केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार को दी श्रद्धां‍जलि, कई नेताओं ने जताया दु:ख

लोकप्रिय नेता और संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार जी का सोमवार सुबह आकस्मिक निधन हो गया है। सिर्फ 59 वर्ष की आयु में एक हंसमुख नेता का कैंसर की वजह से चले जाना भला किसको नहीं खलेगा। संसद में हमेशा रूल बुक लिए बैठे रहते थे, जैसे ही संसद में कुछ नियमों के अनुसार नहीं हो रहा होता था, तुरंत टोक देते थे चाहे किसी भी दल से हो। वहीं गंभीर से गंभीर विषयों पर बेबाक राय और गतिरोध की स्तिथि में अपने चिर परिचित मुस्कान और व्यवहार से रास्ता खोज लेते थे।
 
सदन को निर्विरोध और नियमों के अनुसार चलाने का दायित्व संसदीय कार्यमंत्री का होता है जिस दायित्व का इन्होंने बखूबी निर्वाह किया। इनकी गिनती सुलझे हुए और विद्वान नेताओं में होती है जिनकी कमीं संसद के गलियारों में हमेशा खलेगी। बेंगलूरु साउथ से लगातार 6 बार जीत हासिल करने वाले अनंत कुमार पैनक्रियाटिक कैंसर से जूझ रहे थे। इनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि भी कर्नाटक ही थी।
 
अनंत कुमार का जन्म 22 जुलाई 1959 को बेंगलुरु में हुआ था। विद्यार्थी जीवन से ही वह राजनीति में सक्रिय रहे, शुरुआत छात्र राजनीति से की। साल 1982 से 1985 तक वह कर्नाटक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सचिव रहे। इसके बाद भाजपा की सदस्यता लेकर सक्रिय राजनीति में अपना पदार्पण किया। साल 1987-88 में वह कर्नाटक बीजेपी के सचिव बने। इनकी कर्मठता और पार्टी के प्रति समर्पण को देखते हुए उन्हें शीघ्र ही अति महत्वपूर्ण पद दिया गया। 1988-95 तक वह कर्नाटक बीजेपी में महासचिव के पद पर रहे।
 
साल 1996 उनकी राजनैतिक जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया, जब साल 1996 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की। मगर ये वो दौर था जब अस्थिर राजनीति और कमजोर गठबंधनों का दौर था अतः जल्द ही एक बार फिर चुनाव हुए और साल 1998 में वह दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीते। मगर इस बार इनका रूतबा सिर्फ सांसद का ही नहीं बल्कि मंत्री की हैसियत से भी बढ़ा। 
 
मार्च 1998- अक्टूबर 1999 तक वह यूनियन कैबिनेट मिनिस्टर, सिविल एविएशन रहे। मगर जल्द ही एक बार फिर चुनाव हुए जब 13 महीने के अल्पाविधि में वाजपेयी सरकार को अविश्वास प्रस्ताव के चलते सरकार से इस्तीफा देना पड़ा, मगर तीसरी बार फिर भाजपा की सरकार मजबूत गठबंधन के रूप में उभरी। साल 1999 में वह तीसरी बार सांसद चुने गए। इस बार एक बार फिर वाजपेयी जी ने उन्हें महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी। फरवरी 2000- सितंबर 2000 तक यूनियन कैबिनेट मिनिस्टर, टूरिज्म एंड कल्चर रहे और उन्होंने बखूबी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह किया। 
 
उनकी लगन और मेहनत को देखते हुए भाजपा ने 26 जून 2003 को कर्नाटक बीजेपी के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया। अगले लोकसभा चुनाव यानी साल 2004 में चौथी बार लगातार लोकसभा सांसद चुने गए, साथ ही नवंबर 2004 में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए। मगर जीत का ये सिलसिला थमा नहीं, साल 2009 और 2014 में भी उन्होंने अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा यानी 6 बार लोकसभा सदस्य बने रहे। वर्तमान में वे केंद्र सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे, साथ ही रसायन और उवर्रक मंत्री का भी महत्वपूर्ण पद मिला।
 
सोमवार 13 नवंबर 2018 को बेंगलुरु में उन्होंने आखिरी सांस लीं। पिछले कुछ समय से उनका इलाज चल रहा था। उनके सम्मान में कर्नाटक में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित हुआ है, जबकि सोमवार को स्कूल, कॉलेज और सरकारी कार्यालयों में अवकाश रहा।
 
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और पीएम मोदी समेत तमाम नेताओं ने दु:ख जताया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लिखा, 'केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ सांसद अनंत कुमार के निधन की खबर सुनकर दुख हुआ। एक नेता के रूप में यह बड़ी क्षति है और खासतौर से कर्नाटक के लोगों के लिए एक बड़ी त्रासदी।  मेरी उनके परिवार, साथियों और उनसे जुड़े अनगिनत लोगों के साथ संवेदनाएं हैं।’
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय मंत्री और अपनी कैबिनेट के साथी अनंत कुमार के निधन पर दु:ख जताया है। उन्होंने लिखा, 'अनंत कुमार एक बेहतरीन नेता थे जो अपने युवा काल में ही सार्वजनिक जीवन में उतर आए थे। उन्होंने पूरी निष्ठा और लगन के साथ समाज की सेवा की। उन्हें उनके अच्छे कार्यों के कारण हमेशा याद किया जाएगा।'
 
केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा ने उनके निधन पर शोक जताते हुए ट्वीट किया, 'यकीन नहीं हो रहा कि मेरे दोस्त मेरे भाई अनंत कुमार नहीं रहे। 
 
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने शोक जताते हुए लिखा, 'अनंत कुमार के निधन की खबर सुनकर बेहद दु:ख हुआ। उन्होंने बीजेपी की लंबे अरसे तक सेवा की। बेंगलुरु उनके दिल और दिमाग में हमेशा रहा। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें और उनके परिवार को साहस दें।'
 
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लिखा, 'अनंत कुमार के निधन की खबर सुनकर सदमा लगा। बेहद दु:ख हुआ कि हमारे वरिष्ठ साथी अनंत कुमार जी अब हमारे साथ नहीं रहे। वे एक अनुभवी सांसद थे। उन्होंने कई क्षमताओं में देश की सेवा की। लोगों का कल्याण करने का उनका जज्बा और निष्ठा सराहनीय रहा। उनके परिवार के साथ मेरी संवेदनाएं हैं।'
 
आज दिन भर उनको श्रद्धांजलि देने वालो का तांता लगा रहा, हर कोई उन्हें अपने-अपने तरीकों से याद करता रहा। वहीं उनके समर्थकों और चाहने वालों में शोक की लहर दौड़ गई है, उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा उनकी अंतिम विदाई में उमड़ी भीड़ से लगाया जा सकता है।
 
बहरहाल इनके जाने से जो क्षति देश को हुई है, उसकी भरपाई संभव नहीं है। संसद के गलियारों में उनकी कमी हमेशा खलेगी।

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