चेन्नई में आई भीषण बाढ़ की रिपोर्टिंग के दौरान चेन्नई में काफी वक्त बीता था। कुछ दिनों तक तो हर जगह पानी ही पानी दिखाई पड़ रहा था। थोड़ी सी बारिश होती थी तो खौफ का माहौल छा जाता था कि चेन्नई कहीं डूब तो नहीं जाएगी। ऐसे में राहत और बचाव के काम के दौरान एयरफोर्स के जवानों के साथ भी कवरेज करने की इजाजत मिल गई थी। पानी की जो बोतलें ऊपर से नीचे फेंकी जा रही थीं उन पर अम्मा की तस्वीर थी।
दक्षिण की राजनीति में चेहरे की बहुत अहमियत होती है। मुसीबत में भी वो चेहरा बरकरार रहना चाहिए और ये सिर्फ जयललिता ही नहीं जो भी मुख्यमंत्री होता यही करता। जब सड़कों से पानी उतरने की शुरुआत हुई तो कई ऐसी दीवारें जो कुछ दिनों से डूबी हुई थीं, उन पर बनाई गई तस्वीरें सामने आने लगीं। उत्तर भारत में जिस तरह होर्डिंग्स की भरमार देखने को मिलती है दक्षिण में खासतौर पर चेन्नई में दीवारों पर राजनेताओं की तस्वीरें देखने को मिलती हैं। शायद ही ऐसी कोई मुख्य सड़क या चौराहा था, जहां अम्मा की मुस्कुराती हुई तस्वीरें न लगी हों।
जब हालात सामान्य हुए तब पुलिसवाले ट्रैफिक को तेजी से हटाते हुए दिखाई दिए। मैं और मेरे कैमरामैन डी. वेंकटेशन दोनों सड़क के किनारे खड़े हो गए। वेंकट स्थानीय निवासी था वो तुरंत भांप गया कि अम्मा का काफिला निकलने वाला है। कुछ ही देर में सड़क के दोनों तरफ लोग लाइन लगाकर खड़े हो गए और अम्मा का काफिला बहुत धीमी गति से वहां से गुजरा। मैंने पहली बार जयललिता को नजदीक से देखा। तस्वीरों में दिखने वाली मुस्कान थी। मैंने अभिवादन किया और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए उसे स्वीकार किया। दोनों हाथ जोड़े हुए वो लगातार सड़क पर खड़े लोगों का अभिवादन करती हुई गुजर रही थीं।
बाढ़ ने चेन्नई में कहर बरपाया था और महज दो-तीन महीनों में विधानसभा चुनाव होने थे। बाढ़ की वजह से ठप हुए जनजीवन से आम लोग निराश हुए होंगे और अम्मा की लोकप्रियता में कमी आई होगी कि चर्चा भी चेन्नई में हर ओर सुनने को मिल रही थी। विपक्ष भी इस मौके को भुनाने की कोशिश में था और लगातार लोगों के बीच जाकर राहत के कार्य चला रहा था।
बोतलों पर अम्मा की छपी तस्वीरें हों या फिर दीवारों पर फिर से चमक उठी तस्वीरें हों, इस चेहरे के लोगों के सामने आने के बाद विपक्ष कैसे धराशायी हुआ इसे विधानसभा चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया। जयललिता दोबारा बहुमत में आईं और फिर से मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुईं। फिल्मी सितारों को लेकर दक्षिण की दीवानगी से हम सब वाकिफ हैं लेकिन जब यही अभिनेता नेता बनते हैं तो लोग उन्हें भगवान का दर्जा देते हैं। दरअसल, यहां की पूरी राजनीति चेहरे के इर्दगिर्द ही चलती है। ब्रांडिंग का जो खेल केंद्र की राजनीति में अब देखने को मिलता है ये दक्षिण की राजनीति का पुराना हिस्सा रहा है। फिल्मी सितारों को नेता के तौर पर भी स्वीकार कर लेना उनके लोकप्रिय ब्रांड होने की वजह से ही है।
अम्मा ब्रांड का जादू तमिलनाडु के सिर चढ़कर बोलता है। जयललिता अन्नाद्रमुक के संस्थापक एमजी रामचंद्रन उर्फ एमजीआर की करीबी थीं और जया ने उनके साथ 28 फिल्मों में काम किया। एमजीआर भी तमिल सिनेमा के सुपरस्टार थे और ब्रांड पॉलिटिक्स में वो भी भारतीय राजनीति के सम्मानित नेताओं में शामिल हुए। जयललिता ने फिल्मी दुनिया को अलविदा कहा और पूरी तरह से एमजीआर के साथ राजनीति में आ गईं।
करुणानिधि को लोग जयललिता के धुर विरोधी के तौर पर जानते हैं। उन्हीं की पार्टी द्रमुक से टूटने के बाद एमजीआर ने अन्नाद्रमुक का गठन किया था। साल 1983 में एमजीआर ने जयललिता को पार्टी का सचिव नियुक्त किया और उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनित किया गया। इस बीच जयललिता और एमजीआर के बीच मतभेद की खबरें भी आईं लेकिन जयललिता ने 1984 में पार्टी के प्रचार अभियान का नेतृत्व किया।
एमजीआर के निधन के बाद जयललिता साल 1987 में पूरी तरह से उभर कर सामने आईं। जनता के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाने के बाद जयललिता पहली बार साल 1991 में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं और वो राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद चुनावों में वो उतार चढ़ाव देखती रही लेकिन उन्होंने खुद भारतीय राजनीति की सबसे मजबूत नेताओं की सूची में शुमार कर लिया। अब अम्मा तमिलनाडु की राजनीति का एक ऐसा ब्रांड है जो आने वाले कई सालों तक सिर्फ अपने नाम की वजह से ही राजनीति में पकड़ बनाए रखने का माद्दा रखता है।