दशहरा के पर्व को विजयादशमी भी कहा जाता है। यह असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। इस दिन माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और इसी दिन श्रीराम ने रावण का वध किया था। इसीलिए इस दिन दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा और श्रीराम पूजा के साथ ही शमी पू्जा का भी महत्व है।
महत्व : दशहरे के दिन माता दुर्गा की पूजा करके उनकी प्रतिमा का विधिवत रूप से विसर्जन करने का महत्व है। इस दिन चंडी पाठ या सप्तशती का पाठ करने और हवन करने का बहुत ज्यादा महत्व है। साथ ही इस दिन अपराजिता देवी और श्रीराम की पूजा का भी महत्व है। इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर वध कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से मुक्त कराया था।
वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्त शुभ मुहूर्त : दशहरा पर्व अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। इस काल की अवधि सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से लेकर बारहवें मुहूर्त तक की होती। दशहरे का दिन साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है (साल का सबसे शुभ मुहूर्त- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा- आधा मुहूर्त)। यह अवधि किसी भी चीज की शुरूआत करने के लिए उत्तम मानी गई है।
6. बड़ों का लेते हैं आशीर्वाद : इस दिन परिवार और रिश्तों के सभी बड़े बूढ़ों के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेते हैं।
7. विजयी तिलक : इस दिन तिलक लगाकर ही रावण दहन देखने जाते हैं और जब घर आते हैं तो प्रवेश द्वारा पर ही पुरुषों को विजयी तिलक लगाया जाता है। घर लौटने वाले की आरती उतारकर उनका स्वागत किया जाता है।
8. गिलकी के भजिये : इस दिन कई तरह के पकवान बनाकर गिलकी के भजिये तलकर खाने की परंपरा भी है। इस दिन खासतौर पर गिल्की के पकौड़े और गुलगुले (मीठे पकौड़े) बनाने का प्रचलन है। पकौड़े को भजिए भी कहते हैं।
9. शमी या सोना पत्ती देने का रिवाज : रावण दहन के बाद लोग एक दूसरे से गले मिलकर स्वर्ण रूप में शमी के पत्ते एक दूसरे को बांटते हैं।
10. दीए जलाने का रिवाज : दशहरे के दिन पीपल, शमी और बरगद के वृक्ष के नीचे और मंदिर में दीया लगाने की परंपरा भी है। इस दिन घर को भी दीए से रोशन करना चाहिए। इस दिन पटाखे भी छोड़े जाते हैं।