पाकिस्तान में शिया, सूफी और अहमदियों का अस्तित्व खतरे में...

Webdunia
शनिवार, 14 अक्टूबर 2017 (17:50 IST)
पाकिस्तान में हिन्दू, सिख, बौद्ध एवं ईसाई ही नहीं, शियाओं और अहमदियों का अस्तित्व भी खतरे में हो चला है। पाकिस्तान में कभी 35 फीसदी आबादी शियाओं की हुआ करती थी लेकिन अब पाकिस्तान की अनुमानित 20 करोड़ की आबादी में 1 करोड़ 60 लाख से कम जनसंख्या रह गई है।

शिया मुसलमान 
शिया मुसलमान पाकिस्तान का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है जिसकी आबादी 10 से 15 फीसदी बताई जाती है। हाल के सालों में पाकिस्तान में कई बार शिया धार्मिक स्थलों को आतंकवादी हमलों में निशाना बनाया गया है। लश्कर-ए-झांगवी पाकिस्तान के उन सबसे हिंसक सुन्नी चरमपंथी समूहों में से एक है जिसका नाम ज्यादातर शिया विरोधी हमलों में सामने आता है। लश्कर-ए-झांगवी संगठन ने 2011 में शिया मुसलमानों को खुलेआम धमकी जारी करते हुए कहा था कि सभी शिया मुसलमानों को मौत के घाट उतारा जाएगा और पाकिस्तान उनकी कब्रगाह बनेगा।
 
पाकिस्तान में शिया विरोधी आंदोलन करीब 34 साल पहले ईरान में क्रांति के बाद शुरू हुआ था। 1980 से 1985 के बीच जनरल जिया उल हक की सरकार के दौर में देश का इस्लामीकरण हुआ और सिपाह-ए-साहबा जैसे संगठनों को फैलने का अवसर मिला। सिपाह-ए-साहबा ने अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही शिया संप्रदाय के लोगों पर हमले करना शुरू कर दिया था। सुन्नी चरमपंथियों से मुकाबला करने के लिए शियाओं ने तहरीक-ए-निफाज़-ए-फिकाह-जाफरिया नामक संगठन खड़ा किया लेकिन इसके बाद से ही शियाओं पर खूनी हमले शुरू हो गए, जो अब तक जारी हैं।
 
वर्तमान में अधिकतर आतंकवादी संगठन सुन्नियों के हैं, जो सभी शियाओं के खिलाफ कुछ न कुछ करते रहते हैं। तालिबान, अलकायदा और लश्कर-ए-झांगवी दोनों ही अति कट्टरपंथी देवबंदी इस्लाम को मानने वाले हैं, जो कि शियाओं का अस्तित्व मिटा देना चाहते हैं।
 
बलूचिस्तान में 2013 में लगभग 200 शिया हज़ारा समुदाय के लोगों का कत्ल कर दिया गया। इससे पहले 2012 में 125 से ज्यादा शियाओं का कत्ल कर दिया गया था। हर साल शियाओं पर बड़े हमले कर दहशत फैलाई जाती है ताकि शिया स्थान विशेष को छोड़कर एक जगह इकट्ठे हो जाएं।
 
उल्लेखनीय है कि 10 जनवरी 2013 को क्वेटा में हुए 2 धमाकों में 115 लोगों की मौत हो गई थी। इनमें से ज्यादातर हजारा शिया थे। 1 माह से कम के अरसे में कैरानी रोड के धमाके में फिर 89 लोग मारे गए। इस तरह लगातार हमले पर हमले करके शियाओं में दहशत फैलाकर उन्हें खत्म करने की साजिश जारी है। एक अनुमान के मुताबिक 2013 से 2016 तक बम धमाकों में 2,000 से ज्यादा शिया मुसलमानों को मौत के घाट उतारा जा चुका है और लाखों को सुन्नी बहुल इलाकों से पलायन करने के लिए मजबूर किया जा चुका है। ऐसा शायद ही कोई माह गुजरता है, जब शिया मुसलमानों पर कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं होता हो।
 
पाकिस्तान में शियाओं के खिलाफ संगठित हिंसा का ही नतीजा है कि वहां पर बीते कुछ सालों में शिया मुसलमानों की आबादी कम हो रही है। 3 दशक पहले तक शिया पाकिस्तान की कुल मुस्लिम आबादी का 25 फीसदी के करीब हुआ करते थे। इसके अलावा वहां शियाओं के लिए सरकारी नौकरी और सुविधाएं भी धीरे-धीरे घटा दी गई हैं।
 
पाकिस्तान में शिया मुसलमान कई अलग-अलग तबकों में बंटा हुआ है। यहां ज्यादातर तवेलवर समुदाय के शिया हैं। इनके अलावा इस्माइली, खोजा और बोहरा समुदायों की भी अच्छी संख्या है। तवेलवर शियाओं में सबसे ज्यादा हाजरा जनजाति के शिया हैं। हाजरा शिया मुसलमान क्वेटा और आसपास के इलाकों में सबसे ज्यादा होते हैं। क्वेटा में हाजरा समुदाय की आबादी लगभग 7 लाख है। आतंकी हमलों में मारे जाने वाले हर 10 शिया मुसलमानों में से 5 हाजरा समुदाय के होते हैं। 
 
सूफी मुसलमान :
सदियों से पाकिस्तान सूफी संतों की जमीन रहा है, लेकिन अब यह दुनियाभर के सुन्नी आतंकवादियों की शरणगाह बन चुका है। शिया के अलावा सूफी समुदाय के मुसलमान भी सुन्नी आतंकी संगठनों के निशाने पर रहे हैं। सूफियों को पाकिस्तान में काफिर और मूर्तिपूजक माना जाता है। पाकिस्तान की सभी दरगाहें आतंकवादियों के निशाने पर हैं। अहमदियों की तरह की सूफियों को भी किसी भी तरह के नागरिक अधिकार और सहूलियतें नहीं दी जाती हैं।
 
कुछ माह पहले ही पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत में स्थित लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह पर हुए आतंकी हमले में 100 से ज्यादा लोग मारे गए और 250 लोग घायल हुए थे। इससे पहले पिछले साल नवंबर में बलूचिस्तान प्रांत की मशहूर सूफी दरगाह शाह नूरानी पर आतंकी हमले में 52 लोगों की मौत हुई थी। अब तक कई सूफी संतों की दरगाहों पर हमले हो चुके हैं। दरअसल, ये आतंकी हमले वहाबी संप्रदाय की सूफियों के खिलाफ चल रही जंग का हिस्सा हैं।
 
पाकिस्तान के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन तहरीके तालिबान ने 2005 से अब तक 30 सूफी दरगाहों को निशाना बनाया जिनमें कई तो 100 साल से ज्यादा पुरानी हैं। अब तक इस्लामाबाद के बड़ी इमाम दरगाह, मोहम्मद एजेंसी में हाजी साहब तुरंगजई की दरगाह, पेशावर के चमखानी में अब्दुल शकूर बाबा की दरगाह समेत कई मकबरों, पेशावर में 17वीं सदी के सूफी कवि अब्दुल रहमान बाबा, डेरा गाजी खान में साखी सरवर दरगाह, पाकपत्तन शहर में एक सूफी दरगाह, चमकानी में फंडू बाबा की दरगाह, सूफी हजरत बाबा फरीद, सूफी अब्दुल्लाह शाह गाजी की दरगाह पर आतंकी हमले हो चुके हैं। इन हमलों में बड़ी तादाद में श्रद्धालु मारे गए। कभी अफगानिस्तान भी सूफी पीर औलिया और दरवेशों का केंद्र था लेकिन तालिबानियों ने सभी का नामोनिशान मिटा दिया। 
 
अहमदिया मुस्लिम :
पाकिस्तान में अहमदियों को सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है। अहमदी खुद को मुसलमान कहते हैं लेकिन पाकिस्तान उन्हें मुसलमान नहीं मानता। पाकिस्तान में 1953 में पहली बार अहमदियों के खिलाफ दंगे हुए जिसमें सैकड़ों को मौत के घाट उतार दिया गया। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदियों को गैरमुस्लिम करार दिया। यह समुदाय इस्लामिक देश पाकिस्तान में कानूनी और सामाजिक भेदभाव का सामना करता आ रहा है। हाल के दशकों में देशभर में अहमदियों और उनकी संपत्तियों पर हमले बढ़े हैं। 1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जिया उल हक की हुकूमत में देश को पूरी तरह इस्लामिक मुल्क बना दिया। जिया के कार्यकाल में पाकिस्तान में सरकारी मदद से अहमदियों के उपासना स्थल बंद या ढहा दिए गए।
 
भारत विभाजन के बाद अधिकतर अहमदिया पाकिस्तान को अपना मुल्क मानकर वहां चले गए, लेकिन विभाजन के बाद से ही वहां उन पर जुल्म और अत्याचार होने लगे, जो धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंच गए। पाकिस्तान में अब इन लोगों का अस्तित्व खतरे में है। देश के दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय अहमदिया को कानूनी रूप से गैरमुस्लिम करार दिया गया है। उन्हें न केवल काफिर करार दिया गया बल्कि उनसे उनके सारे नागरिक अधिकार भी छीन लिए गए हैं। वे अपनी इबादतगाहों को मस्जिद भी नहीं कह सकते। 
 
28 मई साल 2010 में पाकिस्तान में तालिबान ने 2 अहमदी मस्जिदों को निशाना बनाया। लाहौर की बैतुल नूर मस्जिद पर फायरिंग की गई, ग्रेनेड फेंके गए और जिस्म पर बम बांधकर आतंकी मस्जिद में घुस गए। इस हमले में 94 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए। दूसरी मस्जिद 'दारुल जिक्र' भी लाहौर की ही थी। यहां पर 67 अहमदी इस हमले में दम तोड़ गए। इसके बाद उन पर लगातार हमले होते रहे हैं। 
 
कभी रबवा पाकिस्तान के पंजाब में 50 लाख से ज्यादा अहमदी रहते थे। वर्तमान में कुछ अहमदियों का समूह पलायन करके चीन की सीमा पर शरणार्थी बनकर जीवन जी रहा है और बाकी अपने अस्तित्व को खत्म होते देख रहे हैं। कुछ इंग्लैंड में रह रहा है।
 
1974 का साल था और पाकिस्तानी संसद ने अहमदिया संप्रदाय को गैरमुस्लिम घोषित कर दिया था। इस पर पूरे पाकिस्तान में अहमदियों के खिलाफ दंगे हुए थे। अहमदियों की दुकानें लूटी गईं और सुन्नी मुस्लिमों ने पूरे देश में उनके घरों में लूटपाट की और जला दिया। माना जाता है कि इस हिंसा में हजारों अहमदी मारे गए और घायल हुए।
 
1982 में राष्ट्रपति जिया उल हक ने संविधान में फिर से संशोधन किया। इसके तहत अहमदियों पर पाबंदी लगा दी गई कि वे खुद को मुसलमान भी नहीं कह सकते और पैगंबर मुहम्मद की तौहीन करने पर मौत की सजा तय कर दी गई। कब्रिस्तान अलग कर दिए गए। इस कानून के चलते भारी संख्या में अहमदियों का पलायन हुआ। हजारों ने अपना देश छोड़कर दूसरे देश में शरण ली। 
 
पाकिस्तान के कई इलाकों में सरकारी आदेश पर अहमदियों की मस्जिदों को ढहा दिया गया। उनके कब्रिस्तान की कब्रों पर लिखी आयातें भी हटा दी गईं। पाकिस्तान में वर्तमान में करीब 30 लाख अहमदिया ही बचे हैं जबकि मौजूदा दौर में 206 देशों में कई करोड़ अहमदी बताए जाते हैं। भारत में 10 लाख के करीब अहमदी मुस्लिम हैं। नाइजीरिया में 25 लाख से ज्यादा हैं तो इंडोनेशिया में करीब 4 लाख अहमदी रहते हैं। जबसे ज्यादा इंग्लैड में रहते हैं। (एजेंसियां)

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