आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को शस्त्र पूजन का विधान है। 9 दिनों की शक्ति उपासना के बाद 10वें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के साथ चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन करना चाहिए। विजयादशमी के शुभ अवसर पर शक्तिरूपा दुर्गा, काली की आराधना के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा है।
शस्त्र पूजन की परंपरा का आयोजन रियासतों में आज भी बहुत धूमधाम के साथ होता है। शासकीय शस्त्रागारों के साथ आमजन भी आत्मरक्षार्थ रखे जाने वाले शस्त्रों का पूजन सर्वत्र विजय की कामना के साथ करते हैं। राजा विक्रमादित्य ने दशहरे के दिन देवी हरसिद्धि की आराधना की थी। छत्रपति शिवाजी ने भी इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न करके भवानी तलवार प्राप्त की थी।
दशहरा पर्व के चलते हथियारों के पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन हथियारधारी अपने-अपने हथियारों का पूजन करते हैं। इस पूजा-अर्चना के पूर्व हथियारों की साफ-सफाई सावधानी से करना ही अक्लमंदी है। इस दौरान जरा-सी लापरवाही अनहोनी को न्योता दे सकती है। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारंभ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है।
* दशहरा पर्व के अवसर पर अपने शस्त्र को पूजने से पहले सावधानी बरतना न भूलें। हथियार के प्रति जरा-सी लापरवाही बड़ी भूल साबित हो सकती है।
* घर में रखे अस्त्र-शस्त्र को अपने बच्चों एवं नाबालिगों की पहुंच से दूर रखें। घर में हथियार तक पहुंच किसी भी स्थिति में न हो।
* हथियार को खिलौना समझने की भूल करने वालों के दुर्घटना के शिकार होने के कई मामले सामने आ चुके हैं।
* सबसे अहम यही है कि पूजा के दौरान बच्चों को हथियार न छूने दें और किसी भी तरह का प्रोत्साहन बच्चों को न मिले।
हथियार खतरनाक होते हैं इसलिए इनकी साफ-सफाई में बेहद सावधानी की जरूरत होती है। 12 बोर और पिस्टल में सतर्कता रखनी पड़ती है। अपने-अपने घरों में जो भी हथियार साफ करें, बिलकुल संभलकर करें।