भारत के पास यह एक बहुत अच्छा मौका था जबकि पाकिस्तान को अच्छे से या तो सबक सिखाया जा सकता था या बड़ी कार्रवाई करते हुए पीओके पर कब्जा करने की शुरुआत कर दी जाती। उस वक्त सारी राजनीतिक परिस्थितियां भारत के पक्ष में थी। यदि ऐसा होता तो दुनिया का सारा ध्यान भारत और पाकिस्तान के युद्ध पर होता और तब इजराइल या अमेरिका के लिए शायद ईरान पर हमले की रणनीति में बदलाव हो जाता।
ऑपरेशन सिंदूर से ही पता चल गया था कि भारत के साथ कौनसे देश हैं। पाकिस्तान से युद्ध होता है तो चीन, उत्तर कोरिया, अमेरिका, तुर्किये, बांग्लादेश, अजरबैजान सहित सभी मुस्लिम राष्ट्र भारत के साथ खड़े नहीं हो सकते हैं। ईरान की कोई गारंटी नहीं है। भारत का साथ देने वाला मात्र एक रशिया ही है लेकिन जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है उसने अमेरिका, इजराइल और सऊदी अबर से संबंध बनाने पर ही जोर दिया है जिसके चलते रशिया और भारत के पुराने संबंध में अब स्थिरता आ गई है। भारत को यह समझना होगा कि संकट काल में रशिया ने ही भारत का साथ दिया है। यदि भारत रशिया से दूर जाता है तो वह विश्व में अकेला पड़ जाएगा। इसकी कीमत भारत को चुकाना होगी। भारत यदि रशिया का पक्का दोस्त बना रहता है तो चीन भारत पर कभी भी सीधा हमला करने की हिम्मत नहीं करेगा।
भारत को अपने मित्रों की संख्या बढ़ाते हुए उनमें विश्वास की भावना को मजबूत करते हुए रक्षा सहयोग और गठबंधन को सुनिश्चित करना होगा। रूस के साथ ही भारत को पूर्वी देशों के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना होगा। जैसे नेपाल, भूटान, बर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि। इसी के साथ ही भारत को अपनी परंपरागत गुटनिरपेक्षता नीति को व्यावहारिक बनाना होगा। किसी पक्ष का अंध समर्थन न करते हुए भारतहित को सर्वोपरि रखना भी आज की जरूरत बन गया है। भारत की विदेश नीति किसी धर्म विशेष के आधार पर प्रभावित न होकर राष्ट्रीय सुरक्षा, धर्मनिरपेक्षता, शांति की गारंटी, व्यापार और सामाजिक सद्भाव के मुद्दे पर होना जरूरी है।
- अनिरुद्ध जोशी