हार के बाद भाजपा खुद यह मान रही है कि न तो हमारे पास स्थानीय मुद्दे थे और न स्थानीय नेता! आप आश्चर्य न करें, पूर्व के विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता जगदीश मुखी का यह मानना है कि जब तक स्थानीय नेतृत्व और स्थानीय उम्मीदवारों को प्रमोट नहीं किया जाएगा, चुनाव जीतना मुश्किल होगा!
तो क्या विजय कुमार मल्होत्रा बाहरी नेता हैं? मैं यह नहीं कह रहा हूँ, लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं को समझना चाहिए कि पार्टी कार्यकर्ता आखिर क्या चाहते हैं। जनकपुरी से चौथी बार ब़ड़े अंतर से जीतने वाले भाजपा नेता जगदीश मुखी ने थोपे गए नेता, उम्मीदवार और मुद्दे को भाजपा की हार का कारण माना।
जीतने के बाद जगदीश मुखी ने कहा कि जनता के रूझान से पता चलता है कि उसने न सिर्फ पार्टी देखा है, बल्कि उम्मीदवारों के व्यक्तित्व को भी देखा है। किसने काम किया है, उसे जिताया है और जिसने काम नहीं किया है उसे बाहर कर दिया है।
उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व को समझना चाहिए कि कोई स्थानीय नेता ही स्थानीय मुद्दे को सही ढंग से जनता के समक्ष रख सकता है। दूसरी तरफ कई विधानसभा क्षेत्रों में बाहरी व्यक्तियों को भी उम्मीदवार बनाया गया, जिसका खामियाजा पार्टी को उठाना प़ड़ा। उनके अनुसार यह भी लगता है कि राष्ट्रीय मुद्दे उठाने की वजह से हमारे स्थानीय मुद्दे गौण पड़ गए और हम पिछड़ गए।
तिलक नगर से तीसरी बार भाजपा के टिकट पर जीते ओ.पी.बब्बर भी इससे इत्तेफाक रखते हैं। ओ.पी.बब्बर कहते हैं कि दिल्ली में बिजली के भागते मीटर को प्रमुख मुद्दा बनाना चाहिए था, लेकिन मुख्य मुद्दा बन गया आतंकवाद और बिजली का मीटर तीसरे स्थान पर खिसक गया।
दूसरी तरफ कांग्रेस मेट्रो और फ्लाईओवर के रूप में दिल्ली का विकास दिखाने में सफल रही शायद इसी लिए दिल्ली की जनता ने दिल्ली के लिए कांग्रेस को चुना। हरि नगर से चार बार जीतने वाले वाले भाजपा नेता हरशरण सिंह भाजपा की हार से दुखी नहीं हैं। बल्ली कुछ दार्शनिक अंदाज में कहते हैं कि जो हुआ अच्छे के लिए ही हुआ। पार्टी चुनाव जीत जाती तो मैं अपने लोगों से दूर हो जाता।
अब जब पार्टी हार गई है तो मैं हरि नगर की अपनी जनता के काफी करीब रहूँगा। करीब 29 हजार वोटों से जीतने वाले हरशरण सिंह बल्ली भी मानते हैं कि मदनलाल खुराना के स्तर का स्थानीय नेता अभी हमारे पास नहीं है।
सनद रहे कि भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री के रूप में प्रमोट किए जा रहे विजय कुमार मल्होत्रा राष्ट्रीय राजनीति करते रहे हैं। भीतरखाने में दिल्ली के स्थानीय नेता शुरू से उनका विरोध कर रहे थे, लेकिन लगता है कि हार के बाद यह खुलकर सामने आ गया है।