भगवान धन्वंतरि चिकित्सा के देवता माने जाते हैं। दीपावली पर्व के पहले दिन यानी धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा-अर्चना होती है। मान्यतानुसार धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि अखंड लक्ष्मी का वरदान और स्थायी समृद्धि, आरोग्य, सुदंरता और समृद्धि का आशीर्वाद का आशीष देते हैं।
यहां पाठकों के लिए हम लाए हैं भगवान धन्वंतरि पौराणिक मंत्र, स्तोत्र, आरती, स्तुति-
धन्वंतरि स्तोत्र
शंखं चक्रं जलौकादधतम्-
अमृतघटम् चारूदौर्भिश्चतुर्भि:।
सूक्ष्म स्वच्छ अति-हृद्यम् शुक-
परि विलसन मौलिसंभोजनेत्रम्।।
कालांभोदोज्वलांगं कटितटविल-
स: चारूपीतांबराढ़यम्।
वंदे धन्वंतरीम् तम् निखिल
गदम् इवपौढदावाग्रिलीलम्।।
यो विश्वं विदधाति पाति-
सततं संहारयत्यंजसा।
सृष्ट्वा दिव्यमहोषधींश्च-
विविधान् दूरीकरोत्यामयान्।।
विंभ्राणों जलिना चकास्ति-
भुवने पीयूषपूर्ण घटम्।
तं धन्वंतरीरूपम् इशम्-
अलम् वन्दामहे श्रेयसे।।
भगवान धन्वंतरि जी की आरती
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वं.।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वं.।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वं.।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वं.।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वं.।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वं.।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वं.।।
पौराणिक मंत्र-
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥