लक्ष्मी का लघु पूजन हिन्दी में

- डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंकार
(अनुमानित समय- 25 मिनट)
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(नोट :- यहाँ हमने संस्कृत के मान्य नियमों की अपेक्षा सही उच्चारण हो सके, इस हेतु संधि-विच्छेद किया है।)

महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पूजन करें। अपनी जानकारी हेतु पूजन शुरू करने के पूर्व प्रस्तुत पद्धति एक बार जरूर पढ़ लें।

पवित्रकरण :
बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-

ॐ अ-पवित्र-ह पवित्रो वा सर्व-अवस्थाम्‌ गतोअपि वा ।
य-ह स्मरेत्‌ पुण्डरी-काक्षम्‌ स बाह्य-अभ्यंतरह शुचि-हि ॥
पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌ पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌, पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌ ।

आसन :
निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-
ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वम्‌ विष्णु-ना घृता ।
त्वम्‌ च धारय माम्‌ देवि पवित्रम्‌ कुरु च-आसनम्‌ ॥

आचमन :
दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें-

ॐ केशवाय नम-ह स्वाहा,
ॐ नारायणाय नम-ह स्वाहा,
ॐ माधवाय नम-ह स्वाहा ।

यह बोलकर हाथ धो लें-
ॐ गोविन्दाय नम-ह हस्तम्‌ प्रक्षाल-यामि ।

दीपक :
दीपक प्रज्वलित करें (एवं हाथ धोकर) दीपक पर पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
दीप देवि महादेवि शुभम्‌ भवतु मे सदा ।
यावत्‌-पूजा-समाप्ति-हि स्याता-वत्‌ प्रज्वल सु-स्थिरा-हा ॥
(पूजन कर प्रणाम करें)

स्वस्ति-वाचन :
निम्न मंगल मंत्र बोलें-
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा ।
स्वस्ति न-ह ताक्षर्‌यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु ॥

द्-यौ-हौ शांति-हि अन्‌-तरिक्ष-गुम्‌ शान्‌-ति-हि पृथिवी शान्‌-ति-हि-आप-ह ।
शान्‌-ति-हि ओष-धय-ह शान्‌-ति-हि वनस्‌-पतय-ह शान्‌-ति-हि-विश्वे-देवा-हा

शान्‌-ति-हि औष-धय-ह ब्रह्म शान्‌-ति-हि सर्व(गुम्‌) शान्‌-ति-हि शान्‌-ति-हि एव शान्‌-ति-हि सा
मा शान्‌-ति-हि। यतो यत-ह समिहसे ततो नो अभयम्‌ कुरु ।
शम्‌-न्न-ह कुरु प्रजाभ्यो अभयम्‌ न-ह पशुभ्य-ह। सु-शान्‌-ति-हि-भवतु॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्‌-महा-गण-अधिपतये नम-ह ॥

(नोट : पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। श्री महालक्ष्मी की मूर्ति एवं श्री गणेशजी की मूर्ति एक लकड़ी के पाटे पर कोरा लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर रखें व उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें।)

संकल्प :
अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर श्री महालक्ष्मी आदि के पूजन का संकल्प करें-

हरिॐ तत्सत्‌ अद्यैत अस्य शुभ दीपावली बेलायाम्‌

मम महालक्ष्मी-प्रीत्यर्थम्‌ यथासंभव द्रव्यै-है यथाशक्ति उपचार द्वारा मम्‌ अस्मिन प्रचलित व्यापरे उत्तरोत्तर लाभार्थम्‌ च दीपावली महोत्सवे गणेश, महालक्ष्मी,
महासरस्वती, महाकाली, लेखनी कुबेरादि देवानाम्‌

पूजनम्‌ च करिष्ये।
(जल छोड़ दें।)

श्रीगणेश-अंबिका पूजन
हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं श्रीअंबिका का ध्यान करें-

श्री गणेश का ध्यान :
गजाननम्‌ भूत-गणादिपति सेवितम्‌ कपित्थ जम्बूफल च-अरु-भक्षणम्‌ ।
उमा-सुतम्‌ शोक विनाश-कारकम्‌ नमामि विघ्नेश्वर पाद-पंकजम्‌ ॥

श्री अंबिका का ध्यान :
नमो देव्यै महा-देव्यै शिवायै सततम्‌ नमः ।
नम-ह्‌ प्रकृत्यै भद्रायै प्रणता-हा स्म-ताम्‌ ॥
श्रीगणेश अंबिकाभ्याम्‌ नम-ह, ध्यानम्‌ समर-पयामि ।

(श्री गणेश मूर्ति अथवा मूर्ति के रूप में सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ, नमस्कार करें।)

अब भगवान गणेश-अंबिका का आह्वान, प्रतिष्ठा, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पुनराचमन हेतु निम्न प्रक्रिया करें। इस हेतु अक्षत अर्पित करें व जल की आचमनी छोड़ें :-

अक्षत चढ़ाएँ :
ॐ भू-हु भुव-ह्‌ स्व-ह्‌ गणेश-अम्बिका-भ्याम्‌ नम-ह्‌,
गणेश-अम्बिकाम्‌ आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च ।

पुनः अक्षत चढ़ाएँ :-
ॐ भू-हु भुव-ह्‌ स्व-ह्‌ गणेश-अम्बिका-भ्याम्‌ नम-ह्‌,
प्रतिष्ठा पूर्वकम्‌ आसनार्थे अक्षतान्‌ समर्पयामि ।

अब आचमनी से जल चढ़ाएँ :-
ॐ भू-हु भुव-ह्‌ स्व-ह्‌ गणेश-अम्बिका-भ्याम्‌ नम-ह्‌,
एतानि पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनः आचमनीयानि समर्पयामि।

शुद्धोदक स्नानम्‌ :
शुद्ध जल से स्नान निम्न मंत्र बोलते हुए कराएँ-
गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदा सिंधु कावेरी स्नानार-थम्‌ प्रति-गृह्य-ताम ॥
ॐ भु-हु-भुव-ह स्व-ह गणेश-अम्बिका-भ्याम्‌ नम-ह, शुद्ध-उदक स्नानम्‌ समर-पयामि।
(शुद्ध जल से स्नान कराएँ)
अब आचमन हेतु जल दें-
शुद्धोदक स्नान-आन्ते आचमनीय जलम्‌ समर-पयामि।

वस्त्र एवं उपवस्त्र :
निम्न मंत्र बोलकर वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित करें :-

शीत-वात-उष्ण-सन्‌त्राणम्‌ लज्जायाम्‌ रक्षणम्‌ परम्‌ ।
देह-अलंकरणम्‌ वस्त्र-मत-ह शांति प्रयच्छ मे ॥

यस्य-अभावेन शास्त्रोक्तम्‌ कर्म किंचिन सिध्य-ति ।
उप-वस्त्रम्‌ प्रय-च्छामि सर्व-कर्म-उप-कारकम्‌ ॥

ॐ भु-हु-भुव-ह स्व-ह गणेश-अम्बिका-भ्याम्‌ नम-ह, वस्त्रम्‌-उपवस्त्रम्‌ समर-पयामि ।
(श्री गणेश-अम्बिका को वस्त्र-उपवस्त्र समर्पित करें।)

आचमन के लिए जल अर्पित करें-
वस्त्र-उप-वस्त्र-अन्ते आचमनीयम्‌ जलम्‌ समर-पयामि ॥

नाना परिमल द्रव्य :
अबीर, गुलाल इत्यादि अर्पित करें-
अबीरम्‌ च गुलालम्‌ च हरिद्रा-आदि-समन्वितम्‌ ।
नाना परिमल द्रव्यम्‌ गृहाण परमेश्वर-ह्‌ ॥
ॐ भु-हु-भुव-ह स्व-ह गणेश-अम्बिका-भ्याम्‌ नम-ह, नाना-परिमल-द्रव्याणि समर-पयामि ।
(अबीर, गुलाल, पुष्प इत्यादि अर्पित करें।)

नैवेद्य :
मालपुए व अन्य मिष्ठान्न यथाशक्ति अर्पित करें-
शर्करा-खंड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च ।
आहारम्‌ भक्ष्य भोज्यम्‌ च नैवेद्यम्‌ प्रति-गृह्‌-य-ताम्‌ ॥
ॐ भु-हु-भुव-ह स्व-ह गणेश-अम्बिका-भ्याम्‌ नम-ह, नैवेद्यम्‌ निवेद-यामि ॥

इसके पश्चात जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें :-

ॐ प्राणाय स्वाहा ।
ॐ अपानाय स्वाहा ।
ॐ समानाय स्वाहा ।
ॐ उदानाय स्वाहा ।
ॐ व्यानाय स्वाहा ।

नैवेद्यान्ते आचमनीयम्‌ जलम्‌ समर-पयामि ।

(नैवेद्य निवेदित करें व जल अर्पित करें।)

अनया पूजया गणेशाम्बिके प्रीयेताम्‌ (कहकर जल छोड़ दें।)

नोट :- इसके पश्चात (1) षोडशमातृका पूजन (2) कलश पूजन तथा (3) नवग्रह पूजन किया जाता है। जो व्यक्ति षोडशमातृका, कलश तथा नवग्रह पूजन करना चाहते हैं, वे यहाँ क्लिक करें।

अन्यथा निम्न क्रम से महालक्ष्मी पूजन करें।

महालक्ष्मी पूजन प्रारंभ
श्रीसूक्त की ऋचाओं के साथ विशिष्ट पूजन

विशेष नोट :- श्रीसूक्त में लक्ष्मी की कृपा व अलक्ष्मी की अकृपा के लिए प्रार्थना है। अतः ध्यानपूर्वक मंत्र बोलें। आपकी सुविधा के लिए जहाँ अलक्ष्मी शब्द बोलना है वहाँ हमने संधि विच्छेद कर दिया है।

ध्यान :
या सा पद्मा-सनस्था विपुलकटि-तटी पद्म-पत्रा-यताक्ष
गम्भीर-आवर्तना-अभि-स्तन-भार-नमिता शुभ्र-वस्त्र-उत्तरीया ॥
लक्ष्मी-ही-दिव्य-रूपै-है-मणि-गण-खचितै-है स्नापिता हेम-कुम्भै-है
सा नित्यम्‌ पद्म-हस्ता मम वसतु गृहे सर्व-मांगल्य-युक्ता ॥

ॐ हिरण्य-वर्णाम्‌ हरिणीम्‌ सुवर्ण-रजत-स्रजाम्‌ ।
चंद्राम्‌ हिरण्य-मयीम्‌ लक्ष्मीम्‌ जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, ध्यानार्थे पुष्पाणि समर-पयामि ।
(पुष्प अर्पित करें।)

आह्वान :
सर्व-लोकस्य जननीम्‌ सर्व-सौख्य-प्रदायिनीम्‌ ।
ॐ ताम्‌ म आ वह जातवेदो लक्ष्मी-मन-पगा-मिनीम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, महालक्ष्मीम्‌-आवाहयामि, आवाह-नार्थे पुष्पाणि समर-पयामि ।
(आह्वान के लिए पुष्प अर्पित करें।)

आसन :
तप्त-कांचन-वर्णाभम्‌ मुक्ता-मणि-विराजितम्‌ ।

अमलम्‌ कमलम्‌ दिव्यम्‌-आसनम्‌ प्रति-गृह्‌-य-ताम्‌ ॥
ॐ अश्र्व-पूर्वाम्‌ रथमध्याम्‌ हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्‌ ।

श्रियम्‌ देवीम्‌-उप ह्वये श्री-ही-मा देवी जुषताम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह, आसनम्‌ समर-पयामि ।
(पुष्प अर्पित करें।)

पाद्य :
गंगादि-तीर्थ-सम्भूतम्‌ गन्ध-पुष्पादि-भि-हि-युतम्‌ ।
पाद्यम्‌ ददा-म्यहम्‌ देवि गृहा-णाशु नमोऽस्तु ते ॥

ॐ काम्‌ सोस्मिताम्‌ हिरण्य-प्राकाराम्‌-आर्द्राम्‌ ज्वलन्तीम्‌ तृप्ताम्‌ तर्प-यन्तीम्‌ ।

पद्मे-स्थिताम्‌ पद्मवर्णाम्‌ तामि-होप ह्वये श्रियम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, पादयो-ह्‌ पाद्यम्‌ समर-पयामि ।

(पाद्य अर्पित करें।)

अर्घ्य :
अष्ट-गन्ध-समायुक्तम्‌ स्वर्ण-पात्र-प्रपूरितम्‌ ।
अर्घ्यम्‌ गृहाणम्‌-अद्यतम्‌ महालक्ष्मी नमोअस्तु ते ॥

ॐ चन्द्राम्‌ प्रभासाम्‌ यशसा ज्वलन्तीम्‌ श्रियम्‌ लोके देव-जुष्टाम-उदाराम्‌ ।
ताम्‌ पद्य-नीमीम्‌ शरणम्‌ प्रपद्ये-अलक्ष्मी-ह-मे नश्यताम्‌ त्वाम्‌ वृणे ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, हस्तयो-हो-अर्घ्यम्‌ समर-पयामि ।
(चन्दन मिश्रित जल अर्घ्यपात्र से देवी के हाथों में दें।)

स्नान :
मन्दाकिनि-हि-या समानीते-हे-हेमाम्‌-भोरुह-वासितै-है ।
स्नानम्‌ कुरुष्व देवेशि सलिलै-है-च-सुगन्धि-भि-हि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, स्नानम्‌ समर-पयामि ।
(स्नानीय जल अर्पित करें।)
स्नानान्ते आचमनीयम्‌ जलम्‌ समर-पयामि ।
('ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌' बोलकर आचमन हेतु जल दें।)

पंचामृत स्नान :
(दूध, दही, घी शकर एवं शहद मिलाकर पंचामृत बनाएँ व निम्न मंत्र से स्नान कराएँ।)
पयो दधि घृतम्‌ चैव मधु-शर्करया-अन्वितम्‌ ।
पंच-अमृतम्‌ मय-आनीतम्‌ स्नान-अर्‌थम्‌ प्रति-गृह्य-ताम्‌ ॥
ॐ पंच नद्य-ह्‌ सरस्वतीम्‌-अपि यन्ति सस्त्रोतस-ह्‌ ।
सरवस्ती तु पंचधा सो देशेअभवत्‌-सरित्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, पंचामृत-स्नानम्‌ समर-पयामि, पंचामृतस्नानान्ते शुद्ध-उदक-स्नानम्‌ समर-पयामि ।
(पंचामृत स्नान व जल से स्नान कराएँ।)

शुद्धोदक स्नान :
मन्दा-किन्यास्तु यद-व-अरि सर्व-पाप-हरम्‌ शुभम्‌ ।
तद-इदम्‌ कल्पितम्‌ तुभ्यम्‌ स्नान-अर्‌थम्‌ प्रति-गृह्य-ताम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, शुद्ध-उदक-स्नानम्‌ समर-पयामि ।
(गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)

आचमन :
पश्चात 'ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌' बोलकर आचमन कराएँ।

वस्त्र :
दिव्य-अम्बरम्‌ नूतनम्‌ हि क्षौमम्‌ त्वति-मनोहरम्‌ ।
दीय-मानम्‌ मया देवि गृहाण जगदम्बिके ॥

ॐ उपैतु माम्‌ देवसख-ह्‌ कीर्ति-हि-च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतो-अस्मि राष्ट्रे-अस्मिन्‌ कीर्ति-हि-वृद्धिम्‌ ददातु मे ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, वस्त्रम्‌ समर-पयामि, आचमनीयम्‌ जलम्‌ च समर-पयामि ।
(वस्त्र अर्पित करें, आचमनीय जल दें।)

यज्ञोपवीत :
ॐ तस्मादअकूवा अजायंत ये के चोभयादत-ह्‌ ।
गावोह यज्ञिरे तस्मात्‌-अस्मात्‌-जाता अजावय-ह्‌ ॥

ॐ यज्ञोपवीतम्‌ परमम्‌ वस्त्रम्‌ प्रजा-पतये-हे त्सहजम्‌ पुरस्तात ॥
आयुष्यम अग्रयम्‌ प्रति-मुंच शुभ्रम्‌ यज्ञोपवीतम्‌ बलमस्तुतेज-ह्‌ ।

ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌ ।
यज्ञोपवीतम्‌ समर-पयामि ।

गन्ध :
श्रीखण्डम्‌ चन्दनम्‌ दिव्यम्‌ गन्धाढ्यम्‌ सु-मनोहरम्‌ ।
विलेपनम्‌ सुरश्रेष्ठे चन्दनम्‌ प्रति-गृह्य-ताम्‌ ॥

ॐ गन्धद्वाराम्‌ दुराधर्षाम्‌ नित्युपुष्टाम्‌ करीषिणीम्‌ ।
ईश्वरीम्‌ सर्व-भूतानाम्‌ तामिहोप ह्वये श्रियम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, गन्धम्‌ समर-पयामि ।
(केसर मिश्रित चन्दन अर्पित करें।)

अक्षत :
अक्षता-हा-च सुरश्रेष्ठे कुंकुम्‌-आक्ता-हा माक्ता-हा सु-शोभिता-हा ।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, अक्षतान्‌ समर-पयामि ।
(कुंकुमाक्त अक्षत चढ़ाएँ।)

पुष्पमाला :
माल्या-दीनि सु-गन्धीनि मालत्या-दीनि वै प्रभो ।
मयाम्‌-आनितानि पुष्पाणि पूजार्‌थम्‌


ॐ मनस-ह्‌ काममा-कूतिम्‌ वाच-ह्‌ सत्यमशीमहि ।
पशूनाम्‌ रूपमन्नास्य मयि श्री-ही श्रयताम्‌ यश-ह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमम्‌, पुष्पम्‌ पुष्पमालाम्‌ च समर-पयामि । (लाल कमल के पुष्प तथा पुष्पमालाओं से अलंकृत करें।)

धूप :
वनस्पति-रस-उद्भूतो गन्धाढ्य-ह्‌ सुमनोहर-ह्‌ ।
आघ्रेय-ह्‌ सर्व-देवानाम्‌ धूपोअयम्‌ प्रति-गृह्य-ताम्‌ ॥

ॐ कर्र्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।
श्रियम्‌ वासय में कुले मातरम्‌ पद्म-मालिनीम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, धूपम्‌-आघ्रापयामि ॥
(धूप आघ्रापित करें।)

दीप :
कार्पास वर्ति-संयुक्तम्‌ घृत-युक्तम्‌ मनोहरम्‌ ।
तमो-नाशकरम्‌ दीपम्‌ गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ आप-ह्‌ सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीम्‌ मातरम्‌ श्रियम्‌ वासय मे कुले ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, दीपम्‌ दर्शयामि ।
(दीपक दिखाकर हाथ धो लें।)

नैवेद्य :
(मालपुए सहित पंचमिष्ठान्ना व सूखे मेवे।)
नैवेद्यम्‌ गृह्यताम्‌ देवि भक्ष्य-भोज्य समन्वितम्‌ ।

षड्-रसै-न्वितम्‌ दिव्यम्‌ लक्ष्मी देवि नमोअस्तु ते ॥
ॐ आर्द्राम्‌ पुष्करिणीम्‌ पुष्टिम्‌ पिंगलाम्‌ पद्ममालिनीम्‌ ॥

चन्द्राम्‌ हिरण्मयीम्‌ लक्ष्मीम्‌ जातवेदो म आ वह ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, नैवेद्यम्‌ निवेदयामि ।

बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें :-
1. ॐ प्राणाय स्वाहा
2. ॐ अपानाय स्वाहा
3. ॐ समानाय स्वाहा
4. ॐ उदानाय स्वाहा
5. ॐ व्यानाय स्वाहा।

मध्ये पानीयम्‌, उत्तरा-पोशनार्‌थम्‌ हस्त-प्रक्षा-लनार्‌थम्‌ मुख-प्रक्षाल-नार्‌थम्‌ च जलम्‌ समर-पयामि ।

( नैवेद्य निवेदित कर पुनः हस्तप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें।)

आचमन :
शीतलम्‌ निर्मलम्‌ तोयम्‌ कर्पूरण सुवासितम्‌ ।
आचम्यताम्‌ जलम्‌ ह्येतत्‌ प्रसीद परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, आचमनीयम्‌ जलम्‌ समर-पयामि ।

(आचमन के लिए जल दें।)

दक्षिणा :
हिरण्यगर्भ-गर्भस्थम्‌ हेम-बीजम्‌ विभावसो-हो ।
अनन्त-पुण्य-फलदमत-ह्‌ शान्तिम्‌ प्रयच्छ मे ॥
ॐ ताम्‌ म आ वह जातवेदो लक्ष्मी-मन-पगामिनीम्‌ ।
यस्याम्‌ हिरण्यम्‌ प्रभूतम्‌ गावो दास्योअश्वान्‌ विन्देयम्‌ पुरुषानहम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, दक्षिणाम्‌ समर-पयामि ।
(दक्षिणा चढ़ाएँ।)

आरती :
चक्षुर्दम्‌ सर्व-लोकानाम्‌ तिमिरस्य निवारणम्‌ ।
आर्तिक्यम्‌ कल्पितम्‌ भक्तया गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, नीराजनम्‌ समर-पयामि ।
(जल छोड़ें व हाथ धोएँ।)

प्रदक्षिणा :
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर-कृतानि च ।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण-पदे पदे ॥
(प्रदक्षिणा परिक्रमा करें।)

प्रार्थना :
हाथ जोड़कर बोलें :-
विशालाक्षी महामाया कौमारी शंखिनी शिवा ।
चक्रिणी जयदात्री चरणमत्ता रणप्रिया ॥
भवानि त्वम्‌ महालक्ष्मी-ही सर्व-काम-प्रदायिनी ।
सुपूजिता प्रसन्ना स्थान्‌-महालक्ष्मी नमोअस्तु ते ॥
नमस्ते साधक प्रचुर आनंद सम्पत्ति सुखदायिनी ।
या गति-हि-त्वत्‌-प्रपन्नानाम्‌ सा मे भूयात्‌ त्वत्‌-अर्चनात्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, प्रार्थनापूर्वकम्‌ नमस्कारम्‌ समर-पयामि ।
(प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।)

समर्पण :
'कृतेन-अनेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मी-देवी प्रीतताम्‌, न मम' ।
(हाथ में जल लेकर छोड़ दें।)

देहली, दवात, बही-खाता, तिजोरी व दीपावली (दीपमालिका) पूजन

देहली पूजन :
अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान व घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर 'ॐ श्रीगणेशाय नम-ह्‌' लिखें साथ ही 'स्वस्तिक चिन्ह', 'शुभ-लाभ' आदि मांगलिक एवं कल्याणकारी शब्द सिन्दूर अथवा केसर से लिखें। इसके पश्चात निम्न मंत्र बोलकर 'ॐ देहली-विनायकाय नम-ह्‌' गन्ध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें।

दवात (श्री महाकाली) पूजन :
काली स्याहीयुक्त दवात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षत पर रखें, सिन्दूर से स्वस्तिक बना दें तथा नाड़ा लपेट दें। निम्न मंत्र बोलकर 'ॐ श्रीमहाकाल्यै नम-ह्‌' गन्ध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से दवात में भगवती महाकाली का पूजन करें। इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करें-

कालिके! त्वम्‌ जगन्‌-मात-ह्‌-मसि-रूपेण वर्तसे।
उत्पन्ना त्वम्‌ च लोकानाम्‌ व्यवहार-प्रसिद्धये ॥

या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तै-है समस्तै-है- व्यवहार-दक्षै-है।
जनै-है जनानाम्‌ भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौरव्यद-अस्तु ॥
(पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें।)

लेखनी पूजन :
लेखनी (कलम) पर नाड़ा बाँधकर सामने की ओर रखें। निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें-

लेखनी निर्मिता पूर्वम्‌ ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।
लोकानाम्‌ च हितार्थाय तस्मात्‌-ताम्‌ पूजयामि-अहम्‌ ॥

'ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नम-ह्‌'
गंध, पुष्प, पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
शास्त्राणाम्‌ व्यवहाराणाम्‌ विद्यानाम्‌-आप्नुयात-तत-ह्‌ ।
अत-ह्‌-त्वाम्‌ पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥

बही-खाता ( सरस्वती) पूजन :
बही-खातों पर स्वस्तिक बनाएँ, साथ बसने पर स्वस्तिक चिह्न बनाकर उस पर रखें, साथ ही एक थैली के ऊपर कुंकु या केसर-युक्त चंदन से स्वस्तिक चिन्ह बनाएँ तथा थैली में पाँच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत व द्रव्य रखकर उस थैली में सरस्वती का ध्यान करें।

या कुन्देन्दु-तुषार-हार धवला या शुभ्र-वस्त्र-आवृता ।
या वीणा-वर-दण्ड-मण्डित-करा या श्वेत-पद्यासना ॥

या ब्रह्मा-अच्युत-शंकर-प्रभृतिभि-हि-देवे-हे सदा वन्दिता ।
सा माम्‌ पातु सरस्वती भगवती नि-ह्‌-शेष-जाड्या-पहा ॥

ध्यान बोलकर प्रणाम करें। निम्न मंत्र द्वारा सरस्वती का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य द्वारा पूजन करें-

'ॐ वीणा-पुस्तक धारिण्यै श्री सरस्वत्यै नम-ह्‌'

कुबेर (तिजोरी) पूजन :
तिजोरी पर स्वस्तिक बनाएँ एवं निधिपति कुबेर का निम्न वाक्य बोलकर आह्वान करें-

आवाह-यामि देव त्वाम-इहायाहि कृपाम्‌ कुरु ।
कोशम्‌ वर्द्धय नित्यम्‌ त्वम्‌ परि-रक्ष सुरेश्र्वर ॥

इसके पश्चात निम्न मंत्र द्वारा 'ॐ कुबेराय नम-ह्‌' कुबेर का गन्ध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन कर प्रार्थना करें-

धनदाय नमस्तुभ्यम्‌ निधि-पद्माधिपाय च ।
भगवन्‌ त्वत्‌प्रसादेन धन-धान्य-आदि-सम्पद-ह्‌ ॥

इसके पश्चात पूर्व में महालक्ष्मी की प्रार्थना कर पहले (अथात्‌ बही खातों के साथ) पूजी गई थैली (हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य आदि से युक्त) तिजोरी में रखकर कुबेर एवं महालक्ष्मी को प्रणाम करें।

तुला-पूजन :
व्यापारिक प्रतिष्ठान में उपयोग आने वाले तराजू (तुला) पर स्वस्तिक बनाकर उस पर नाड़ा लपेटें व नाड़े से लपेटे अब तुला-अधिष्ठातृ-देवता का ध्यान निम्न प्रकार से करें-

नमस्ते सर्व-देवानाम्‌ शक्तित्वे सत्यम्‌-आश्रिता ।
साक्षीभूता जगत्‌-धात्री निर्मिता विश्व-योनिना ॥

ध्यान के बाद 'ॐ तुला-अधिष्ठातृ-देवतायै-नम-ह्‌' मंत्र से तुला का गंध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रणाम करें।

दीपमालिका (दीपक) पूजन :
एक थाली में पंद्रह अथवा कम (यथाशक्ति) दीपक प्रज्वलित कर उन्हें महालक्ष्मी के सामने की ओर रखकर उस दीपमालिका की इस प्रकार प्रार्थना करें-

त्वम्‌ ज्योति-हि त्वम्‌ रवि-हि-चन्द्रो विद्युत-अग्नि-हि- च तारका-हा ।
सर्वेषाम्‌ ज्योतिषाम्‌ ज्योति-हि-दीपावल्यै नमो नम-ह्‌ ॥

प्रार्थना के पश्चात 'ॐ दीपावल्यै नमः' द्वारा दीपमाला का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।

इसके पश्चात अपने अनुसार गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े, साल की धानी इत्यादि पदार्थ अर्पित करें। साल की धानी श्रीगणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी तथा अन्य देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अंत में इन सभी दीपकों द्वारा घर व्यापारिक प्रतिष्ठान को, सजाएँ। इसके पश्चात दीपक एवं कपूर से श्री महालक्ष्मी की प्रधान आरती करें।

(आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सब लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।)

मंत्र-पुष्पांजलि :
अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें-

ॐ यज्ञेन यज्ञमय-जन्त देवा-हा-तानि धर्माणि प्रथमान्या-सन्‌ ।
तेह नाकम्‌ महि-मान-ह्‌ सचन्त यत्र पूर्वे साध्या-हा सन्ति देवा-हा ॥

ॐ राजाधि-राजाय प्रसह्य साहिने नमो वर्यम्‌ वै-श्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान्‌ काम-कामाय मह्यम्‌ कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥

कुबेराय वैश्र-वणाय महाराजाय नम-ह्‌ ।
ॐ स्वस्ति साम्राज्यम्‌ भौज्यम्‌ स्वाराज्यम्‌ वैराज्यम्‌ पार-मेष्ठ्यम्‌ राज्यम्‌

महा राज्यम्‌-आधिपत्य-मयम्‌ समन्त-पर्यायी स्यात्‌ सार्वभौम-ह्‌
सार्वा-युषान्ता-दापरार्धात्‌ ।
पृथिव्यै समुद्र-पर्यन्ताया एकराडिति
तदप्येष श्लोको-अभिगीतो मरुत-ह्‌ परि-वेष्टारो मरुत्तस्या-वसन्‌ गृहे ।
आ-विक्षि-तस्य कामप्रे-हे-विश्वे-देवा-हा सभासद इति ।

ॐ विश्वतश्‌-चक्षुरुत विश्वतो-मुखो विश्वतो-बाहुरुत विश्व-तस्पात्‌ ।
सम्‌ बाहुभ्याम्‌ धमति सम्‌ पतत्रै-र्द्यावा-भूमी जनयन्‌ देव एक-ह्‌ ॥

महा-लक्ष्म्यै च विद्महे, विष्णु-पत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी-ह्‌ प्रचोदयात्‌ ।
ॐ या श्री-ह्‌ स्वयम्‌ सुकृतिनाम्‌ भवने-हे-व-लक्ष्मी-ही
पाप-आत्मनाम्‌ कृतधियाम्‌ हृदयेषु बुद्धि-ह्‌।

श्रद्धा सताम्‌ कुलजनप्रभवस्य लज्जा
ताम्‌ त्वाम्‌ नता-हा स्म परिपालय देवि विश्वम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नम-ह्‌, मंत्र-पुष्प-अंजलिम्‌ समर-पयामि ।
(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)

प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें-

क्षमा प्रार्थना :
आवाहनम्‌ न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ ॥
पूजाम्‌ चैवम्‌ न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥

मन्त्रहीनम्‌ क्रियाहीनम्‌ भक्तिहीनम्‌ सुरेश्वरि ।
यत-पूजितम्‌ मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धु-च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणम्‌ त्वमेव
त्वमेव सर्वम्‌ मम देवदेव ।

पापो-अहम्‌ पापकर्मा-अहम्‌ पाप-आत्मा पापसम्भव-ह्‌ ।
त्राहि माम्‌ परम-ईशानि सर्व-पाप-हरा भव ॥

अपराधसहस्राणि क्रियन्ते-अहर-निशम्‌ मया ।
दासो-अयम्‌-इति माम्‌ मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥

पूजन समर्पण :
हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें-

'ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मी-ही प्रसीदतु-हु ॥'
(जल छोड़ दें, प्रणाम करें)

विसर्जन :
विसर्जन हेतु हाथ में अक्षत लें तथा गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें-

यान्तु देव-गणा-ह्‌ सर्वे पूजामादाय मामकीम्‌ ।
इष्टकाम-समृद्धयर्थम्‌ पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥

ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!!
॥ श्री महालक्ष्मी पूजन विधि सम्पूर्णम्‌ ॥