Mother Teresa: संत मदर टेरेसा की पुण्‍यतिथि 05 सितंबर को, जानें उनके कार्य

WD Feature Desk

बुधवार, 4 सितम्बर 2024 (15:35 IST)
Highlights 
 
* मदर टेरेसा कौन थीं।
* मदर टेरेसा के जीवन के बारे में जानें।
* 05 को मदर टेरेसा की पुण्यतिथि और‍ शिक्षक दिवस।

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Mother Teresa Biography : 05 सितंबर को मदर टेरेसा की पुण्यतिथि है और उन्हें मानवता की मिसाल और शां‍ति की दूत कहा जाता है। बता दें कि इसी दिन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती भी होती है और इस दिन शिक्षक दिवस/ टीचर्स डे मनाया जाता है। हमेशा नीली किनारी की सफेद धोती पहनने वाली मदर टेरेसा का कहना था कि दुखी मानवता की सेवा ही जीवन का व्रत होना चाहिए। 
 
आइए जानते हैं मदर टेरेसा के बारे में...
 
जिंदगीभर जरूरतमंद लोगों की सेवा कर अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर देने वाली मदर टेरेसा का जन्म यूगोस्लाविया के स्कॉप्जे में 26 अगस्त 1910 को हुआ था। उनका असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजिजू था, जो बाद में 'मदर टेरेसा' कहलाईं। 
 
मदर टेरेसा रोमन कैथोलिक नन थीं जिनके पास भारतीय नागरिकता थी। मात्र 18 वर्ष की उम्र में लोरेटो सिस्टर्स में दीक्षा लेकर वे सिस्टर टेरेसा बनीं थी। फिर वे भारत आकर ईसाई ननों की तरह अध्यापन से जुड़ गईं। कोलकाता के सेंट मैरीज हाईस्कूल में पढ़ाने के दौरान एक दिन कॉन्वेंट की दीवारों के बाहर फैली दरिद्रता देख वे विचलित हो गईं। वह पीड़ा उनसे बर्दाश्त नहीं हुई और कच्ची बस्तियों में जाकर सेवा कार्य करने लगीं। 
 
हर कोई किसी न किसी रूप में भगवान है या फिर प्रेम का सबसे महान रूप है सेवा। यह उनके द्वारा कहे गए सिर्फ अनमोल वचन नहीं हैं बल्कि यह उस महान आत्मा के विचार हैं जिन्होंने कुष्ठ और तपेदिक जैसे रोगियों की सेवा कर संपूर्ण विश्व में शांति और मानवता का संदेश दिया। 'सच्ची लगन और मेहनत से किया गया काम कभी निष्फल नहीं होता', यह कहावत मदर टेरेसा के साथ सच साबित हुई।

इस दौरान उन्होंने 1948 में वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और तत्पश्चात 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की। काम इतना बढ़ता गया कि सन् 1996 तक उनकी संस्था ने करीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले जिससे करीबन 5 लाख लोगों की भूख मिटने लगी। 
 
उनके जीवन के एक प्रसंग के अनुसार एक बार एक इंटरव्यू लेने वाले ने मदर टेरेसा से पूछा- जब आप प्रार्थना करती हैं तो ईश्वर से क्या कहती हैं? उन्होंने जवाब दिया- मैं कुछ कहती नहीं, सिर्फ सुनती हूं। इंटरव्यू करने वाले को ज्यादा तो समझ नहीं आया, पर उसने दूसरा प्रश्न पूछा- तो फिर जब आप सुनती हैं, तो ईश्वर आपसे क्या कहता है? मदर- वह भी कुछ नहीं कहता, सिर्फ सुनता है। फिर कुछ देर मौन छा गया, इंटरव्यू करने वाले को आगे का प्रश्न समझ ही नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। थोड़ी देर बाद इस मौन को तोड़ते हुए मदर टेरेसा ने खुद कहा- क्या आप समझे, जो मैं कहना चाहती थी, मुझे माफ कीजिएगा। मेरे पास आपको समझाने का कोई दूसरा तरीका नहीं है। वे स्वयं लाखों लोगों के इलाज में जुट गईं और शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजी गईं। 
कहा जाता है कि मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी की शाखाएं असहाय और अनाथों का घर है। उन्होंने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले, जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं। उन्होंने अपने जीवन को बेसहारा, गरीबों और बीमार लोगों की सेवा करने में बिताया।
 
आज हमारे मदर टेरेसा बीच में नहीं हैं लेकिन उनके विचारों को मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सिस्टर्स आज भी जीवित रखे हुए हैं। उन्हीं में से कुछ सिस्टर्स आज भी सेवा कार्य में जुटी हुई हैं। मिशनरीज ऑफ चैरिटी में रह रहीं सिस्टर्स तन-मन-धन से अनाथों की सेवा में लगी हुई हैं। सिस्टर्स मानती हैं कि हम लोग जो भी कार्य कर रहे हैं उसके लिए ईश्वर का धन्यवाद देते हैं कि उसने हमें इस कार्य के योग्य समझा। उनकी यह सेवा पूरी तरह नि:स्वार्थ सेवा है।
 
सिस्टर्स के साथ दूसरे सहयोगी भी हैं, जो सिक होम में रह रहे मरीजों की सेवा करते हैं, उनकी साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं, उन्हें अच्छा खाना देते है। उनके लिए धर्म, जाति और वर्ग का कोई मतलब नहीं है। यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं और एकसाथ रहते हैं। उनका कार्य बस उनकी सेवा करना है। अगर किसी की मृत्यु होती है, तो उसका अंतिम संस्कार भी उसी के धर्मानुसार ही किया जाता है। 
 
मदर टेरेसा ने जीवनभर शांति और प्रेम का संदेश दिया। शां‍ति की दूत और मानवता की प्रतिमूर्ति रहीं मदर टेरेसा का निधन 05 सितंबर 1997 को हुआ था। ऐसी निर्मल हृदय मदर टेरेसा को उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन। 
 
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