ऐसा नहीं है कि पत्रकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, प्रगतिशील आंदोलनों से जुड़े कार्यकर्ताओं को धमकाने का, उन पर जानलेवा हमलों का या उनकी हत्या का सिलसिला केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद ही शुरू हुआ हो, इससे पहले भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं। विश्व प्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को आखिर कांग्रेस के शासनकाल में ही तो अपने देश से निर्वासित होकर विदेश में शरण लेनी पड़ी थी। अस्सी के दशक में जानेमाने रंगकर्मी सफदर हाशमी और मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी की हत्या भी कांग्रेस के शासनकाल में ही हुई थी। इसके अलावा विभिन्न राज्यों में कई फिल्मकारों, कलाकारों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी सांप्रदायिक गुंडों के हमलों और पुलिस की प्रताड़ना का शिकार कांग्रेस और अन्य गैर भाजपा दलों की सरकारों के चलते ही होना पड़ा। फिर भी हकीकत यही है कि पिछले तीन-चार वर्षों के दौरान इस तरह की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है।