दोनों देशों के नागरिकों को लगता है कि सामने वाला देश ज्यादती कर रहा है। गीता के लौटने पर वहां से संदेश आता है कि हम तो आपकी बेटी लौटा रहे हैं और आप गोले बरसा रहे हैं। लेकिन दिल को बड़ा रखकर यह सोचना होगा कि क्या हम एक दूजे को लेकर अनावश्यक ज़ज्बाती हो जाते हैं। हम नहीं चाहते आपस में बैर रखना लेकिन जब आतंक के चेहरे उस देश में चमकते हैं तो इस देश में 'निर्दोष जानें' जाती हैं। क्यों 'वहां' से प्रशिक्षण लेकर कोई इस 'देश' को तबाह करने का सपना देखता है यह बात एक आम नागरिक को कभी समझ में नहीं आती है। जब संवेदना, दया, प्यार और अपनत्व यहां भी है, वहां भी है तो नफरत की खेती को खाद-पानी कौन दे रहा है? कौन है जो नहीं चाहता कि दोनों देशों में अमन कायम हो जाए, सरल आवाजाही हो, आयात-निर्यात हो और सबसे अहम आतंक का सफाया हो... चाहे वह इस देश का हो या उस देश का लेकिन खून ना बहे, सिर ना कटे, गोलियां ना चले, बम ना बरसे।