युवावस्था वाले मुनि अप्सरा के हाव भाव, नृत्य, गीत तथा कटाक्षों पर काम मोहित हो गए। रति-क्रीडा करते हुए 57 वर्ष व्यतीत हो गए। एक दिन मंजुघोषा ने देवलोक जाने की आज्ञा मांगी। उसके द्वारा आज्ञा मांगने पर मुनि को भान आया और उन्हें आत्मज्ञान हुआ कि मुझे रसातल में पहुंचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजुघोषा ही हैं।
अत: ब्रह्माजी कहते हैं कि जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस पापमोचिनी एकादशी व्रत को करेगा, उसके सारों पापों की मुक्ति निश्चित ही होती है तथा जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता और सुनता है उसे सारे संकटों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसी इस एकादशी की महिमा है।
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