साईं बाबा एक मस्जिद में रहते थे जो पहले खंडहर थी लेकिन बाद में भक्तों ने उसको ठीक ठाक कर दी थी। मस्जिद के पास ही और भी कई स्थान था जहां बाबा विहार करते, विश्राम करते और उपदेश देते थे। साईं बाबा के शिरडी में आने के बाद से शिरडी और आस-पास के मुसलमान हिन्दुओं के साथ दीपावली का त्योहार बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाने लगे थे। उसी तरह ईद भी मनाई जाती थी।
संध्या के समय साई बाबा गांव में जाकर दुकानदारों से भिक्षा में तेल मांगते और मस्जिद में दिया जलाया करते थे। एक दिन एन दिवाली के वक्त जब बाबा दुकानदारों से तेल मांगने गए तो उन्होंने तेल देने से मना कर दिया। गांव के प्रत्येक दुकानदार ने बाबा को यह कहते हुए तेल देने से इनकार कर दिया कि आज तो उसके पास अपने घर में जलाने के लिए भी तेल की एक बूंद भी नहीं है।
अत: बाबा को खाली हाथ ही मस्जिद में लौटना पड़ा। साईं बाबा के मस्जिद खाली हाथ लौटने पर उनके शिष्य निराश हो गए। भक्तों की निराशा को समझकार बाबा ने मस्जिद के अंदर बने कुएं में से एक घड़ा पानी भरकर खींचा। बाबा ने उस घड़े में अपने डिब्बे में बचे हुए तेल की कुछ बूंदे डाल दी। बाबा इस डिब्बे में भिक्षा में तेल लाते थे। भक्त चुपचाप खड़े उनको यह सब करते देखते रहे।
बाद में बाबा ने उस घड़े का पानी दियों में भर दिया। फिर रूई की बत्तियां बनाकर उन दीयों में डाल दीं और फिर बत्तियां जला दीं। सारे दिये जगमग कर जल उठे। यह देखकर शिष्यों और भक्तों की हैरानी का ठिकाना न रहा। इस चमत्कार को शिरडी वालों ने अपनी आंखों से देखा। इसी कारण साई भक्त दिवाली के दिन भगवान का पूजन कर उनकी आरती करते आ रहे हैं।