भारत में 'सेक्स स्लेवरी' की विकराल होती समस्या...

मानव तस्करी पूरी दुनिया के लिए 21वीं सदी की एक बहुत बड़ी समस्या साबित हो रही है। युद्धग्रस्त क्षेत्रों से लेकर प्राकृतिक आपदा से पीड़ित कई देशों में महिलाओं, युवा लड़कियों और कमउम्र बच्चों को यौन दासता, वेश्यावृत्ति या मानव-अंगों के भयावह व्यापार में धकेल दिया जाता है। वर्तमान में यह एक वैश्विक समस्या बन चुकी है। पूरे विश्व में 3.5 करोड़ से अधिक लोग सेक्स स्लेव (यौन दासों) के रूप में नारकीय जीवन जी रहे हैं। इस समस्या से भारत भी अछूता नहीं है। एक ऑस्ट्रेलियाई एनजीओ वॉक फ्री फाउंडेशन के अनुसार भारत में इस समय 1 करोड़ 40 लाख सेक्स स्लेव (यौनदास) हैं। 
इस समय मानव तस्करी, नशीली दवाओं और हथियारों की तस्करी के बाद विश्व का तीसरा सबसे 'लाभदायक गैरकानूनी' उद्योग है। इसका एक बड़ा प्रतिशत भारत के जरिए होता है। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा बताया गया है कि मुंबई शहर में एक सेक्स स्लेव से तस्करों और दलालों को 13 हजार अमेरिकी डॉलर का लाभ होता है। बदले में उन्हें सेक्स स्लेव पर कुछ खास खर्च भी  नहीं करना पड़ता। 
 
ऐसा नहीं है कि मानव तस्करी उद्योग से पीड़ित सभी महिलाएं भारतीय हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में होने वाली सेक्स स्लेवरी के स्रोत देशों में बांग्लादेश, थाईलैंड, मलेशिया, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, और यूक्रेन शामिल हैं। नेपाल इसका सबसे बड़ा स्रोत है। नेपाल में हाल ही में आए भूकंप पीड़ितों की तस्करी की खबरें सामने आई हैं। ऐसा माना जाता है कि हर साल भारत में  नेपाल से लगभग 15,000 लोगों को लाकर बेगार या वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि इस समय में, भारत मध्य पूर्व और एशियाई देशों को मानव तस्करी का एक प्रमुख केन्द्र बन गया है।
 
अंग्रेजों का 'मनोरंजन' बना श्राप : वैसे तो यौन दासता कई शताब्दियों से प्रचलन में रही हैं लेकिन आधुनिक भारत में, खासतौर पर 19वीं सदी के ब्रिटिश भारत में ब्रितानी सैनिकों और अधिकारियों के 'मनोरंजन' और 'मन बहलाने' के नाम पर यौन दासता अपने चरम पर थी।   
 
आधुनिक भारत में अंग्रेजों ने यौन दासता को जमकर बढ़ावा दिया। अनियंत्रित यौनाचार के कारण जब ब्रिटिश सैनिक, कर्मचारी और अधिकारियों में होने वाले यौन रोगों की दर में एकाएक बढ़ोतरी हुई तो 19वीं सदी के औपनिवेशिक प्रशासकों ने ब्रिटिश सैनिकों के मनोरंजन के लिए कुछ खास क्षेत्रों में 'छावनी अधिनियम और संक्रामक रोग अधिनियम' तक पारित कर दिया। जिसके अंतर्गत भारतीय महिलाओं को एक क्षेत्र विशेष में वेश्यावृत्ति के लिए रखा जाता था। कालांतर में इन्ही क्षेत्रों को रेडलाइट एरिया का नाम दिया गया। यहां इन महिलाओं की नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच होती थी। इन महिलाओं को शादी या किसी अन्य व्यवसाय होना अनुमति नहीं थी। यह औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा स्वीकृत यौन गुलामी का मान्य रूप था।
 
अंग्रेजों से भारतीयों ने कई कुरीतियां अपनाई, यौन दास या बन्धुआ मजदूर रखना उनमें से ही हैं। आज भी भारत में 90 प्रतिशत मानव तस्करी घरेलू स्तर पर होती है। कई मामलों में, तस्कर अच्छे भुगतान, शहर में काम के वादे के साथ गांवों से बच्चों या युवा वयस्कों को लुभाते हैं और उन्हें बड़े शहरों में लाकर बेच दिया जाता है। लड़कों को खनन या कृषि क्षेत्रों में बंधुआ मजदूरी जैसे श्रमसाध्य कार्यों में जोत दिया जाता है तो लड़कियों और बच्चों को अक्सर वेश्यावृत्ति या घरेलू कामों में धकेल दिया जाता है। पीड़ितों के लिए उनके खरीददार ही उनके स्वामी बन जाते हैं। गरीबी, भाषा की समस्या, स्थानीय शोषण के कारण कुछ पीड़ितों घरेलू नौकरों के रूप में बिना वेतन के काम करते हैं। कई लड़कियों का जबरन विवाह करा दिया जाता है। 
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क्या है कानून : अनैतिक तस्करी निवारण अधिनियम के तहत व्यवसायिक यौन शोषण दंडनीय है। इसकी सजा सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की है। भारत में बंधुआ मजदूर उन्मूलन अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम, बंधुआ और जबरन मजदूरी को रोकते हैं। इसके बावजूद, सरकारी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार और सीमित संसाधनों के कारण इन लोगों को न्याय भी नहीं मिलता है। भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली इतनी लचर है कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पुलिस ने केवल वर्ष 2014 में पूरे भारत में मात्र 720 मानव तस्करी के मामलों में ही कार्यवाही की। 
संयुक्त राष्ट्र औषध एवं अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) के मुताबिक दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में मानव तस्करी के आधे से अधिक मामले यौन शोषण के होते हैं। भारत में 30 लाख से अधिक महिलाएं वेश्यावृत्ति में लिप्त हैं और इसमे से भी एक बड़ा भाग नाबालिग या कमउम्र बच्चों का है।  रिपोर्ट के मुताबिक यह 'सेक्स स्लेव' बड़े शहरों में स्थित रेड लाइट इलाकों के गन्दे और नारकीय माहौल में जीते हैं और हर दिन उन्हें कई लोगों के साथ सेक्स करना पड़ता है। 
 
'ग्राहकों' का इंतजार ही जीने का जरिया है यहां : यह स्थिति दिल्ली, मुंबई से लेकर कोलकाता जैसे कॉस्मोपोलिटन शहर की है। कोलकाता को 'जबरन वेश्यावृत्ति' का वैश्विक हब भी कहा जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार यहां 14 लाख से अधिक महिलाएं हैं जो शहर और आस-पास के 7 से लेकर 12 रेडलाइट इलाकों में जबरन वेश्यावृत्ति और यौनदासता की शिकार हैं। असुरक्षा के माहौल में जीती इन महिलाओं के पास जीने के लिए सज-संवर कर अपने दरवाजों पर खड़े होकर 'ग्राहकों' का इंतजार ही एक मात्र जरिया है।
 
Article Ref: 
- Walk Free Foundation
- Program on Human Trafficking and Modern Slavery at the Harvard’s Kennedy School of Government)  
- The United Nations Office on Drugs and Crime (UNODC) 

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