यह तमाचा लोकतंत्र के मुँह पर है

-मधुसूदआनंद

महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के नवनिर्वाचित विधायक अबू आजमी चाहे कितने ही विवादास्पद क्यों न हों, विधानसभा में हिन्दी में शपथ लेने की कोशिश करके उन्होंने लाखों हिन्दीभाषियों का दिल जीत लिया है।

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यही नहीं, उन्होंने राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के गुंडा-राज को भी चुनौती देने का साहस किया है और बदले में जो तमाचा खाया है, उसकी प्रतिध्वनि देशभर के लोकतंत्र-कामियों को इस बारे में एक स्थायी कार्रवाई के बारे में सोचने के लिए विवश करेगी।

राज ठाकरे की ओर से धमकी दी गई थी कि सभी विधायक मराठी भाषा में ही शपथ लें, अन्यथा अंजाम के लिए तैयार रहें। अबू आजमी ने इसे स्वीकार किया। कुछ समय पहले राज ने एक समारोह में जया बच्चन के हिन्दी बोलने के बाद फिल्म "गुड्डी" की इस नायिका को "बुड्ढी" कहा था और धमकी दी थी। अमिताभ बच्चन को उनके यहाँ जाकर माफी माँगना पड़ी थी, क्योंकि कोई भी शांतिप्रिय आदमी ऐसे लोगों से पंगा नहीं लेना चाहता।

इससे पहले मुंबई में रेलवे भर्ती बोर्ड के लिए परीक्षा देने आए उत्तर भारत के आवेदकों-खासकर बिहारियों को सेना-समर्थकों ने बुरी तरह पीटा था। जाहिर है राज ठाकरे की सेना महाराष्ट्र में ऐसा राज कायम करना चाहती है, जिसमें हर गैर-मराठी का प्रदेश में जीना मुश्किल हो जाए और दूसरे प्रदेशों के लोग महाराष्ट्र आने से पहले दस बार सोचें।

मराठी-अस्मिता के नाम पर अंततः यह कोशिश देश को तोड़ने की कोशिश ही साबित होगी। संविधान सभी को किसी भी मान्य भाषा में शपथ लेने की अनुमति देता है। फिर हिन्दी तो इस देश की राष्ट्रभाषा है।

महाराष्ट्र में सचमुच में कोई भाषा का प्रश्न है। राज ठाकरे का गणित यह है कि वे अपने आक्रामक तेवरों से भविष्य में अपने चाचा बाल ठाकरे की राजनीतिक जमीन पर कैसे कब्जा करें, जिन्होंने अपने पुत्र उद्धव को अपना राजनीतिक वारिस बना दिया है।
अबू आजमी कहते हैं कि मराठी उनकी मातृभाषा भी नहीं है, लेकिन विधानसभा की कार्रवाई में सक्रिय हिस्सेदारी के लिए उन्होंने मराठी सीखने में भी रुचि दिखाई है। इसलिए उन्हें मराठी में ही शपथ लेने को बाध्य करना साफ-साफ गुंडागर्दी ही है, जिसका सबूत एमएनएस के विधायकों ने लगे हाथ विधानसभा में दे भी दिया।

उनका निंदनीय आचरण बताता है कि वे संसद (विधानसभा) और सड़क में कोई भेद नहीं करते और संवाद के बजाय शक्ति से अपनी बात मनवाना चाहते हैं। उन्हें विधानसभा और उसके अध्यक्ष की गरिमा से कोई भी मतलब नहीं और न ही उन्हें इस बात की कोई परवाह है कि शेष सारी पार्टियाँ उनकी बात से सहमत नहीं हैं। इसलिए उनके चार विधायकों का निलंबन उचित है। ऐसे हिंसक आचरण के लिए तो अगर सारे के सारे एमएनएस विधायकों को भी निलंबित करना पड़े तो देश उसका स्वागत ही करेगा।

ऐसा जरा भी नहीं लगता कि महाराष्ट्र में सचमुच में कोई भाषा का प्रश्न है। राज ठाकरे का गणित यह है कि वे अपने आक्रामक तेवरों से भविष्य में अपने चाचा बाल ठाकरे की राजनीतिक जमीन पर कैसे कब्जा करें, जिन्होंने अपने पुत्र उद्धव को अपना राजनीतिक वारिस बना दिया है।

बाल ठाकरे ने जैसे दक्षिण भारतीयों के खिलाफ आंदोलन किया था, वैसे ही राज ठाकरे उत्तरी भारतीयों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। अबू आजमी को इस समय उत्तरी भारत के लोगों का प्रतीक माना जा सकता है।

मुंबई में तमाम छोटे-छोटे काम करने के लिए उत्तर भारत के लोग दशकों से रह रहे हैं। राज ठाकरे मुंबई, ठाणे और पुणे जैसे शहरों में नौजवान मराठियों की बेरोजगारी और सपनों को भुनाने के लिए उत्तर भारतीयों का दानवीकरण कर रहे हैं, मानो उन्होंने ही उनकी रोटी छीनी हो। ताज्जुब होता है कि महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य में राज ठाकरे कैसे समाज में विभाजन कराने में सफल हो रहे हैं।

महाराष्ट्र और उत्तर भारत की संस्कृति एक-दूसरे के विपरीत कभी नहीं रहीं। मराठी के संत कवियों की रचनाएँ उत्तर भारत में प्रेम से गाई जाती हैं। आज भी नासिक, शिर्डी, पंढरपुर आदि के लिए उत्तर भारत में आदर है। दूसरी तरफ नागपुर हिन्दी भाषा के प्रचार का प्रमुख केंद्र रहा है। मुंबइया सिनेमा और संगीत जो हिन्दी में है, भारत को जोड़ने वाला गाढ़ा गोंद है।

इसलिए राज ठाकरे जो कुछ कर रहे हैं, क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के लिए कर रहे हैं। मगर इसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है। अबू आजमी का राजनीतिक आधार भी कोई कम नहीं है और जिस तरह उन पर हाथ उठाया गया है, उससे यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना साम्प्रदायिक मोड़ भी ले सकती है। इस समय सभी लोकतांत्रिक शक्तियों का दायित्व बढ़ जाता है जिन्हें एक स्वर में बताना होगा कि इस देश में किसी भी अस्मिता के नाम पर तानाशाही नहीं चल सकती। (नईदुनिया)

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