-संदीप चौबे
भारतीय संस्कृति में अधिकांश त्योहार किसी मंदिर, धार्मिक स्थल, नदियों के किनारे या किसी सार्वजनिक स्थल पर एकत्रित होकर सामूहिक रूप से मनाए जाते हैं। लेकिन सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की कामना के साथ दीपावली हम अपने घर पर ही मनाते हैं। ऐसे में, कामनापूर्ति के लिए घर भी महत्वपूर्ण हो जाता है। घर, यानी उसकी संरचना, उसका वास्तु। यही कारण है कि दीपावली से जुड़ी बहुत सारी तैयारियां, रीति-रिवाज वास्तव में वास्तु के सिद्धांत ही हैं जिनका हम जाने-अनजाने में पालन करते हैं इसलिए आप इन बातों का ध्यान अवश्य रखें-
* वास्तु में भवन का मुख्य द्वार बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसे स्वागत द्वार भी कहा जाता है। इसीलिए दीप पर्व के दौरान मुख्य द्वार पर तोरण, रंगोली, साज-सज्जा के साथ ही दीपक जलाना शुभ ऊर्जाओं को आमंत्रण और उनके स्वागत की तरह होता है।
* दिवाली के लिए भवन की साफ-सफाई और लिपाई-पुताई की परंपरा है, क्योंकि दरारें, टूट-फूट, सीलन के निशान और बदरंगी दीवारें शुभ ऊर्जा को ग्रहण करने में असमर्थ होती हैं।
* वास्तु के अनुसार ईशान यानी उत्तर-पूर्व दिशा का पूजन कक्ष सर्वोत्तम होता है। दीपावली पूजा भी इसी पूजन कक्ष में या पूर्व-मध्य अथवा उत्तर-मध्य के किसी कक्ष में की जानी चाहिए। घर के मध्य भाग को ब्रह्म स्थान कहा जाता है। यहां भी पूजन कर सकते हैं। पूजा के समय पूर्व या पश्चिममुखी रहें। अन्य दिशाएं वर्जित हैं।