तात्या सरकार : राजसी गुणों-अवगुणों की मिसाल

इतिहास में ऐसे बहुत सारे राजा, महाराजा व सरदार मिल जाएंगे, जो अपनी राजसी ठसक और शौकों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। इंदौर के होलकर राजघराने से जुड़े 'तात्या सरकार' को उनके इन्हीं शौकों के कारण याद किया जाता है। शराब, शबाब तथा राजसी सभी गुणों की वजह से लोग उन्हें जानते थे। एक बार महाराजा होलकर को उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए कठोर निर्णय लेना पड़ा था।
 
'होलकर स्टेट गजेटियर 1931' के अनुसार तात्या सरकार का जन्म 25 अप्रैल 1822 को हुआ था। राजघराने के सदस्य होने के कारण तात्या सरकार की लिखाई-पढ़ाई भी इंदौर के डेली कॉलेज में हुई। अपने चाचा शिवाजीराव की तरह ही तात्या सरकार को भी खेलकूद तथा पहलवानी आदि में गहरी रुचि थी।
 
जूने राजवाड़े के पीछे जबरेश्वर महादेव के प्राचीन मंदिर के ठीक सामने तात्या की भव्य हवेली थी। बड़े ही ठाठ से तात्या हवेली के झरोखे में बैठे रहा करते थे। आते-जाते लोग बड़े ही अदब से उन्हें मुजरा (अभिवादन) करते थे। वे अपनी हवेली के सामने किसी को भी छत्री लगाकर चलते नहीं देख सकते थे। सभी राहगीर उनकी इस ठसकभरी इच्छा का ध्यान रखते थे। जब भी उनकी सवारी तामझाम से निकलती तो लोग उनकी शान देखते रह जाते थे।
 
उस जमाने की जो भी फितरतें थीं, वे सभी तात्या सरकार के जीवन में रची-बसी थीं। सुरापान का उन्हें बेहद शौक था। आए दिन उनकी हवेली में दावतें हुआ करती थीं, मुजरे भी खूब होते थे। गाने वाली और नाचने वाली तवायफें उनके लहीम-शलीम व्यक्तित्व से आतंकित रहती थीं।
 
राजमहल में होने वाले सभी जलसों में तात्या सरकार का प्रमुख स्थान होता था। दशहरे पर शमी पूजा के लिए जाने वाले जुलूस में उनका हाथी महाराजा के बाद प्रमुख रूप से चलता था। दशहरा, गुड़ी पड़वा, संक्रांति तथा अन्य अवसरों पर होने वाले दरबारों में भी वे किमखाब का जरदौजी किया अंगरखा, होलकरी पगड़ी तथा रत्नजड़ित तलवार लेकर ही जाते थे।
 
तात्या महाराज के 2 विवाह हुए थे। पहला लहिलाजी बंसाड़े की कन्या रुकमाबाई से 30 मार्च 1894 और दूसरा विवाह भाऊ साहबगावड़े की कन्या सुशीलाबाई के साथ 12 मई 1912 को हुआ था। उनकी पहली संतान थी वत्सलाबाई, जिनका जन्म 17 फरवरी 1917 को हुआ था। 30 मार्च 1919 को सुभद्राबाई का जन्म हुआ। तीसरी बार 26 जुलाई 1922 को तात्या सरकार के घर पुत्र रत्न का जन्म हुआ। यही आगे चलकर मल्हारराव होलकर कहलाए। इसके बाद 9 जुलाई 1927 को चौथी बार ताराबाई नामक कन्या का जन्म हुआ। तात्या महाराज के स्वभाव का उदाहरण एक घटना से रेखांकित होता है। तात्या, महाराजा तुकोजीराव होलकर (तृतीय) के भाई थे। वैसे तो महाराजा, तात्या का पूर्ण सम्मान करते थे, तथापि एक बार का वाकया ऐसा भी है कि इस सबके बावजूद तुकोजीराव महाराज को तात्या के प्रति कठोर रुख अपनाना पड़ा।
 
राव साहब एम.के. कर्णिक लिखते हैं- 'जब तात्या साहब की दूसरी पत्नी घर आई, तब उन्होंने अपनी पहली पत्नी के प्रति बहुत ही उपेक्षाभाव अपनाया। रुकमाबाई साहिब अपने पति तात्या महाराज के प्रति पूर्ण रूप से निष्ठावान थीं। मगर उनके पतिदेव उनके पतिव्रत की कोई प्रशंसा नहीं करते थे और उनके प्रति कटु हो चुके थे। एक बार तात्या सरकार अपने आपे से बाहर हो गए थे। जब ये सारी बातें महाराजा तुकोजीराव के कानों तक पहुंची तब उन्हें विवश होकर तात्या को सही रास्ते पर लाने का कठोर निर्णय करना ही पड़ा।
 
रानी साहिब रुकमाबाई को अपने पति से अलग रहने का पूरा बंदोबस्त और 1,000 रुपए सालाना खर्च की व्यवस्था भी महाराजा को करना पड़ी। इस रकम में से 500 रुपए रुकमाबाई को अपने हाथ खर्च के लिए दिए जाते थे तथा शेष 500 रुपए सरकारी खजाने में जमा होते थे। खजाने में जमा रकम वक्त-बेवक्त उनके ही उपयोग में आने का प्रावधान था। इस घटनाक्रम से यह बात उजागर होती है कि महाराजा इंदौर अपने निकट संबंधी के सुख-दु:ख में सहभागी थे। कुछ समय के लिए तात्या महाराज को मंडलेश्वर में भी रखा गया था ताकि उन्हें समझाइश दी जा सके।
 
वास्तव में राजघराने का यह महत्वपूर्ण व्यक्ति मूल रूप से आततायी अथवा उद्दंड नहीं था। संभवत: सुरापान का शौक ही उनके इस आपत्तिजनक आचरण का मूल कारण था। समय के साथ जब तात्या को मंडलेश्वर के एकांतवास में सोचने-समझने का अवसर मिला तो उन्हें पछतावा भी हुआ और वे सही रास्ते पर आ गए। बंबई के मौजेस्टिक सिनेमा के पास एक आलीशान कोठी थी, जो तात्या सरकार ने अपनी एक उप पत्नी को नजरकर दी थी। वैसे तो रईसी स्वभाव के तात्या की कई उप स्त्रियां थीं, मगर बंबई वाली बाई के प्रति उनका विशेष लगाव था। वे अपने अंतरंग मित्रों को कहा भी करते थे कि हम राजवंशी लोग ही ये शौक नहीं पालेंगे तो भला कौन पालेगा?
 
तात्या सरकार के निकटतम पारिवारिक सूत्र इस बात से इनकार करते हैं कि तात्या अपनी पहली पत्नी के प्रति कठोर थे। उनका कहना है कि तात्या सरकार और रुकमाबाई के दांपत्य संबंध कुछ कारणों से कटु हो चले थे। इंदौर नरेश से तात्या से जलने वाले तत्वों ने अपनी ओर से उल्टी-सीधी बातें खूब नमक-मिर्च लगाकर कही थीं। इस कारण महाराजा ने तात्या के प्रति कड़ा रुख अपनाया था। मार्च 1930 में तात्या के अवसान के साथ इंदौर के राजघराने का एक नक्षत्र अस्त हो गया था।
 
तात्या सरकार गौतमराव के पुत्र मल्हारराव होलकर रियासत और राजवंश के सदस्य थे। सुंदर कद-काठी, गंभीर तथा तेजपूर्ण चेहरा, वार्तालाप में शालीनता एवं शिष्टता का ही दूसरा नाम है, मल्हारराव। इंग्लैंड के प्रसिद्ध वैलिंगटन कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने गए राजकुमार मल्हारराव पढ़ने में काफी तेज थे। कॉलेज के प्रिंसिपल रवरेंड विस्की उनसे बहुत प्रभावित थे। उस जमाने में एक हिंदुस्तानी का चाहे फिर वह राजकुमार ही क्यों न हो, अपने लिए सम्मानजनक स्थान बनाना टेढ़ी खीर थी। अंग्रेजी भाषा और साहित्य तथा इतिहास में मल्हारराव की गहरी रुचि थी। क्रिकेट और टेनिस में भी वे भाग लिया करते थे।
 
26 जुलाई 1922 को मल्हारराव का जन्म हुआ था। उनका विवाह तत्कालीन धार नरेश आनंदराव पवार की भानजी मृणालिनी राजे के साथ 1949 में हुआ था। शिक्षित एवं सभ्य मृणालिनी राजे होलकर को लोग 'रानी साहिबा' के नाम से संबोधित करते हैं। जगदीपेंद्रसिंह अंशुमानसिंह तथा गौतमराव उनके पुत्र तथा संघमिया राजे एकमात्र प्रेमी हैं। संघमिया राजे का विवाह बड़ौदा रियासत के शिरके परिवार में हुआ था।
 
कुछ समय पहले तक इंदौर के पीपल्या पाला पर मल्हारराव की एक विशाल कोठी थी। इस कोठी का नाम 'राम निवास कोठी' इसी कारण नगर में लोग इन्हें 'पाले वाले बाबा साहब' के नाम से पुकारते थे। महलों के माहौल में पला बढ़ा यह 'महाराज' अब शांत-एकांत जीवन व्यतीत कर रहा है। तथापि अपने अतीत की रुमानी यादों को अपने मन मस्तिष्क में अब भी संजोए हुए है। यह इंदौर नगर का सौभाग्य ही कहा जाएगा कि आकर्षक व्यक्तित्व, मधुर वाणी एवं सौजन्य की प्रतिमूर्ति मल्हारराव होलकर महाराज रियासत काल की गरिमामय परंपरा को जीवित रखे हुए थे।

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