब

रवीश एन.डी.टी.वी. इंडिया के जाने-माने रिपोर्टर हैं और अपनी खास तरह की बेबाक और सधी हुई रिपोर्टों के लिए जाने जाते हैं। अभी हाल ही में उन्‍हें बेहतरीन रिपोर्टिंग के लिए प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया है। रवीश ने जब कस्‍बा नाम से अपना ब्‍लॉग शुरू किया तो उनकी रिपोर्टों के प्रशंसकों को कुछ अच्‍छा पढ़ने का एक और माध्‍यम मिल गया।

आते ही रवीश ने शहरों और कस्‍बों के रोमांस पर एक बहस छेड़ दी :

‘कस्‍बे ठगे गये बेवकूफ किस्म की जगह से ज़्यादा नहीं। इसीलिए बड़े शहर के लोग कस्बों के लोगों को बेवकूफ समझते हैं। उन्हें एक तरह से सेकेंड हैंड माल का थर्ड हैंड उपभोक्ता समझते हैं। साहित्य न होता तो कस्बों की बात ही नहीं होती। मगर समस्या वही कि इतना रोमांटिक कर दिया गया कि कस्बे तमाम तरह की बुराइयों से दूर स्वर्ग जाने के रास्ते में हाल्ट की तरह लगते हैं।’

ब्‍लॉग चर्चा का सफर जारी है और इस सफर में हमारे साथ नए-नए हमराह जुड़ते जा रहे हैं। इस बार हमारी यह यात्रा जाकर रुकी है, रवीश के कस्‍बे में। कस्‍बे में कुछ देर रुके, ठहरें, कस्‍बे की बसाहट का जायजा लें, उस पर कुछ बतियाएँ और फिर आगे बढ़ें.....
यह एक खास किस्‍म की बेबाकी से बहुत सपाट, लेकिन उतने ही मारक तरीके से अपनी बात कहने की शुरुआत थी। फिर रवीश पर ब्‍लॉगमुग्‍धता का भी बुखार चढ़ा

खैर, रवीश को ब्‍लॉग शुरू किए अभी ज्‍यादा वक्‍त नहीं गुजरा है। वे अब लगभग डेढ़ सौ पोस्‍ट लिख चुके हैं और हर पोस्‍ट उनकी उसी बेबाकी और स्‍पष्‍टवादिता का बेहतरीन उदाहरण है। रवीश चाहे प्रेमचंद पर संस्‍मरण लिखें, लिज हर्ले की शादी में न बुलाए जाने का दुख प्रकट करें या शकीरा की कमर को उत्‍तरायण से दक्षिणायन होते देखें, हर जगह वह पैनी नजर काम कर रही होती है, जो ऊपरी सतह पर दिखती चीजों को कुरेदकर भीतर से कुछ और निकाल लाती है, और बहुत विश्‍वसनीय और तार्किक ढंग से उसे आपके सामने पेश करती है

चुनावी रिपोर्टिंग के दौरान लिखी गई पोस्‍टें भी बहुत बेहतरीन हैं। कस्‍बे की लोकप्रियता का अंदाजा इस पर आने वाली प्रतिक्रियाओं से ही लगाया जा सकता है। कस्‍बे में फ्रिज पर लिखे गए संस्‍मरण - ‘फ्रिज अनंत फ्रिज कथा अनंत’ काफी रोचक था। खुद रवीश की भी पसंदीदा पोस्‍ट फ्रिज-कथा ही है। वे लिखते हैं -

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‘एक दिन एक ऐसे रिश्तेदार का आना हुआ, जिनके पास कई साल से फ्रिज़ था। उन्होंने फ्रिज़ खोल दिया। उसमें सिर्फ बोतल भरी थी। बर्तन-कटोरे में पानी था। वो हँसने लगे। बोले, आप लोगों को फ्रिज़ में क्या रखा जाता है, यही नहीं मालूम। उन्हें हम पर हँसने की आदत थी। सो बुरा लगा। फ्रिज़ का नहीं होना एक सामाजिक-आर्थिक अंतर था, मगर फ्रिज़ में किसी चीज़ का नहीं होना अलग सामाजिक आर्थिक अंतर। फ्रिज के खालीपन ने हमारी हैसियत एक बार फिर तय कर दी। या गिरा दी। हम सब आहत थे। ताजा खाना खाने वाले हम सब फ्रिज़ की गोद भऱने के लिए कुछ-कुछ बचाने लगे

हिंदी ब्‍लॉगों की दुनिया का निरंतर विस्‍तार हो रहा है। नए-नए लोग जुड़ रहे हैं और बहुत कुछ लिखा जा रहा है। रवीश इन सबको लेकर काफी उत्‍साहित हैं। उनका मानना है कि आधुनिक तकनीक ने हमें एक बहुत शानदार माध्‍यम प्रदान किया है, और इसका इस्‍तेमाल बड़े पैमाने पर लोगों तक अपनी बात पहुँचाने और कुछ सार्थक बहसों और विमर्शों का सूत्रपात करने के लिए किया जाना चाहिए।

रवीश कहते हैं कि ब्‍लॉग में आपके ऊपर कोई सेंसरशिप नहीं होती, कोई आपके लिखे में काट-छाँट नहीं करता। आप खुद ही अपने मालिक हैं, अपने संपादक हैं। आपको कोई आदेशित करने वाला नहीं कि ये करो, वो न करो। किसी की जी-हुजूरी की जरूरत नहीं। इस स्‍पेस में आप बिल्‍कुल आजाद हैं, अपने तरीके से जीने के लिए।
हिंदी ब्‍लॉगों की दुनिया का निरंतर विस्‍तार हो रहा है। नए-नए लोग जुड़ रहे हैं और बहुत कुछ लिखा जा रहा है। रवीश इन सबको लेकर काफी उत्‍साहित हैं। उनका मानना है कि आधुनिक तकनीक ने हमें एक बहुत शानदार माध्‍यम प्रदान किया है।


ब्‍लॉगिंग को लेकर रवीश का जोश देखते बनता है। उनका मानना है ब्‍लॉगिंग के माध्‍यम से हिंदी भाषा का विस्‍तार होगा और हिंदी में नए अच्‍छे लेखक भी पैदा होंगे। प्रिंट मीडिया में अब नए लेखकों को पैदा करने की ताकत नहीं बची है, लेकिन ब्‍लॉग उस अभाव को पूरा करेंगे। यहाँ तक की ब्‍लॉग साहित्यिक पत्रिकाओं का भी स्‍थान ले सकते हैं। रवीश हिंदी ब्‍लॉगिंग को लेकर काफी आशान्वित हैं, हालाँकि उसके खतरों पर भी निगाह रखते हैं

मोहल्‍ला, अजदक और अनामदास का पोथा रवीश के पसंदीदा ब्‍लॉग हैं। रवीश कहते हैं कि अभी तक हिंदी ब्‍लॉगिंग में अधिकांश निजी और संस्‍मरणात्‍मक चीजें ही लिखी जाती रही हैं, जबकि ऐकेडमिक बातों को भी यहाँ स्‍पेस मिलना चाहिए। इतिहास के गंभीर विषयों पर उम्‍दा लेखकीय सामग्री, तथ्‍य, विचार और घटनाएँ ब्‍लॉग में आने चाहिए। इससे ब्‍लॉग की व्‍यापक सामाजिक उपयोगिता बढ़ेगी और ज्ञान की उपलब्‍धता भी।

‘कस्‍ब’ के माध्‍यम से रवीश का सफर जारी है। एक ऐसा सफर, जिसने हिंदी ब्‍लॉगिंग को एक दिशा और सार्थकता प्रदान की है। ढेरों लोग इस सफर के सा‍थी हैं। कस्‍बे की बसाहट और चमक-दमक बढ़े, लोगों की आवाजाही बढ़े, ऐसी उम्‍मीद की जानी चाहिए।


ब्‍लॉग - कस्‍ब
URL - http://naisadak.blogspot.com/