भारत में महिला फाइटर पायलट : अब यह उड़ान हमारे नाम

उसके पंख थे पर वह आकाश में अपनी मर्जी से नहीं उड़ सकती थी। उसके हौसलें थे पर उसे अनुमति नहीं थी, उसकी उमंगे थी आसमान की ऊंचाइयों से दुश्मनों को पटखनी देने की पर अधिकार नहीं थे। अब संदेश आया है, वह कर सकती है। जी हां हम बात कर रहे हैं उसी संदेश की जो कुछ ही समय पहले सरकार की तरफ से आया...हमारे लिए।


 

यह संदेश कहता है फाइटर पायलट बन सकती है महिलाएं भी। संदेश सच में मोहक है, चेहरे पर मुस्कान सजा देने वाला है। आखिर जीवन के हर कठिन मोर्चों पर अपनी दृढ़ता का परिचय देने वाली नारी शक्ति बस यहीं बेबस क्यों रहे... उसके हौंसलों को सरकार ने माना है। अब वह भी उड़ा सकती है फाइटर प्लेन और साबित कर सकती है अपने मजबूत इरादों को, अपनी देशभक्ति को और पूरा कर सकती है सपना अपनी मातृभूमि के लिए मर मिटने का... 
 
सरकार ने एक एतिहासिक कदम के तहत भारतीय वायुसेना में महिलाओं को लड़ाकू पायलट के रूप में शामिल करने को मंजूरी दे दी। यह पहली बार होगा जब महिलाएं देश के सशस्त्र बलों में लड़ाकू विमानों के पायलट की भूमिका में होंगी।   
 
रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि पहली महिला लड़ाकू विमान पायलट का चयन वर्तमान में वायुसेना एकेडमी में प्रशिक्षण ले रहीं महिलाओं के बैच से किया जाएगा।
 
मंत्रालय के अनुसार यह प्रगतिशील कदम भारतीय महिलाओं की आकांक्षाओं के मद्देनजर और विकसित देशों के सशस्त्र बलों में समकालीन चलन के अनुरूप उठाया जा रहा है। भारतीय वायुसेना की परिवहन और हेलीकॉप्टर इकाइयों में शामिल रहीं महिलाओं का प्रदर्शन ‘सराहनीय’और अपने पुरुष सहकर्मियों से किसी मामले में कमतर नहीं रहा है। बल्कि तय धारणाओं के विपरीत उन्होंने अधिक बहादूरी से अपना प्रदर्शन दिया है। आमतौर पर नाजुक और कच्चे दिल की मान ली जाने वाली महिलाओं को कठिन दायित्वों से मुक्त रखा जाता है लेकिन सरकार का यह भरोसा साबित करता है कि उनकी योग्यता को मान्यता मिल रही है। 
 
अब महिला पायलटों को भी वायुसेना में लड़ाकू पायलट के तौर पर शामिल कर लिया गया है। लेकिन ट्रेनिंग के बाद लड़ाकू विमान के कॉकपिट में दाखिल होने के लिए महिला पायलट को जून 2017 तक इंतज़ार करना होगा। 
 
उल्लेखनीय है कि इसके पहले तक महिलाएं केवल ट्रांसपोर्ट विमान और हेलीकॉप्टर उड़ाया करती हैं। 
 
भारतीय वायुसेना में अभी कुल 1300 महिला अफसर हैं। इनमें से ज्यादातर ग्राउंड ड्यूटी ऑफिसर हैं यानी जमीनी कामकाज से ही जुड़ी हैं। महिला अफसरों के क्षेत्र हैं प्रशासन, साजो-सामान, अकाउंट्स, मौसम विभाग, एयरोनॉटिकल, इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के अलावा नेविगेशन और शिक्षा। उधर वायुसेना में महिला पायलटों की कुल संख्या 110 है जो फिलहाल परिवहन विमान और हेलिकॉप्टर ही उड़ाती हैं। 
 
फिलहाल सेना के तीनों अंगों में महिलाओं की नियुक्ति सीधी लड़ाई में नहीं की जाती है, जबकि इस बारे में लंबे समय से मांग की जा रही है। वायुसेना की पहल के बाद उम्मीद की जा रही है कि सेना के बाकी दो अंगों में इस तरह के फैसले लिए जा सकते हैं। 
 
सन  2013 में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की 26 वर्षीया आयशा फारूक जब पहली महिला लड़ाकू विमान चालक बनी तभी से भारत में भी यह मांग जोर पकड़ती रही है। पाकिस्तान में विमान उड़ाने की सोचना भी जब एक सपना था तब आयशा की ख्वाहिश हंसी का विषय बन गई थी लेकिन अपने बुलंद इरादों से उसके अपना सपना पूरा किया। आज वह चीन निर्मित एफ7पीजी विमान उड़ाती हैं। 
 
वर्षों से विदेशों की सेना में महिलाएं अपना हुनर आत्मविश्वास के साथ दिखा रही है। रशियन एयरफोर्स की स्वेतलाना कापानिना हो या अमेरिका की मार्था, या पहली चायनीज अमेरिकन पायलट हेजल यिंग ली हो, सभी ने अपने करियर में इस शानदार उड़ान को चुना। यूनाइटेड स्टेट्स की जैनी मेरी लेविट के साथ आरंभ हुआ उड़ान का यह कारवां भारत के नीले आकाश पर बादलों के बीच किस नाम को अंकित करता है इस फैसले के बाद इसकी सबको प्रतीक्षा रहेगी।  
 
बहरहाल, भारतीय वायुसेना का इससे पहले महिलाओं को लड़ाकू विमान पायलट न बनाने के पीछे तर्क यह था कि लड़ाई के दौरान विमान मार गिराने की सूरत में पकड़े जाने पर उन्हें प्रताड़ना और उत्पीड़न का शिकार बनाया जा सकता है। लेकिन यह कोई ठोस वजह नहीं बनती है किसी क्षेत्र विशेष से नारी को वंचित करने की, लिहाजा फैसला हुआ और नारी शक्ति के हक में हुआ... 

आज हर वायुसेना के साथ पूरा  देश गुनगुनाने को बाध्य है -कोमल है कमजोर नहीं शक्ति का नाम ही नारी है, जग को जीवन देने वाली मौत भी तुझसे हारी है...

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