Madhya Pradesh ke Prasiddh mata ke mandir : 30 मार्च से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। नवरात्रि के इन नौ दिनों में माता के अलग-अलग रूपों की आराधना की जाती है। हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है और इन 9 दिनों मे देवी मां के मंदिरों के दर्शन करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। आज हम आपको मध्य प्रदेश में स्थित माता के प्रमुख मंदिरों और शक्तिपीठों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। चैत्र नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों में माता के दर्शन करने को बहुत शुभ माना जाता है।
हरसिद्धि शक्तिपीठ उज्जैन
मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है माता का हरसिद्धि मंदिर की मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है मानता है कि इस जगह पर देवी सती की कोहनी गिरी थी। यूं तो इस मंदिर के कई आकर्षक है लेकिन एक खास वजह से यह हमेशा ही लोगों में चर्चा का केंद्र बना रहता है वह है मंदिर में बने दो दीप स्तंभ। लगभग 51 फीट ऊंचे इस दीप स्तंभ के बारे में मान्यता है कि इस उज्जैन के सम्राट राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। इस तरह से यह दीप स्तंभ लगभग 2000 साल से ज्यादा पुराना है।
सम्राट विक्रमादित्य ने 11 बार अपना सिर माता को किया अर्पित
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उज्जैन के राजा विक्रमादित्य माता हरसिद्धि के अनन्य भक्त थे। जैन श्रुति के अनुसार वे घर बाहर साल में अपना सिर माता हरसिद्धि को अर्पित कर दिया करते थे लेकिन देवी की कृपा से उन्हें चमत्कारी रूप से हर बार नया सिर मिल जाता था लेकिन 12वीं बार जब उन्होंने अपना सिर देवी को चढ़ा कर अर्पित किया तो वह वापस नहीं आया और इस तरह से उनके जीवन का अंत हो गया।
कैसे जाएं हरसिद्धि मंदिर
हरसिद्धि मंदिर पहुंचने के लिए आपको उज्जैन शहर पहुंचना होगा। हिंदुओं की बड़ी धार्मिक नगरी होने की वजह से उज्जैन बस और रेल मार्ग से पूरे देश से अच्छी तरह से कनेक्टेड है।
शोण शक्तिपीठ अमरकंटक
शोण शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के अमरकंटक में नर्मदा नदी के उद्गम पर स्थित है। हिंदू धर्म के पुराणों के मुताबक, जहां भी देवी सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे, वह स्थान पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले एक शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हो गया। देवी पुराणों में 51 शक्तिपीठों का ज्ञान संग्रहित है। ऐसा माना जाता है कि अमरकंटक में स्थित शोण शक्तिपीठ में माता सती का दाहिना नितंब (कूल्हा) गिरा था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि यहां पर सती का कंठ गिरा था। जिसके बाद यह स्थान अमरकंठ और उसके बाद अमरकंटक कहलाया। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।
कैसे पहुंचें शोण शक्तिपीठ अमरकंटक
अमरकंटक के लिए जबलपुर हवाई अड्डा सबसे निकटतम है। हवाई अड्डे से मंदिर तक पहुँचने के लिए टैक्सी सेवाएँ और सार्वजनिक परिवहन हमेशा उपलब्ध रहते हैं।
पेंड्रा छत्तीसगढ़ में स्थित निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 17 किमी दूर है। अनूपपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन भी अमरकंटक के पास ही है। दूसरा रेलवे स्टेशन छत्तीसगढ़ का बिलासपुर रेलवे स्टेशन है, जो 120 किमी दूर है, लेकिन देश भर के विभिन्न प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
मंदिर तक पहुंचने के लिए बस सेवाएं और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं। अमरकंटक शहडोल, उमरिया, जबलपुर, अनूपपुर, पेंड्रा रोड और बिलासपुर से विभिन्न नियमित बसों के माध्यम से जुड़ा हुआ है।
मैहर देवी का शक्तिपीठ, सतना
मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का शक्तिपीठ कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार। माना जाता है कि यहां मां सती का हार गिरा था इसीलिए इसकी गणना शक्तिपीठों में की जाती है। करीब 1,063 सीढ़ियां चढ़ने के बाद माता के दर्शन होते हैं। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है।
मान्यता है कि शाम की आरती होने के बाद जब मंदिर के कपाट बंद करके सभी पुजारी नीचे आ जाते हैं तब यहां मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है। कहते हैं कि मां के भक्त आल्हा अभी भी पूजा करने आते हैं। अक्सर सुबह की आरती वे ही करते हैं।
आज भी आल्हा करते हैं पहले श्रृंगार : इस मंदिर की पवित्रता का अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि अभी भी आल्हा मां शारदा की पूजा करने सुबह पहुंचते हैं। मैहर मंदिर के महंत पंडित देवी प्रसाद बताते हैं कि अभी भी मां का पहला श्रृंगार आल्हा ही करते हैं और जब ब्रह्म मुहूर्त में शारदा मंदिर के पट खोले जाते हैं तो पूजा की हुई मिलती है। इस रहस्य को सुलझाने हेतु वैज्ञानिकों की टीम भी डेरा जमा चुकी है लेकिन रहस्य अभी भी बरकरार है।
माँ शारदा माता मंदिर तक कैसे पहुंच सकते हैं?
खजुराहो एयरपोर्ट मैहर से 105 किलोमीटर की दूरी पर है और प्रयागराज एयरपोर्ट मैहर से 163 किलोमीटर दूर है। मैहर तक आने का सबसे आरामदायक और कम बजट वाला ऑप्शन ट्रेन है। मैहर कटनी जंक्शन और सतना जंक्शन के बीच स्थित है। आप देश के किसी भी हिस्से से सड़क मार्ग द्वारा भी मेहर पहुंच सकते हैं।
पीताम्बरा सिद्धपीठ दतिया
मध्य प्रदेश की दतिया जिले में स्थित है मां पीतांबरा सिद्धपीठ। मां पीतांबरा को राज सत्ता की देवी माना जाता है। माता की इस सिद्ध मंदिर में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेई से लेकर राजमाता विजय राजे सिंधिया तक सभी आ चुके हैं मान्यता है कि इस स्थान पर आने वाले की मुराद जरूर पूरी होती है और उसे राज सत्ता का सुख प्राप्त होता है। राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर माता की गुप्त पूजा अर्चना करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां पीतांबरा को शत्रु का नाश करने वाली शक्ति माना जाता है इसीलिए राज-सत्ता की प्राप्ति के लिए उनकी पूजा अर्चना का विशेष महत्व है।
जब चीन और पाकिस्तान से युद्ध के समय मंदिर में किया गया विशेष अनुष्ठान
यह बात 1962 की है जो भारत और चीन के बीच युद्ध की शुरुआत हुई थी। कहते हैं उस समय के फौजी अधिकारियों और तात्कालिक प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कहने पर देश की रक्षा के लिए यहां के संस्थापक बाबा ने मां बगुलामुखी का विशेष 51 कुंडीय महायज्ञ करवाया था। 11 दिन अंतिम आहुति के साथ चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। आज भी यहां लगी एक पट्टिका पर इस घटना का उल्लेख मिलता है।
कहा जाता है कि कारगिल युद्ध के समय भी तात्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के कहने पर यहां कुछ साधकों ने गुप्त यज्ञ का आयोजन किया था और मां बगला मुखी की विशेष साधना की थी। पाकिस्तान के साथ हुए इस युद्ध में भी आखिरकार पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी।
कालिका माता मंदिर, रतलाम
मध्य प्रदेश के रतलाम शहर में स्थित है देवी का प्रसिद्ध मां कालिका मंदिर। कहा जाता है कि इस मंदिर में मां कालिका अपने भक्तों को हर दिन तीन अलग-अलग रूपों में दर्शन देती हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में सुबह माता बाल रूप में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं। दोपहर के समय मां भक्तों को युवा रूप में दर्शन देती हैं और शाम को माता कालिका अपने भक्तों को वृद्धावस्था के रूप में दर्शन देती हैं। माता के इन रूपों को देखने के लिए दूर-दूर से भक्त रतलाम पहुंचते हैं।
इस मंदिर की एक और विशेषता है सुबह के समय होने वाला गरबा देश के अन्य दुर्गा मंदिरों में गरबा नृत्य हमेशा शाम को किया जाता है लेकिन यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां सुबह 4:00 से 6:00 तक गरबा कर माता की आराधना की जाती है। आधुनिक दौर में आज भी यहां गरबा परंपरागत तरीके से भजन के साथ किया जाता है।
कैसे पहुंचें रतलाम
रतलाम का निकटतम एयरपोर्ट इंदौर है। इंदौर से आप सड़क या रेल मार्ग द्वारा आसानी से इंदौर पहुंच सकते हैं।
रतलाम देश के बाकी हिस्सों से रेल मार्ग द्वारा भली-भांति कनेक्ट है। दिल्ली से रतलाम की दूरी 732 किलोमीटर है। वहीं रतलाम भोपाल और इंदौर से 280 और 120 किलोमीटर दूर है। रतलाम देश के बाकी हिस्सों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छे से कनेक्ट है। आप बस से भी रतलाम पहुंच सकते हैं।
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