जीएसटी अधूरा ज्ञान या फिर दुष्प्रचार

30 जून 2017 भारतीय इतिहास में 8 नवंबर के बाद एक और ऐतिहासिक तारीख। यहां 8 नवंबर का जिक्र इसलिए किया गया है, क्योंकि नोटबंदी कालेधन पर प्रहार करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था (वह कदम कितना सफल हुआ यह एक अलग विषय है)। जीएसटी को उसी लक्ष्य को हासिल करने हेतु अगला कदम समझा जा सकता है, क्योंकि नोटबंदी के बाद सरकार के पास सबसे बड़ी चुनौती कालेधन को दोबारा नहीं पनपने देने की है।
 
इस बात को समझने के लिए पहले यह समझना होगा कि कालाधन बनता कैसे है?
तो कालाधन दो तरह का होता है- एक वो जो भ्रष्टाचार द्वारा सरकारी अधिकारियों द्वारा रिश्वत के रूप में लिया जाता है और दूसरा वो जो सरकार को कर न देकर बचाया जाता है।
 
अधिकारियों द्वारा जो रिश्वत ली जाती है उस कालेधन से आम आदमी पिसता है। उसकी मेहनत की कमाई किसी और के लिए अय्याशी करने का साधन बनती है और सरकार पर से आम आदमी का विश्वास धीरे-धीरे उठने लगता है जबकि कर बचाकर जो कालाधन बनाया जाता है उससे सरकार को राजस्व की हानि होती है।
 
क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि वह देश जिसकी आबादी 125 करोड़ है उसमें कर देने वालों की संख्या मात्र 1.5% है? कुल मिलाकर इन परिस्थितियों में नुकसान देश का ही है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जीएसटीरूपी यह कदम उस कालेधन पर लगाम लगाने की कोशिश कहा जा सकता है, जो कर चोरी द्वारा पनपता है।
 
जीएसटी, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की कर प्रणाली में आजादी के बाद का अब तक का सबसे बड़ा परिवर्तन। वो परिवर्तन जो अपने साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव लाने की क्षमता रखता है। वो बदलाव जो अपने साथ कर व्यवस्था में सुधार लेकर आ रहा है। वो व्यवस्था जो पारदर्शी है। वो पारदर्शिता जिसके परिणामस्वरूप एक वस्तु की कीमत पूरे भारत में एक समान ही होगी। वो समानता जिससे भारत देश में व्यापार करने की प्रक्रिया सरल हो जाएगी तो इस सरलता के बाद भी जीएसटी का देशभर में विरोध क्यों? विपक्ष का विरोध करना स्वाभाविक है लेकिन देश के व्यापारी? क्या अधूरा ज्ञान? या फिर दुष्प्रचार?
 
तो आइए, विरोध या समर्थन से पहले कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को समझ लें। कर दो प्रकार के होते हैं- एक प्रत्यक्ष और दूसरे अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष कर वो जो हम सरकार को सीधे तौर पर देते हैं, जैसे आयकर, संपत्ति कर आदि। अप्रत्यक्ष कर वो जो व्यापारी या फिर सर्विस प्रोवाइडर अपने ग्राहक से लेकर सरकार को देता है। 
 
सर्वप्रथम समझने वाली बात यह है कि जीएसटी के दायरे में केवल अप्रत्यक्ष कर आ रहे हैं, प्रत्यक्ष कर यथावत ही हैं। अब जो अप्रत्यक्ष कर हैं वो अभी तक ग्राहक से तो ले लिए जाते थे लेकिन सरकार के खाते में पहुंच नहीं पाते थे। बात केवल इतनी भी नहीं है। दरअसल, भारतीय कर प्रणाली जो अभी तक चल रही थी उसमें जटिलताएं भी बहुत थीं।
 
अभी तक भारतीय संविधान के अनुसार वस्तुओं की बिक्री पर राज्य सरकार कर लेती थीं और वस्तुओं के उत्पादन व सेवाओं पर केंद्र सरकार। किसी सामान के निर्माण के साथ ही सर्वप्रथम उस पर एक्साइज ड्यूटी और किसी किसी मामले में एडिशनल एक्साइज ड्यूटी भी लगती थी। इसके बाद लगता था सर्विस टैक्स। यदि माल एक राज्य से दूसरे राज्य में जाता है तो देना होता था एंट्री टैक्स। इसके बाद उस पर लगता था उस राज्य का वैट यानी सेल्स टैक्स।
 
और अगर उस सामान का नाता मनोरंजन से है तो मनोरंजन अथवा लग्जरी टैक्स लगता था। टैक्स का यह सिलसिला काफी लंबा था, कुल मिलाकर अलग-अलग लगभग 18 टैक्स लगते थे। और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह कि भारत का उपभोक्ता एक आम आदमी इन परिस्थितियों में टैक्स पर टैक्स देने को विवश था बावजूद इसके सरकारी खजाना खाली रहता था और कालेधन से व्यापारियों की तिजोरियां भरी।
 
लेकिन जीएसटी के लागू हो जाने से न सिर्फ इतने अलग-अलग प्रकार के टैक्सों से छुटकारा मिलेगा बल्कि टैक्स भरने की प्रक्रिया कम्प्यूटर पर होने के कारण टैक्स जमा करने के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने से भी आजादी मिलेगी।
 
अगर इसके तकनीकी पहलू पर बात करें तो 20 लाख के टर्नओवर वाले व्यापारियों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है जबकि 75 लाख के टर्नओवर वाले व्यापारियों को कम्पोजिट स्कीम के अंतर्गत केवल 1% टैक्स चुकाना है। यहां यह जानकारी विशेष महत्व रखती है कि भारत में लगभग 68% व्यापारी इन्हीं 2 श्रेणियों में आते हैं।
 
तो कुल मिलाकर इतना तो तय है कि जीएसटी भारतीय अर्थव्यवस्था में न सिर्फ खुद एक बुनियादी बदलाव है बल्कि सरकार द्वारा राजस्व प्राप्ति में भी ठोस बदलाव लाने वाला एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा। कालेधन के एक प्रकार पर सरकार के जीएसटीरूपी वार के बाद देश को इंतजार रहेगा भ्रष्टाचाररूपी कालेधन पर लगाम का।
 
चूंकि सरकार होती तो जनता के लिए है लेकिन जब तक उसे चलाने वाले नेता और अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण को रोकने में वह नाकाम रहेगी, नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदम भी अपना मकसद हल करने में नाकाम ही सिद्ध होंगे।

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