Jaya Ekadashi 2024: वर्ष 2024 में जया एकादशी का व्रत दिन गुरुवार, 29 अगस्त को रखा जा रहा है। यह व्रत प्रतिवर्ष भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है, जिसे जया या अजा एकादशी कहते हैं।
शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का व्रत रखने से हर तरह के पापों का नाश होकर मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करता है। तथा इसकी कथा सुनने मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के बराबर का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का इतना अधिक महत्व माना गया है कि यह व्रत रखने से राजा हरिशचंद्र को अपना राजपाट वापस प्राप्त हो गया था।
आइए यहां पढ़ें जया एकादशी पौराणिक और प्रामाणिक कथा...
jaya ekadashi vrat कथा
भाद्रपद कृष्ण जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में हरिशचंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। उसने किसी कर्म के वशीभूत होकर अपना सारा राज्य व धन त्याग दिया, साथ ही अपनी स्त्री, पुत्र तथा स्वयं को बेच दिया।
वह राजा चांडाल का दास बनकर सत्य को धारण करता हुआ मृतकों का वस्त्र ग्रहण करता रहा। मगर किसी प्रकार से सत्य से विचलित नहीं हुआ। कई बार राजा चिंता के समुद्र में डूबकर अपने मन में विचार करने लगता कि मैं कहां जाऊं, क्या करूं, जिससे मेरा उद्धार हो? इस प्रकार राजा को कई वर्ष बीत गए।
एक दिन राजा इसी चिंता में बैठा हुआ था कि गौतम ऋषि आ गए। राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और अपनी सारी दु:खभरी कहानी कह सुनाई। यह बात सुनकर गौतम ऋषि कहने लगे कि, 'हे राजन तुम्हारे भाग्य से आज से सात दिन बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा नाम की एकादशी आएगी, तुम विधिपूर्वक उसका व्रत करो। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे।'
इस प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय अंतर्ध्यान हो गए।
राजा ने उनके कथनानुसार एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत व जागरण किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए। स्वर्ग से बाजे बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा। इस व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: राज्य मिल गया। अंत में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग को गया। यह सब अजा एकादशी के प्रभाव से ही हुआ।
अत: इस एकादशी का व्रत करने वाले व्रतधारियों को कई शुभ फलों की प्राप्ति होती है।जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस एकादशी व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। ऐसी इसकी मान्यता है।
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