आलोक पुराणिक का 'अगड़म-बगड़म'

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ब्‍लॉग-चर्चा का यह सफर इस बार जाकर रुका है, आलोक पुराणिक के ब्‍लॉग 'अगड़म-बगड़म' पर। बहुत हो गई गई गंभीर बातें। हर समय गुरु-गंभीर मुद्रा बनाए गंभीर ‍विमर्शों का छोड़कर इस बार हम कुछ व्‍यंग्‍य की शैली में बातों का जायजा लेने निकले हैं

तो इस बार आलोक पुराणिक के 'अगड़म-बगड़म' के बारे में कुछ बातें।

आलोक जी को ब्‍लॉगिंग की दु‍निया में आए अभी ज्‍यादा वक्‍त नहीं गुजरा है। मई, 2006 में उन्‍होंने अपने ब्‍लॉग की शुरुआत की और इतने कम समय में भी 'अगड़म-बगड़म' बहुतों का पसंदीदा ब्‍लॉग बन चुका है

आलोक पुराणिक जाने-माने व्‍यंग्‍यकार हैं। देश भर के अखबारों में उनके कॉलम छपते हैं। दैनिक जागरण में उनका एक नियमित स्‍तंभ, 'प्रपंच-तंत्र' बहुत लो‍कप्रिय हुआ था। यह व्‍यंग्‍य लेखक वाणिज्‍य के अध्‍यापक भी हैं और दिल्‍ली यूनीवर्सिटी में कॉमर्स पढ़ाते हैं

आलोक जी की अपनी एक खास शैली है। कभी वह हिमालय पर कमेटी विषयक निबंध को ग्‍लोबल निबंध प्रतियागिता में प्रथम स्‍थान दिलवाते हैं, कभी स्‍वर्ग-नर्क के पचड़ों में उलझे नजर आते हैं तो कभी चालू लेखकों और चालू चश्‍मों पर अपनी कलम चलाते हैं

'अगड़म-बगड़म' की ताजातरीन एक पोस्‍ट में उनके लेखन की बानगी देखी जा सकती है -
आलोक जी की अपनी एक खास शैली है। कभी वह हिमालय पर कमेटी विषयक निबंध को ग्‍लोबल निबंध प्रतियागिता में प्रथम स्‍थान दिलवाते हैं, कभी स्‍वर्ग-नर्क के पचड़ों में उलझे नजर आते हैं तो कभी चालू लेखकों और चालू चश्‍मों पर अपनी कलम चलाते हैं।


‘भारत महान देश है, यह बात अकसर कही जाती है। पर यह बात अकसर पूरे तौर समझी नहीं जाती है। मतलब कनफ्यूजन यह है कि अगर देश महान है, तो इसके सारे आइटम सारे खुद ब खुद महान मान लिये जायेंगे। मतलब फिर हमें महानता की ओर अग्रसर होने की क्या जरुरत है। पापा मम्मी मार बचपन से कांय-कांय मचाये रहते हैं कि महान बनना है, अरे देश महान हो लिया तो फिर हम अलग से महान क्यों हों। पर यहां एक पेंच यह भी उठता है कि अगर पूरा देश महान है, तो यहां के चोर भी महान हो गये। यहां के स्मगलर भी महान हो गये। या इन्हे अपवाद माना जायेगा और एक डिस्क्लेमर लिखा जाये कि वह स्मगलर इस महानता में शामिल नहीं है। और वह नेताजी जो अपने स्मगलर काल में महान नहीं थे, दिनांक फलां से महान माने जा रहे हैं। कायदे की बात तो यह है कि महानता गजट हर हफ्ते अपडेट हो, ताकि लोग जान पायें लेटेस्ट महान कौन हैं।'

आलोक पुराणिक का ब्‍लॉग दुनिया के तमाम प्रश्‍नों और आसपास दिखने वाली ढेरों चीजों पर ऐसे ही व्‍यंग्‍य की शैली में बात करता है। आलोक जी लिखते व्‍यंग्‍य हैं, लेकिन खुद गहरे दार्शनिक और राजनीतिक विषयों और अर्थशास्‍त्र पर पुस्‍तकें पढ़ना पसंद करते हैं। ज्ञानदत्‍त पांडेय की मानसिक हलचल, फुरसतिया, उड़न तश्‍तरी और अजदक आलोक जी के पसंदीदा ब्‍लॉग हैं

हिंदी ब्‍लॉगिंग की वर्तमान स्थिति के बारे में आलोक पुराणिक कहते हैं कि हिंदी ब्‍लॉगिंग अभी अपनी शैशवावस्‍था में हैं। बेशक, अभी बहुत चीजें नहीं हैं, लेकिन एक नए जन्‍मे बच्‍चे से हमें इसकी अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए। अभी तो यह शुरुआत भर है।

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हिंदी ब्‍लॉगिंग में सक्रिय लोगों को वे मुख्‍यत: तीन श्रेणियों में देखते हैं। एक तो वे जो प्रोफेशनल लेखक और पत्रकार हैं। दूसरे वे सामान्‍य लोग, जो वस्‍तुत: लेखक नहीं हैं, पर ब्‍लॉगिंग ने जिन्‍हें एक स्‍पेस दिया है, जहाँ वे अपने मन की बात कह सकते हैं। अगर ब्‍लॉग नहीं होता तो यह लोग नहीं लिखते और हमें कभी पता नहीं चलता कि इतने सारे लोग इतना बेहतर लिख सकते हैं। तीसरी श्रेणी उनकी है, जो अपना मानसिक उच्‍छवास, अपना कूड़ा ब्‍लॉग में उड़ेलते रहते हैं। जो जी में आए, लिख देते हैं

लेकिन देखा जाए तो ब्‍लॉग में फिलहाल कुछ साहित्यिक और निजी किस्‍म का लेखन ही छाया हुआ है। हिंदी ब्‍लॉगों के माध्‍यम से हिंदी के विस्‍तार के बारे में वे कहते हैं कि हिंदी का जो भी विस्‍तार होता नजर आता है, वह दरअसल हिंदी के बाजार का विस्‍तार है। हिंदी विज्ञापनों और एकता कपूर के सीरियलों में बढ़ रही है। आलोक जी ने बताया कि आँकड़ों के मुताबिक 2026 तक भारत की आबादी 37 करोड़ और बढ़ चुकी होगी, जिसमें से 19 करोड़ अकेले हिंदी भाषी होंगे। लेकिन इन आँकड़ों के अनुपात में हिंदी किताबों और साहित्‍य की, किताब पढ़ने वालों की संख्‍या का तो विस्‍तार नहीं हो रहा है

आलोक मानते हैं कि ब्‍लॉग हिंदी कि साहित्यिक लेखन का बहुत विकास नहीं करने वाले, लेकिन रचनात्‍मकता के नए-नए तरीके जरूर इस माध्‍यम से ईजाद होंगे। साहित्‍य को उसके पारंपरिक रूप में तो हम जिंदा नहीं रख पाएँगे।

जैसेकि वह कहते हैं कि अजदक बहुत शानदार ब्‍लॉग है। वह अपने आप में एक क्रिएटिव पीस है। अजदक की लेखन शैली भविष्‍य की विधा है। अब हमें जो भी कहना है, उसी शैली में कहना होगा, संक्षिप्‍त और रोचक।
हिंदी ब्‍लॉगों के माध्‍यम से हिंदी के विस्‍तार के बारे में वे कहते हैं कि हिंदी का जो भी विस्‍तार होता नजर आता है, यह दरअसल हिंदी के बाजार का विस्‍तार है। हिंदी विज्ञापनों और एकता कपूर के सीरियलों में बढ़ रही है।


ब्‍लॉगिंग से इतना फायदा तो जरूर होगा कि यह लेखन की भाषा और तरीकों को बदलगी। क्रिएटिविटी के नए फार्म विकसित करेगी। अभियक्ति के नए-नए अंदाज के साथ नए लोग इससे जुड़ेंगे।

आलोक कहते हैं कि ब्‍लॉगों के व्‍यावसायिक पक्ष के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। भविष्‍य की स्थितियाँ ही इस संबंध में निर्णायक होंगी, लेकिन इतना जरूर है कि ब्‍लॉगिंग ने एक नई जमीन, नया प्‍लेटफॉर्म जरूर उपलब्‍ध करवाया है।

वैसे चारों ओर जो कुछ घट रहा है, उसके बारे में कुछ रोचक और दृष्टि देने वाला पढ़ना हो तो 'अगड़म-बगड़म' एक बेहतरीन जगह है। वहाँ कुछ देर रुकना एक सार्थकता का एहसास देता है। बात व्‍यंग्‍य की शैली में कही जा रही है, लेकिन कुछ ज्‍यादा गंभीर सवाल और मसले अपने भीतर छिपाए है, जो अजदक की शैली है, जो परसाई जी की हुआ करती थी

ब्‍लॉग - 'अगड़म-बगड़म'
URL - http://www.alokpuranik.com/