वे जगदलपुर या दुमका नगर पालिका अथवा छत्तीसगढ़ या झारखंड विधानसभा के सदस्य नहीं हैं। दुनिया के किसी बड़े बैंक या अंतरराष्ट्रीय कंपनी के दिवालिया घोषित होने से भी उनका कोई रिश्ता नहीं है। वे रिक्शा, बैलगाड़ी, स्कूटर, मारुति या होंडा सिटी कार से भी नहीं चलते, क्योंकि उनके पास इनसे चार गुना महँगी कारों का काफिला है।
उन्होंने किसी झोपड़ी या साधारण कच्चे-पक्के मकान में दो घंटे भी नहीं गुजारे। वे ब्रिटिश संसद के उच्च सदन के सम्मानित प्रभावशाली लॉर्ड (सांसद) हैं। उनमें से कुछ अरबपति हैं। इनमें एक भारतीय मूल के प्रसिद्ध उद्योगपति स्वराज पॉल हैं।
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कुछ वर्ष पहले लंदन में एक शानदार दफ्तर में उनसे मुलाकात का अवसर मुझे भी मिला है। भारत सरकार उन्हें परदेस में भारत का गौरव बढ़ाने वाले प्रवासी भारतीय के नाते राष्ट्रीय सम्मान दे चुकी है। इसलिए ब्रिटिश संसद के 20 नामी सदस्यों द्वारा गलत पते-ठिकाने देकर मकान भत्ते के नाम पर बेईमानी से कुछ लाख वसूलने का मामला सामने आने पर सहसा विश्वास नहीं हुआ, लेकिन ब्रिटिश अखबारों में तथ्यों और दस्तावेज सहित रिपोर्ट आने पर बात समझ में आई।
यों भारत के सामान्य वर्ग में पला-बड़ा होने से मेरी धारणा सदैव यह रही है कि कोई गरीब, अशिक्षित या पिछड़ा होने मात्र से बेईमान या अपराधी हो ही नहीं सकता। भारत में बड़े पैमाने पर बेईमानी कर सकने वालों की संख्या कुछ हजार होगी। छोटी बेईमानी करने वाले कुछ लाख या अधिक पूर्वाग्रही होने पर कुछ करोड़ हो सकते हैं। तब भी एक सवा अरब की आबादी में से 98 प्रतिशत सामान्य भारतीय दुनिया के संपन्नतम लोगों से अधिक ईमानदार और मेहनत के बल पर जीने की कोशिश करते हैं। जिनके पास अधिक सुख-सुविधाएँ हैं, उनकी अपनी आमदनी, मुनाफा और साम्राज्य बढ़ाने की आकांक्षा कभी कम नहीं होती।
बहरहाल, तथ्य की बात करें। ब्रिटिश सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार 1960 के आसपास इंग्लैंड में आकर बसे स्वराज पॉल अपनी बुद्धि, मेहनत और उद्यम से अरबपति बने। संपन्न राष्ट्र ब्रिटेन के सर्वाधिक धनी व्यक्तियों में उनका नाम 88वें स्थान पर है। लॉर्ड के रूप में संसद के उच्च सदन के सम्मानित सदस्य होने के साथ ही सत्तारूढ़ लेबर पार्टी और प्रधानमंत्री सहित शीर्षस्थ नेताओं के वे करीबी हैं। उन्होंने ब्रिटेन के 2007 के संसदीय चुनाव में 4 लाख पौंड से अधिक का चंदा दिया।
इसी चुनाव में प्रधानमंत्री ब्राउन के प्रचार कार्य के लिए 45 हजार पौंड दिए। तीन साल पहले अगस्त 2006 में उन्होंने बकिंघमशायर में एक भव्य बंगला 61 लाख पौंड में खरीदा था। वैसे लंदन में उनका अच्छा-खासा निवास स्थान है। हाल ही में ब्रिटिश सांसदों द्वारा अनुचित कागजी तरीकों से भत्ते लेने के आरोपों का भंडाफोड़ हुआ। इसी सनसनीखेज रहस्योद्घाटन के दौरान हमारे "अपने" लॉर्ड स्वराज पॉल द्वारा होटल के एक फ्लैट का पता दिखाकर 38 हजार पौंड (लगभग 27 लाख रुपए) सरकारी खजाने से प्राप्त करने की बात भी उजागर हो गई।
ब्रिटेन के अखबारों ने पहले पृष्ठ से लेकर अंदर के पन्नों तक पूरा कच्चा-चिट्ठा छाप दिया। सबसे दिलचस्प बात यह है कि 78 वर्षीय आदरणीय लॉर्ड स्वराज पॉल ने इस मुद्दे पर पत्रकारों से बातचीत में माना कि वह फ्लैट मेरा घर अवश्य रहा है, लेकिन मैं वहाँ कभी नहीं सोया। क्या अरबपति उद्यमी को रात में सोने के लिए किसी ठौर-ठिकाने की जरूरत नहीं होती? जिनके कई मकान, दफ्तर, होटल इत्यादि हों, उन्हें क्या अपना सही पता-ठिकाना बताने में तकलीफ होती है?
लॉर्ड पॉल दस वर्षों से जिस होटल के मालिक हैं, वह उनके वास्तविक निवास-स्थान से दूर है। क्या वह घर-परिवार के साथ रहना पसंद नहीं करते? ऐसा होता तो फिर वे होटल के फ्लैट में ही स्थायी रूप से रहकर रात बिता सकते थे, लेकिन सांसद भत्ता घोटाला कांड से यही बात उभरी है कि वे ऐसे प्रसिद्ध सांसदों में से एक हैं, जो गलत पते-ठिकाने और तरीके से भत्ते लेते रहे।
अब एक बड़े सरकारी अधिकारी को इस घोटाले की जाँच की जिम्मेदारी मिली है। ब्राउन सरकार इसे सुस्त गति से चलाना चाहती है। मकान भत्ते के अलावा अन्य भत्तों के फर्जीवाड़े के आरोपों की भी जाँच होना है। पूरा मामला 500 सांसदों की ईमानदारी-बेईमानी और नाराजगी का है। मधुमक्खी के छत्ते को छेड़ने पर कोई भले ही बच जाए, लेकिन सर्वाधिक शक्ति संपन्न सांसदों का गुस्सा झेल पाना किसके बस की बात है?
यह बात अलग है कि इस कांड का भंडाफोड़ होने से प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन ही मुसीबत में आ गए हैं। जाँच में 10 लाख पौंड खर्च होंगे, सांसदों को लाखों पौंड सरकारी खजाने में वापस करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा और अगले चुनाव का राजनीतिक रास्ता काँटों भरा होगा।
ईमानदारी और सदाशयता के लिए धन नहीं, अच्छी सोच अच्छे संस्कार और नेक इरादों की जरूरत होती है। धनपतियों की इज्जत समाज में हो सकती है, लेकिन असल में अधिक आदर उन्हीं का होना चाहिए, जो ईमानदारी और मेहनत से अपना और समाज का भला करते हैं।
अब ब्रिटेन के संपन्न सांसद कुछ हजार पौंड के लिए बेईमानी करते हैं तो एशिया, अफ्रीका या लातिन अमेरिका के किसी देश में बेहद गरीब क्षेत्र के प्रतिनिधि द्वारा थोड़ी गड़बड़ करने पर बवाल क्यों मचता है? उनके साथ पूरी सत्ता-व्यवस्था भ्रष्ट क्यों कहलाती है?
पिछले दिनों यह तथ्य सामने आया है कि अमेरिकी कंपनियाँ भारत के विभिन्न संस्थानों के अधिकारियों को रिश्वत देकर काम निकलवाती रही हैं। वहाँ अमेरिकी संसद या मीडिया में भंडाफोड़ होने के बावजूद उन बदनाम कंपनियों का धंधा कम नहीं हो रहा है। ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भ्रष्ट आचरण पर कुछ भारतीय अधिकारियों (वर्तमान या सेवानिवृत्त हो चुके) पर थोड़ी कार्रवाई हो जाएगी, लेकिन क्या उन पर भारत में प्रतिबंध लग सकता है?
ब्रिटेन और अमेरिका में ऐसी फर्में हैं, जो टैक्स चोरी के तरीके बताकर करोड़ों कमाती हैं। ब्रिटेन में ही नामी खिलाड़ियों और हस्तियों द्वारा धर्मार्थ खर्च दिखाकर 2190 करोड़ पौंड का इनकम टैक्स घोटाला करने का मामला भी सामने आया है। अब खिलाड़ी, सिने अभिनेता कितने ही प्रसिद्ध हो जाएँ, टैक्स चोरी करके अधिक कमाई और बचत की इच्छा तो रखते ही हैं।
भारत में अधिकांश नौकरीपेशा लोग समय पर आय कर देने, रिटर्न दाखिल करने, बिजली या टेलीफोन का बिल अथवा हाउस टैक्स इत्यादि दने की चिंता करते हैं, लेकिन आमदनी करोड़ों और अरबों रुपयों की हो जाने पर येन-केन तरीकों से नियम-कानून को धता बताने, टैक्स चोरी करने, कागजी परियोजनाएँ दिखाकर करोड़ों डॉलर की विदेशी पूँजी लाने तथा उसे उद्योग-धधे की बजाय शेयर बाजार में लगा देने और अपने प्रतिद्वंद्वियों को मात देने के लिए हर हथकंडे अपनाने की कोशिश होने लगती है।
वास्तविकता यह है कि ईमानदारी और सदाशयता के लिए धन नहीं, अच्छी सोच अच्छे संस्कार और नेक इरादों की जरूरत होती है। धनपतियों की इज्जत समाज में हो सकती है, लेकिन असल में अधिक आदर उन्हीं का होना चाहिए, जो ईमानदारी और मेहनत से अपना और समाज का भला करते हैं।