दिल्ली के खामोश वोटरों ने तमाम आशंकाओं के बावजूद कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत दे दिया है। वोटरों पर भाजपा के नारे 'महँगी पड़ी कांग्रेस' का असर ही नहीं पड़ा। कांग्रेस का नारा 'विकास की गति को रुकने न दें' भाजपा पर भारी पड़ा। कांग्रेस के तीन तिगाड़ा-काम बिगाड़ा और भारी पड़ी भाजपा नारे का जादू दिल्ली के वोटरों पर जमकर चला।
कांग्रेस को जीत मिली और खूब मिली। उम्मीद से ज्यादा मिली। सब हैरान हैं यह कैसे हो गया। शीला दीक्षित मुख्यमंत्री की तीसरी पारी खेलने के लिए तैयार हैं। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के साथ ही सभी मंत्री फिर से विधानसभा में दिखाई देंगे। मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव रहे नसीब सिंह भाजपा के मुख्य रणनीतिकार और पार्टी महासचिव अरुण जेटली के करोड़पति निजी सहायक ओपी शर्मा को हराकर तीसरी बार विधानसभा पहुँचे।
कांग्रेस ने सत्ता विरोधी लहर के बीच अपनी सफल रणनीति बनाई। चुनाव से पहले ही वोटरों को लुभाने के लिए कई योजनाएँ शुरू की गईं। अनधिकृत कॉलोनियों को रेगुलर करने के लिए प्रोविजनल सर्टीफिकेट दिए गए। भाजपा के नेता हवा में योजनाएँ बनाते रहे।
भाजपा ने विजय कुमार मल्होत्रा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके भी अंदरूनी राजनीति को भड़का दिया था। डॉ. हर्षवर्धन की दिल्ली नगर निगम में भाजपा पार्षदों को उम्मीदवार न बनाने की जिद के कारण कमजोर उम्मीदवार मैदान में उतार दिए। आला नेताओं की सिफारिश से पैराशूट उम्मीदवार मैदान में लाकर छोड़ दिए गए। ऐसे उम्मीदवारों को जनता ने पहले टाटा बोल दिया था।
कमजोर उम्मीदवार उतारने को लेकर भाजपा में अंदरूनी लड़ाई और तेज हो गई। मध्यप्रदेश से दिल्ली आए प्रदेश संगठन महामंत्री भी भाजपा को महँगे पड़े। करोड़ों रु. चुनावी रणनीति पर खर्च किए गए। भाजपा के रणनीतिकार दफ्तर में बैठकर ही जिताने की रणनीति बनाते रहे।
भाजपा ने चुनावी अभियान कांग्रेस से बहुत पहले शुरू कर दिया था। दिल्ली में हर जगह चुनावी होर्डिग्ंस टाँगे गए। कांग्रेस ने इसका भी जोरदार जवाब दिया। दिल्ली के वोटरों ने कांग्रेस का पूरा साथ दिया। आतंकवाद, हाथी, बागियों का हल्ला और चुनावी हवा में लहराए तमाम मुद्दे हवा हो गए। जीता तो शीला दीक्षित का करिश्मा।
कांग्रेस के डॉ. योगानंद शास्त्री महरौली से, विधानसभा अध्यक्ष प्रेम सिंह आम्बेडकर नगर और रामबाबू शर्मा रोहतास नगर से बागी उम्मीदवारों के बावजूद विजयी रहे। वैसे भी भाजपा का देहात, मुस्लिम और अनुसूचित जाति के वोटरों पर जादू नहीं चला। 12 आरक्षित सीटों में से भाजपा केवल करोलबाग और त्रिलोकपुरी में ही कामयाब रही है। मुंडका और रिठाला सीट पूर्व मुख्यमंत्री स्व. साहिबसिंह वर्मा के नाम पर भाजपा के खाते में गई है।
देहात के वोटरों के अलावा शहरी वोटरों पर भी विकास का नारा असरदार रहा और ऐसा रहा कि भाजपा के कई दिग्गज निपट गए। भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अनिता आर्य पटेल नगर जैसी सीट से चुनाव हार गईं। भाजपा के वजीरपुर से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मांगेराम गर्ग, उत्तम नगर से प्रदेश महामंत्री पवन शर्मा, रोहतास नगर से प्रदेश महामंत्री आलोक कुमार, मालवीय नगर से पूर्व विधायक रामभज चुनाव हार गए।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ.हर्षवर्धन को भी कृष्णा नगर से चौथी बार जीतने के लिए बहुत जोर लगाना पड़ा। उनकी जीत का बहुत ही कम अंतर रहा। उनके पड़ोस में कांग्रेस के अरविंदरसिंह लवली ने जीत का रिकॉर्ड बनाया है।
दिल्ली के मतदाताओं के फैसले से भाजपा के सीएम इन वेटिंग मल्होत्रा वेटिंग ही रह गए। मतदाताओं के फैसले ने भाजपा के लिए आगामी लोकसभा चुनाव के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। सात में से किसी भी लोकसभा सीट में भाजपा को बढ़त नहीं मिली है।
ऐसा ही रहा तो भाजपा के पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी का सपना पूरा करने के लिए दिल्ली से मदद नहीं मिलने वाली है। इन नतीजों से भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता कह रहे हैं कि जो हुआ सही हुआ, क्योंकि इन लोगों पर बाहरी उम्मीदवारों को थोपा गया था।