5 राज्यों का चुनाव कार्यक्रम : यह चुनाव आयोग है या सरकार का रसोईघर?

अनिल जैन

शनिवार, 27 फ़रवरी 2021 (15:27 IST)
चुनाव आयोग ने 4 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव का जो कार्यक्रम घोषित किया है, उससे एक बार फिर जाहिर हुआ है कि केंद्र सरकार ने अन्य संवैधानिक संस्थाओं की तरह चुनाव आयोग की स्वायत्तता का भी अपहरण कर लिया गया है। चुनाव आयोग पिछले लंबे समय से सरकार का रसोईघर बना हुआ है और उसमें मुख्य चुनाव आयुक्त रसोइए की भूमिका निभाते हुए वही पकाते हैं, जो केंद्र सरकार और सत्ताधारी पार्टी चाहती है। इसलिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा अन्य विपक्षी नेताओं का घोषित हुए चुनाव कार्यक्रम पर बिफरना चुनाव आयोग की नीयत पर सवाल उठाना स्वाभाविक ही है।
 
मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा द्वारा शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जारी किए गए 62 दिन लंबे चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी में एक ही चरण में सभी सीटों के लिए मतदान होगा जबकि पश्चिम बंगाल में 8 और असम में 3 चरणों में मतदान होगा। सभी राज्यों के चुनाव नतीजे 2 मई को आएंगे। तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में 6 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे जबकि पश्चिम बंगाल में मतदान का पहला चरण 27 मार्च को, दूसरा चरण 1 अप्रैल को, तीसरा चरण 6 अप्रैल को, चौथा चरण 10 अप्रैल को, 5वां चरण 17 अप्रैल को, 6ठा चरण 22 अप्रैल को, 7वां चरण 26 अप्रैल को और 8वां चरण 29 अप्रैल को संपन्न होगा।
 
पुडुचेरी में 30 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए तो एक ही चरण में मतदान कराने का औचित्य समझा जा सकता है लेकिन तमिलनाडु में 234 सीटों वाली विधानसभा और केरल की 140 सीटों वाली विधानसभा के लिए भी एक ही चरण में मतदान कराना किसी भी तरह से तर्कसंगत नहीं है, खासकर ऐसी स्थिति में जबकि 126 सीटों वाली असम विधानसभा के लिए 3 चरणों में और 294 सीटों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए 8 चरणों में मतदान कराया जाना है।
 
तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक मौजूदगी नाममात्र की है और वहां उसका कुछ भी दांव पर नहीं है। तमिलनाडु में चुनावी मुकाबला सीधे-सीधे दोनों द्रविड़ पार्टियों ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम, द्रमुक (एआईएडीएमके) और द्रविड़ मुनेत्र कषगम, द्रमुक (डीएमके) के बीच होना है। यहां कांग्रेस डीएमके की सहयोगी पार्टी रहेगी जबकि भाजपा अपनी नाममात्र की उपस्थिति के साथ एआईएडीएमके के गठबंधन का हिस्सा होगी। पुडुचेरी में भी कांग्रेस और डीएमके गठबंधन का सीधा मुकाबला एआईएडीएमके से होगा जिसमें भाजपा कहीं नहीं होगी। इसी तरह केरल में भी मुख्य मुकाबला वामपंथी मोर्चा और कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन के बीच होगा इसलिए वहां सभी सीटों के लिए एक ही दिन मतदान रखा गया है।
 
दूसरी ओर असम में जहां भाजपा की सरकार है और वहां उसे इस बार कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की अगुवाई वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के गठबंधन से कड़ी चुनौती मिलने की उम्मीद है, इसलिए वहां 3 चरणों में मतदान रखा गया है। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में जहां भाजपा ने इस बार सरकार बनाने का दावा करते हुए पिछले कई महीनों से अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है, वहां 8 चरणों में मतदान कराया जाएगा। इतने अधिक चरणों में मतदान तो 2017 में उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनाव में भी नहीं करवाया गया था, जो कि आबादी और विधानसभा सीटों के साथ ही क्षेत्रफल के लिहाज से भी पश्चिम बंगाल की तुलना में बहुत बड़ा है। 403 सदस्यों वाली उत्तरप्रदेश विधानसभा के लिए 2017 के चुनाव में 7 चरणों में मतदान कराया गया था। यही नहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मतदान के 7 चरण ही रखे गए थे।
कुल मिलाकर भारी विरोधाभासों से भरा 5 राज्यों का यह चुनाव कार्यक्रम पहली ही नजर में साफतौर पर भारतीय जनता पार्टी के हितों और उसके स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सहूलियत को ध्यान में रखकर बनाया गया लगता है। इससे पहले भी कई राज्यों में चुनाव कार्यक्रम प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी की अनुकूलता को ध्यान में रखकर बनते रहे हैं।
 
दरअसल, चुनाव कार्यक्रम ज्यादा लंबा होने से राजनीतिक दलों के चुनाव अभियान का खर्च भी बढ़ जाता है। चूंकि भाजपा देश की सर्वाधिक साधन-संपन्न पार्टी है और इस समय वह केंद्र सहित कई राज्यों में सत्तारूढ़ भी है, लिहाजा उसे कॉर्पोरेट घरानों से चुनावी चंदा भी इफरात में मिलता है, इसलिए ज्यादा लंबे चुनाव कार्यक्रम उसे खूब रास आते हैं। इससे उसकी आर्थिक सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन उसकी विपक्षी पार्टियां इस मामले में उसके आगे कहीं नहीं ठहरतीं।
 
वैसे यह कोई पहली बार नहीं हुआ है कि चुनाव आयोग ने सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए इतना बेतुका और लंबा चुनाव कार्यक्रम जारी किया हो। 2015 से लेकर अब तक हुए लगभग सभी विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम इसी तरह तय हुए हैं। यही नहीं, कुछ राज्यों में तो राज्यसभा की एकसाथ रिक्त हुई 2 सीटों के चुनाव भी अलग-अलग तारीखों में कराए हैं। ऐसे मौकों पर जब भी किसी राजनीतिक दल ने सवाल उठाए हैं तो केंद्र सरकार के मंत्री और भाजपा के दूसरे नेता ही नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री मोदी चुनाव आयोग के बचाव में सामने आए हैं। इस बार भी जो सवाल उठ रहे हैं, उनका जवाब भी चुनाव आयोग नहीं, बल्कि उसकी ओर से भाजपा के नेता दे रहे हैं।
 
चुनाव आयोग ने सिर्फ चुनाव कार्यक्रम तय करने में ही पक्षपात नहीं किया है बल्कि पिछले कई विधानसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री तथा अन्य केंद्रीय मंत्रियों द्वारा खुलेआम आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने के मामलों को भी उसने सिरे नजरअंदाज किया है और विपक्षी दलों की ओर से की गईं शिकायतों को सिरे से खारिज किया है। ईवीएम मशीनों की गड़बड़ियों और मतों की गिनती के मामले में हुईं धांधलियों की घटनाओं पर आयोग मूकदर्शक बना रहा है। आचार संहिता के उल्लंघन के प्रधानमंत्री से जुड़े एक मामले एक चुनाव आयुक्त ने मुंह खोलने की कोशिश की भी थी तो कुछ ही दिनों बाद उनके परिवारजनों के यहां इन्कम टैक्स और प्रवर्तन निदेशालय के छापे पड़ गए थे।
 
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के शासनकाल में चुनाव आयोग पक्षपात के आरोपों से मुक्त रहा हो या उस दौर के मुख्य चुनाव आयुक्त दूध के धुले रहे हो। टीएन शेषन और जेएम लिंगदोह के अलावा लगभग सभी मुख्य चुनाव आयुक्तों के साथ थोड़े-बहुत विवाद तो जुड़े ही रहे हैं लेकिन मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और 2017-18 के दौरान इस पद पर रहे अचल कुमार ज्योति तो विवादों के पर्याय ही बन गए।
 
बहरहाल, 5 राज्यों के लिए घोषित अजीबोगरीब चुनाव कार्यक्रम से चुनाव आयोग की साख पर पहले से उठ रहे सवाल तो गहराए ही हैं, साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का 'वन नेशन, वन इलेक्शन' का इरादा भी शिगूफा साबित हुआ है। गौरतलब है कि देश में पंचायत से लेकर लोकसभा तक सारे चुनाव एकसाथ कराने की बात मोदी कई बार कह चुके हैं। उनकी ओर से जब-जब यह बात कही गई, तब-तब चुनाव आयोग ने भी उनके सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि वह सारे चुनाव एक साथ कराने के लिए तैयार है। लेकिन सवाल है कि जो चुनाव आयोग 5 राज्यों के चुनाव एकसाथ नहीं करा सकता, वह पूरे देश के सभी चुनाव कैसे एकसाथ करा लेगा?
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

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