दीपावली पर घर-द्वार की रौनक बढ़ाती खूबसूरत तोरण, हर घर के दरवाजे को आकर्षक बना देती हैं। मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए साज-सज्जा का एक बेहतरीन और सुंदर तरीका है यह तोरण। जानिए मन मोहते तोरण के विभिन्न प्रकार और अन्य जानकारी...
लोक कलात्मकता - आदिवासी महिलाओं के द्वारा बनाए गए तोरणों में एक अद्भुत लोक कलात्मकता है। इनमें उपयोग होने वाली वाली मोटी रस्सी जिसे हम रस्सी ही समझते हैं ये असल में रस्सी नहीं, बल्कि ना़ड़ा होता है जिसके ऊपर रेशम के रंगीन धागों को हाथ से लपेटा जाता है। फिर हाथ से ही गुड्डा-गुडिया, चिडिया और कई आकृतियां तैयार की जाती हैं, जिनके अंदर लक़ड़ी का बुरादा और स्पंज भरा जाता है। फिर उनकी चमक बढ़ाने के लिए उन पर सितारे लगाए जाते हैं। इसके अलावा आपको घंटी वाले, घुंघरु वाले, कौ़ड़ी लगे, कांच से ज़ड़े, रंगीन मोतियों से सजे, कप़ड़े वाले, बासकेट से सजे छोटे-बड़े तोरण भी मिल जाएंगे। ये तोरण लंबे और आड़े दोनों प्रकार के हैं। इनकी कीमत 50 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक है।
आम लोग तैयार नहीं कर पाते - सामान्य तोरणों की अपेक्षा इन तोरणों को बनाने में कुछ ज्यादा समय लगता है। एक तोरण को तैयार करने में लगभग तीन से चार दिन का समय लग जाता है। इसे आम लोग तैयार नहीं कर पाते, इनके लिए कुछ विशेष लोगों की आवश्यकता होती है। पहले इन लोगों को प्रशिक्षण दिया जाता है। उसके बाद ही ये कारीगर एक अच्छा तोरण तैयार कर पाते हैं।
चार दिन में बनता है एक तोरण - गुजरात के पुरषोत्तम आदिवासी ने बताया कि 100 लोगों का समूह मिलकर यह काम करता है। इसको बनाने के लिए जो कच्ची साम्रगी की आवश्यकता होती है जिसे वे अहमदाबाद से लेकर आते हैं। करीब चार दिन की कड़ी मेहनत के बाद एक तोरण तैयार होता है, जिसमें मात्र 30-40 रुपए का मुनाफा होता है।
और भी हैं शहर में- लोग अपने घरों में पहले आम के पत्तों के तोरण लगाते थे लेकिन वे एक ही दिन की रौनक हुआ करते थे, बदलते दौर के साथ अब आम के पत्तों की जगह प्लास्टिक के पत्तों का इस्तेमाल किया जाने लगा है। इन तोरणों में रेशम के धागों के अलावा प्लास्टिक के पत्तों का इस्तेमाल किया गया है। कुछ में प्लेन पत्ते तो कुछ में पत्तों पर गणेश और लक्ष्मी जी की छोटी-छोटी आकृतियों को लगाया है। साथ ही कलश और रुद्राक्ष के साथ छोटी-छोटी घंटियों को भी लगाकर कुछ अलग लुक देने का प्रयास किया गया है।