मोदी सरकार ने 2018 में औपचारिक तौर पर लेटरल एंट्री शुरू की थी
यह नौकरशाही में एक तरह की सीधी भर्ती होती है
सरकार अनुभवी लोगों को नियुक्त करती है
3 से 5 साल या इससे अधिक समय के लिए हो सकती है भर्ती
इसके लिए UPSC ने निकाला था विज्ञापन, जिसके बाद उठा विवाद
What is lateral entry controversy: नौकरशाही में लेटरल एंट्री को लेकर जमकर विवाद छिड़ा है। तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने इसे लेकर सवाल उठाए हैं। दरअसल, हाल ही में UPSC ने विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के 45 पदों पर भर्ती निकाली। इस भर्ती को लेकर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, सपा सांसद अखिलेश यादव और मोदी सरकार में शामिल नेता ही इस पर सवाल खड़े किए हैं।
बता दें कि यह कोई पहली बार नहीं है जब लेटरल एंट्री को लेकर यूपीएससी ने कोई विज्ञापन निकाला है। इसके पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कई अधिकारियों की तक की लेटरल एंट्री के जरिए ही ब्यूरोकेसी यानी नौकरशाही में एंट्री हो चुकी है।
जानते हैं क्या है लेटरल एंट्री विवाद और क्यों उठ रहे हैं इस पर सवाल।
UPSC का लेटरल एंट्री का विज्ञापन : केंद्र सरकार ने ऊंचे पदों पर अधिकारियों की भर्ती के लिए एक विज्ञापन निकाला है। सरकार के इस विज्ञापन पर विपक्षी तो सवाल उठा ही रहे हैं, यहां तक कि एनडीए घटक दल के नेता भी मोदी सरकार से इसे लेकर सवाल पूछ रहे हैं। एनडीए घटक दल के नेता इसमें आरक्षण की मांग करने लगे हैं। बता दें कि विपक्ष ने लोकसभा का चुनाव आरक्षण के मुद्दे पर लड़ा था। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि यदि नरेंद्र मोदी की सरकार तीसरी बार बन गई तो देश में आरक्षण खत्म कर देगी। ऐसे में अब नौकरशाही में लेटरल एंट्री को लेकर विवाद शुरू हो गया है।
क्या था यूपीएसी का विज्ञापन: ये विज्ञापन संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने 17 अगस्त को 'लेटरल एंट्री भर्ती' को लेकर निकाला है। इस विज्ञापन में कहा गया कि विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के 45 पदों पर जल्द ही विशेषज्ञ नियुक्त किए जाएंगे। शासन की सुगमता के लिए नई प्रतिभाओं को शामिल करने के लिए मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तहत यह भर्ती होगी।
कौन-कौन सी पोस्ट हैं इसमें: लेटरल एंट्री भर्ती के लिए आमतौर पर ऐसे पदों पर IAS, IFoS और ग्रुप ए सेवाओं के अधिकारी होते हैं। UPSC ने 17 अगस्त 45 पदों के लिए विज्ञापन दिया। इसमें 10 संयुक्त सचिव, 35 निदेशक और उप सचिव के पद शामिल हैं। इन पदों को अनुबंध के आधार पर 'लेटरल एंट्री' के माध्यम से भरा जाना बताया गया है।
क्या है लेटरल एंट्री : दरअसल, लेटरल एंट्री को सीधी भर्ती भी कहा जता है। इसमें उन लोगों को सरकारी सेवा में लिया जाता है, जो अपनी फील्ड में काफी माहिर होते हैं। ये IAS-PCS या कोई सरकारी A लेवल के कैडर से नहीं होते हैं। इन लोगों के अनुभव के आधार पर सरकार अपने नौकरशाही में इन्हें तैनात करती है। इसमें 3 से 5 साल के लिए लोगों को रखा जाता है। काम के आधार पर आगे भी रखा जा सकता है। मोदी सरकार ने 2018 में औपचारिक तौर पर लेटरल एंट्री शुरू की थी। इसके पहले 2005 में UPA सरकार ने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया था। इसमें बताया गया कि मंत्रालयों में कुछ पदों पर स्पेशलाइजेशन की जरूरत है। ये नियुक्ति लेटरल एंट्री से कराई जाएगी। इसमें कोई आरक्षण प्रक्रिया लागू नहीं होती है।
मनमोहन सिंह की भी थी लेटरल एंट्री : बता दें कि यूपीएसी की ओर से जो विज्ञापन निकाला गया है। ये कोई पहली बार नहीं है। इसके पहले की सरकारें भी ऐसे ही विज्ञापन निकाल कर लेटरल एंट्री के जरिए पदों पर भर्ती किया करती थीं। लेटरल एंट्री से ही पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, योजना आयोग (नीति आयोग) के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलुवालिया और सैम पित्रौदा की भी लेटरल एंट्री के जरिए ही नौकरशाही का जिम्मा दिया गया था।
क्यों उठा इस पर विवाद : यूपीएससी द्वारा संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के लिए जो 45 पदों की लेटरल एंट्री से भर्ती निकाली गई है, उसमें अब आरक्षण की मांग उठ रही है। कांग्रेस सांसद व लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लेटरल एंट्री में आरक्षण का मुद्दा उठाया है। साथ ही एनडीए के घटक दलों ने भी लेटरल एंट्री विवाद में कूद पड़े हैं। मोदी सरकार में शामिल लोजपा (आर) के नेता चिराग पासवन और जेडीयू नेता केसी त्यागी ने लेटरल एंट्री में आरक्षण की मांग कर दी है।
Edited by Navin Rangiyal