प्रेसिडेंट ट्रंप के द्वारा सात देशों के नागरिकों पर वीसा बंदी का कदम उठाए जाने के बाद, पाकिस्तान ने तुरत-फुरत हाफिज सईद को घर में नज़रबंद कर दिया। अभी तक हाफिज सईद को गरीबों का मसीहा बताने वाली पाकिस्तान सरकार का ह्दय रातोंरात परिवर्तित हो गया। सच तो यह है कि गरीब जनता के बीच पाकिस्तान की सरकार से कहीं बड़ा कद हाफिज सईद का हो गया था।
कई विशेषज्ञ मानने लगे थे कि भारत के सम्बन्ध में पाकिस्तान की विदेश नीति पर हाफिज का नियंत्रण है। पाकिस्तान हाफिज को भारत के विरुद्ध एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है, एक ऐसा हथियार जो बिना अधिक लागत के भारत के अंदर तक मार करने की क्षमता रखता है। अनपढ़ और गरीब लोगों में धार्मिक उन्माद फैलाना, आतंक के मार्ग को जन्नत से जोड़कर और किसी गरीब को चन्द रुपयों का लालच देकर मौत के मुंह में धकेल देने की क्षमता हाफिज ही रखता है।
अभी तक हाफिज के नाम पर अपना सीना ठोकने वाला पाकिस्तान, ट्रंप की एक ही हुंकार में चित हो गया और तो और अब तो पाकिस्तान में ही चर्चा होने लगी है कि उसकी अब तक की हाफिज नीति से पाकिस्तान को लाभ पहुंचा है या नुकसान? हां, कुछ बुद्धिजीवी तो अब यह प्रश्न भी उठा रहे हैं कि जो कदम कुछ वर्षों पूर्व ले लेना चाहिए था इतनी देर से क्यों लिया गया?
यह बात जग जाहिर है कि हाफिज के आतंकी प्रशिक्षण कैंप पाकिस्तानी सेना द्वारा सुरक्षित रखे जाते हैं और पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी 'आईएसआई' द्वारा पोषित किए जाते हैं। हाफिज को कश्मीर की आड़ में भारत के विरुद्ध जहर उगलने की आज़ादी है। पाकिस्तान के पश्चिम में जो आतंकी सक्रिय हैं वे अधर्मी जिहादी माने जाते हैं और पूर्व में (भारतीय सीमा पर) हाफिज जैसे आतंकी धर्म के मार्ग पर चलने वाले जिहादी माने जाते हैं। पाकिस्तान ने आतंकियों में अपनी सुविधानुसार अच्छे और बुरे का भेद किया है और उसके इसी नापाक प्रयास का भारतीय प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री ने प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय मंच पर पर्दाफाश किया है।
फलतः पाकिस्तान, आज हर चर्चा में आतंक को पोषित करने वाले केंद्र के रूप में कुख्यात हो चला है। इस दाग को धोने की कोशिश में उसने अधूरे मन से हाफिज को नज़रबंद तो कर दिया, किंतु मीडिया में उसके इस दिखावटी प्रयास की कहीं प्रताड़ना की गई तो कहीं खिल्ली उड़ाई गई। भारत की ओर से जो ख़बरें आ रहीं हैं उनके अनुसार हाफिज की संस्था जमात-उद-दावा को विदेशी हवाला से मिले धन पर अमेरिका ने कड़ी आपत्ति जताई थी और उसको लेकर पाकिस्तान के अमेरिका स्थित एक अधिकारी की खिंचाई भी की थी इसलिए पाकिस्तान ने शीघ्रता से यह कदम उठाया। कहने को कुछ उत्साही भारतीय विशेषज्ञ यह भी कह गए कि भारत और अमेरिका हाफिज पर उसी तरह की कार्यवाही को अंजाम देने की सोचने लगे थे, जिस तरह ओसामा बिन लादेन का खेल समाप्त किया गया था। पाकिस्तान को इस योजना की भनक मिलते ही उसने हाफिज को सुरक्षित रखने के लिए उसे नज़रबंद कर दिया।
पाकिस्तान में आज स्थिति यह है कि उसकी सेनाएं पश्चिमी सीमा पर आतंकियों से उलझी हैं, दक्षिण पश्चिम में ईरान जैसे देश के साथ उसकी सीमा सटी है जो पाकिस्तान के मित्र देशों की गिनती में नहीं हैं, पूर्व में भारत की सेना से उलझी हुई है जिसे वहां शत्रु देश माना जाता है और अपने घर के अंदर भी वह कराची और बलूचिस्तान में लगी आग में झुलस रहा है। वहां की राजनीति और प्रशासन दोनों पूरी तरह भ्रष्ट है। पुलिस, हफ्तावसूली में लगी है। जिस देश की सीमाओं पर विद्रोह हो, हर मोर्चे पर हालात बेकाबू हों, घर के अंदर भी आग लगी हो और ऊपर से ऐसे देश के पास परमाणु आयुधों का असला हो तो फिर विश्व की जिम्मेदार महाशक्तियों की नींद तो हराम होगी ही।
अब तो सोचा जाना चाहिए कि पाकिस्तान को ऐसी स्थिति में पहुंचाने के लिए कौन जिम्मेदार हैं? सच तो यह है कि आतंकियों का पोषण करने वाले एक दिन स्वयं आतंकियों के निशाने पर आ जाते हैं। अपने घर को फूंककर तमाशा देखने वाले किसी की सहानुभूति अर्जित नहीं कर सकते। आत्महत्या की कोशिश करने वाले को कुछ समय समझाइश से तो कुछ समय तक लालच से रोका जा सकता है लेकिन जिसने कूदने की ही ठान ली हो उसे रोकने के लिए विद्युत करंट के झटके ही चाहिए। क्या प्रेसिडेंट ट्रंप या मोदी कुछ ऐसे झटके लगाने में कामयाब होंगे?