अटल बिहारी वाजपेयी के 10 चर्चित भाषण अंश : जब सुनने वाले के खड़े हो गए रोंगटे
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लंबे समय से बीमार रहने के कारण अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में भर्ती रहे, जहां उनका लंबा इलाज चला और 16 अगस्त 2018 को 93 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। आओ जानते हैं अटल बिहारी वाजपेयी के 10 चर्चित भाषण अंश।
1. अटल बिहारी वाजपेयी 1957 में पहली बार सांसद हो गए थे। एक बार नेहरू ने जनसंघ की आलोचना की तो जवाब में अटल ने कहा, "मैं जानता हूं कि पंडित जी रोज़ शीर्षासन करते हैं. वह शीर्षासन करें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन मेरी पार्टी की तस्वीर उल्टी न देखें. इस बात पर नेहरू भी ठहाका मारकर हंस पड़े।"
2. लखनऊ में 5 दिसंबर 1992 को अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बड़ी रैली को संबोधित किया था- सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है उस पर मैं कहना चाहता हूं कि वो कारसेवा रोकता नहीं है। सचमुच में सुप्रीम कोर्ट ने हमें अधिकार दिया है कि हम कार सेवा करें। रोकने का तो सवाल ही नहीं। कल कारसेवा करने अयोध्या में सर्वोच्च न्यायालय के किसी निर्णय की अवहेलना नहीं होगी। कारसेवा करने सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान किया जाएगा। पराक्रम किया जाएगा।...अयोध्या में कारसेवा से ठीक एक दिन पहले उस रैली में उन्होंने कहा था, वहां (अयोध्या) नुकीले पत्थर निकले हैं। उन पर तो कोई बैठ नहीं सकता तो जमीन समतल करना पड़ेगा। बैठने लायक करना पड़ेगा।'
3. 1996 में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का उत्तर देते हुए- 'यदि मैं पार्टी तोड़ू और सत्ता में आने के लिए नए गठबंधन बनाऊं तो मैं उस सत्ता को छूना भी पसंद नहीं करूंगा। 31 मई 1996 में विश्वास प्रस्ताव पर भाषण के दौरान अटल जी ने कहा था- देश आज संकटों से घिरा है और ये संकट हमने पैदा नहीं किए हैं. जब-जब कभी आवश्यकता पड़ी संकटों के निराकरण में हमने उस समय की सरकार की मदद की है...सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी…मगर ये देश रहना चाहिए..इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।
4. 1998 में परमाणु परीक्षण पर संसद में संबोधन- पोखरण-2 कोई आत्मश्लाघा के लिए नहीं था, कोई पुरुषार्थ के प्रकटीकरण के लिए नहीं था। लेकिन हमारी नीति है, और मैं समझता हूं कि देश की नीति है यह कि न्यूनतम अवरोध (डेटरेंट) होना चाहिए। वो विश्वसनीय भी होना चाहिए। इसलिए परीक्षण का फैसला किया गया।
5. 28 दिसंबर 2002- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन अवसर पर- शिक्षा अपने सही अर्थों में स्वयं की खोज की प्रक्रिया है। यह अपनी प्रतिमा गढ़ने की कला है। यह व्यक्ति को विशिष्ट कौशलों या ज्ञान की किसी विशिष्ट शाखा में ज्यादा प्रशिक्षित नहीं करती, बल्कि उनके छुपे हुए बौद्धिक, कलात्मक और मानवीय क्षमताओं को निखारने में मदद करती है। शिक्षा की परीक्षा इससे है कि यह सीखने या सीखने की योग्यता विकसित करती है कि नहीं, इसका किसी विशेष सूचना को ग्रहण करने से लेना-देना नहीं है।
6. मई 2003 को संसद में- आप मित्र तो बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं।
7. 23 जून 2003 को पेकिंग यूनिवर्सिटी में- कोई इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकता कि अच्छे पड़ोसियों के बीच सही मायने में भाईचारा कायम करने से पहले उन्हें अपनी बाड़ ठीक करने चाहिए।
8. 23 अप्रैल 2003 को जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर संसद में- बंदूक किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकती, पर भाईचारा कर सकता है। यदि हम इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के तीन सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होकर आगे बढ़ें तो मुद्दे सुलझाए जा सकते हैं।
9. जनवरी 2004 को इस्लामाबाद स्थित दक्षेस शिखर सम्मेलन में दक्षिण एशिया पर बातचीत करते हुए- परस्पर संदेह और तुच्छ प्रतिद्वंद्विताएं हमें भयभीत करती रही हैं। नतीजतन, हमारे क्षेत्र को शांति का लाभ नहीं मिल सका है। इतिहास हमें याद दिला सकता है, हमारा मार्गदर्शन कर सकता है, हमें शिक्षित कर सकता है या चेतावनी दे सकता है....इसे हमें बेड़ियों में नहीं जकड़ना चाहिए। हमें अब समग्र दृष्टि से आगे देखना होगा'
10. 31 जनवरी 2004 को शांति एवं अहिंसा पर वैश्विक सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन- हमें भारत में विरासत के तौर पर एक महान सभ्यता मिली है, जिसका जीवन मंत्र शांति और भाईचारा रहा है। भारत अपने लंबे इतिहास में कभी आक्रांता राष्ट्र, औपनिवेशिक या वर्चस्ववादी नहीं रहा है। आधुनिक समय में हम अपने क्षेत्र एवं दुनिया भर में शांति, मित्रता एवं सहयोग में योगदान के अपने दायित्व के प्रति सजग हैं।
11. साल 2004 में वाजपेयी बिहार में एक चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे। भाषा के इस्तेमाल में माहिर वाजपेयी जब मंच पर आए तो बिहार से अपना रिश्ता इस तरह जोड़ा, "मैं अटल हूं और बिहारी भी हूं।" पब्लिक ने ख़ूब तालियां पीटीं।