Dussehra 2025: दशहरा पर अपराजिता देवी की पूजा के बाद शस्त्र पूजा पूजा करने की परंपरा है। शस्त्र पूजा अभिजीत मुहूर्त या विजयी मुहूर्त में करते हैं। इसके बाद लोग शाम को रावण दहन देखने जाते हैं। इस दिन अच्छे अच्छे पकवान के साथ ही गिलकी के पकोड़े और दहीबड़ा भी खाते हैं। दशहरे अर्थात विजयादशमी के दिन शस्त्र पूजा या आयुध पूजा करने के कई धार्मिक और ऐतिहासिक कारण हैं।
विजय और शक्ति का प्रतीक:
1. दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। माना जाता है कि देवताओं ने मां दुर्गा को दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए थे, और विजय के बाद उन शस्त्रों की पूजा की गई थी।
2. यह दिन भगवान राम द्वारा रावण पर विजय प्राप्त करने की स्मृति में भी मनाया जाता है। युद्ध में जाने से पहले भगवान राम ने भी अपने देवी अपराजिता की पूजा के बाद शस्त्रों का पूजन किया था।
3. शस्त्र पूजा वीरता, सुरक्षा और शक्ति का पूजन है। यह विजय का प्रतीक है और यह मान्यता है कि इस दिन शस्त्र पूजा करने से व्यक्ति के साहस और शक्ति में वृद्धि होती है और उसे कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है।
महाभारत काल की कथा:
1. एक कथा के अनुसार, पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों को शमी वृक्ष पर छिपा दिया था। अज्ञातवास पूरा होने के बाद, उन्होंने दशमी तिथि पर अपने शस्त्र वापस निकाले और उनकी पूजा की, जिसके बाद उन्हें युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी। इसलिए इस दिन शमी वृक्ष और शस्त्रों की पूजा का भी महत्व है।
2. प्राचीन काल में राजा-महाराजा और योद्धा युद्ध में जाने से पहले और विजयदशमी के दिन अपने अस्त्र-शस्त्रों की साफ-सफाई और पूजा करते थे ताकि उन्हें सफलता और सुरक्षा प्राप्त हो। यह परंपरा आज भी भारतीय सेना और पुलिस बलों में शस्त्र पूजा के रूप में जारी है।
उपकरणों के प्रति कृतज्ञता:
1. शस्त्र पूजा एक तरह से उन उपकरणों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम है जो हमें शक्ति और सुरक्षा प्रदान करते हैं, साथ ही हमारी आजीविका का साधन हैं।
2. परंपरा के अनुसार, इस दिन केवल अस्त्र-शस्त्र ही नहीं, बल्कि विभिन्न व्यवसायों से जुड़े लोग अपने औजारों, मशीनों, वाहनों, पुस्तकों आदि की भी पूजा करते हैं।