सोनिया, राहुल की 'बहादुरी' का राज?

शुक्रवार, 6 मई 2016 (17:55 IST)
देश की संसद के अंदर और बाहर आगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीद में हुए कथित घोटाले के मामले पर कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी का कहना है कि 'मैं किसी से नहीं डरती' और पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि 'उन्हें तो हमेशा ही निशाना बनाया जाता रहा है' (इसलिए अगर ऐसा इस बार हो रहा है तो वे तनिक भी परेशान नहीं हैं)। आज के राजनीतिक परिदृश्य में सोनिया गांधी, राहुल गांधी से लेकर कन्हैया कुमार तक कोई भी किसी से नहीं डरता है। जब आगस्ता वेस्टलैंड मामले पर पहली बार मंगलवार को उनकी प्रतिक्रिया चाही गई थी तब 'उनका कहना था कि उन्हें हमेशा ही निशाना बनाया जाता रहा है। और उन्हें निशाना बनाए जाने पर खुशी है।' 
जब कभी भी भ्रष्टचार से जुड़े मामलों पर जांच की बात आती है, सोनिया गांधी का यही जवाब होता है। जब नेशनल हेराल्ड मामले में उन्हें दिल्ली की एक अदालत में हाजिर होना पड़ा था, तब उनका कहना था, 'मैं इंदिरा गांधी की बहू हूं। मुझे किसी का कोई डर नहीं है।' जब अगस्ता वेस्टलैंड में उनका नाम आया तो उनका फिर यही कहना था। देश की सबसे बड़ी और पुराने राजनीतिक दल के दो प्रमुखों का देश के लोगों को कहना था। कानून से डरने की जरूरत नहीं है? क्या इसका यह मानना है कि जब उन्हें कानूनों का उल्लंघन करते हुए दोषी पाया भी जाता है, तब भी उन्हें किसी से कोई डरने की जरूरत नहीं है? संभवत: उनका देश के लोगों को यह संदेश है कि भले ही कानून का उल्लंघन हुआ है और ऐसा सिद्ध भी हो जाता है तब भी उन्हें कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता है? 
 
इस मामले में कहा जा सकता है कि क्या सोनिया अपनी शाही उपेक्षा को जाहिर कर रही हैं वे कानून के प्रति घृणा दर्शा रही हैं? या फिर वे यह कह रही हैं कि लोग आसानी से बिना किसी डर के कानून तोड़ते हैं क्योंकि उन्हें कानून का डर ही नहीं होता है? हालांकि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून की नजर में सभी नागरिकों की समानता बहुत महत्वपूर्ण होती है लेकिन फिर भी वे क्यों सोचती हैं कि अपने आप में वे बहुत खास हैं? इससे यह जाहिर होता है कि वे अभी भी सामंती और विशेषाधिकार वाले पदों की मानसिकता में जी रही हैं।
 
संभवत: उनका आत्मविश्वास इस कारण से भी बढ़ा हुआ है कि अतीत में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं और इनसे उनका गलत विश्वास पुख्ता हुआ है कि ताकतवर और विशेषाधिकार प्राप्त लोग अक्सर ही बिना किसी सजा के छूट जाते हैं और भूल-चूक का दोषी साबित होने के बावजूद ऐसे लोगों को बिना किसी सजा के छोड़ दिया जाता है। दुख का विषय है कि दिखावटी कानून से समझी जाने वाली छूट पाने के वे कारण भी भलीभांति जानते हैं। अंतिम और पहली बार गांधी परिवार को भ्रष्टाचार के आरोपों का तब सामना करना पड़ा था जबकि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम बोफोर्स तोप सौदे में आया था। 
 
और उस समय राजीव गांधी बच निकलने में कामयाब हुए थे, जबकि भ्रष्टाचार के आरोपों में रिश्वत दिए जाने के सबूत भी पाए गए थे लेकिन इसके चलते उनकी गद्दी चली गई थी। सवाल यह था कि राजीव गांधी को ही सजा क्यों मिले?  जबकि पर्याप्त प्रमाण होने के बावजूद किसी भी आरोपी को सजा नहीं दी गई थी। मामले के प्रमुख आरोपी ओत्तावियो क्वात्रोच्चि (जो कि भारत में इतालवी कंपनी स्नामप्रोगेट्‍टी के प्रतिनिधि थे) को गांधी परिवार की निकटता के कारण देश से भाग जाने की अनुमति दी गई थी। 25 वर्ष से अधिक लम्बे समय तक चले चूहे-बिल्ली के खेल के बाद बोफोर्स मामले ने न्यायालयों और सरकारी दफ्तरों के कार्यालयों में दम तोड़ दिया।
 
सोनिया को यह बात अच्छी तरह से पता है और राजनीतिक वर्ग के लोग जानते हैं कि इस हेलीकॉप्टर मामले से कुछ भी बाहर आने वाला नहीं है। यह घोटाला अब पहले से ही राजनीतिक जूतमपैजार में बदल गया है और अब यह आपराधिक और कानूनी मामला नहीं रह गया है जिसे अदालतों में लड़ा और जीता जाए। सामान्य अनुभव और विशेषाधिकार की भावना के चलते वे कानून को मुंह चिढ़ाने में कामयाब हुई हैं। सबसे बड़ी राजनीतिक लड़ाई सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बीच हुई थी और जिसके अंत में कांग्रेस की हार हुई थी। 
 
उस समय पर जेपी ने एक बार भी इस जुमले का इस्तेमाल नहीं किया कि ' मैं किसी से नहीं डरता जबकि उनके खिलाफ इंदिरा सरकार की पूरी ताकत थी और उन्हें आपात काल के दौरान 19 माह जेल में बिताने पड़े। तब वास्तव में जेपी किसी से भी नहीं डरने की हालत में थे क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान भयानक शारीरिक यातनाएं सही थीं और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के बाद जेल से भाग गए थे। तब भी उन्होंने सार्वजनिक जीवन में कभी ऐसी अक्‍खड़ता नहीं दिखाई थी जैसी कि सोनिया और राहुल दिखा रहे हैं।
 
दिल्ली में जेएनयू के हीरो कन्हैया कुमार एक और नवोदित जुमला मैन हैं। अपनी पढाई के दौरान अपने 'नवजात राजनीतिक करियर' में वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सामना करने के 'हसीन सपने' देखने लगे हैं और इस मामले में वे दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल से भी चार कदम आगे साबित हुए हैं। उनका मानना है कि सरकार उनके पीछे पड़ी है क्योंकि मोदी उनसे भयभीत हैं। इसके अलावा, वे भी कई बार कह चुके हैं कि 'मैं किसी से नहीं डरता हूं।' जेपी के आंदोलनकारी दिनों में नीतीश कुमार और लालूप्रसाद यादव भी छात्र नेता हुआ करते थे, लेकिन उन्होंने इतने दंभ और अक्खड़ता से नहीं कहा था कि वे किसी से नहीं डरते हैं।
 
छात्र नेता रहते हुए उन्होंने भी कभी इंदिरा गांधी का सामना करने की बात नहीं कही थी। उन्हें इस बात का भी गलतफहमी नहीं थी कि उनका नेतृत्व जेपी कर रहे हैं। सोनिया और राहुल के साहस प्रदर्शन से हमें स्कूली दिनों की याद आना संभव है। उस समय छात्रों के दो गुट ही सबसे ज्यादा कांव-कां करते थे। एक जो कक्षाओं के छात्रों पर धौंस जमाने का काम करते थे और दूसरे वे लड़के जो धौंस से डर जाते थे लेकिन दोनों का कहना होता था कि 'वे किसी से नहीं डरते हैं।' दोनों ही तरह के लड़के इन जुमलों से मनोवैज्ञानिक डर और डर से सामना करने की हिम्मत पैदा करते थे।    
 
ज्यादातर आम आदमी बहुत सारी चीजों से डरते हैं। पुलिस, सरकारी मशीनरी, कोर्ट कचहरी से आम आदमी को डर लगता है और इन चीजों से कानून का पालन करने वाले लोग भी घबराते हैं। जब भी उन पर कुछ गलत करने का आरोप लगता है तो परेशान हो जाते हैं लेकिन क्या सोनिया और राहुल गांधी कानून का पालन करने वाली नागरिक हैं?

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