डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी का जन्म 15 सितंबर 1939 को चेन्नई में हुआ। डॉ. स्वामी पेशे से एक प्रोफेसर, राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री हैं।
सुब्रमण्यम के पिता सीताराम सुब्रमण्यम मदुरई, तमिलनाडु से थे और भारत सरकार के सचिव थे और उनकी माता केरल से थीं।
स्वामी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज से मैथेमेटेक्सि में ऑनर्स की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टिट्यूट कोलकाता से स्टेटिस्टिक्स में मास्टर डिग्री की पढ़ाई की। मास्टर डिग्री लेने के बाद डॉ. स्वामी आगे की पढ़ाई के लिए हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी गए, जहां से उन्होंने 1965 में अर्थशास्त्र में पीएचडी कर डॉक्टरेट की उपाधि ली।
1963 में अपने डिजर्टेशन के दौरान उन्होंने न्यूयॉर्क में यूनाइटेड नेशन के सचिवालय में अर्थशास्त्र मामलों के सह अधिकारी के पद पर कुछ समय तक काम किया। 1964 से 1969 तक वे हॉर्वर्ड में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे और 2011 तक उन्होंने वहां समर क्लासेस भी ली हैं, लेकिन उनके विवादित लेख के कारण हॉर्वर्ड की फेकल्टी काउंसिल ने हॉवर्ड समर स्कूल से उनके विषय को अलग कर दिया।
1969 में स्वामी को दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर के पद के लिए प्रस्ताव मिला। इस प्रस्ताव को अपनाकर वे वापस भारत लौट आए, लेकिन भारत की परमाणु क्षमता पर उनकी राय के कारण उनकी इस नियुक्ति को निरस्त कर दिया गया।
इसके बाद 1961 से 1991 तक वे आईआईटी, दिल्ली में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे। राजनीति में उनके करियर की शुरुआत तब हुई, जब वे जयप्रकाश नारायण के सर्वोदय आंदोलन का हिस्सा बने। इसके साथ ही डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी 1974 से 1999 के बीच 5 बार संसद सदस्य चुने गए।
डॉ. स्वामी जनता पार्टी के संस्थापकों में से भी एक हैं और 1990 से अभी जनता पार्टी की अध्यक्षता की सारी बागडोर उनके ही हाथों में थी। 1990 और 1991 के बीच सुब्रमण्यम स्वामी योजना आयोग के सदस्य रहे।
वे आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं। उन्हीं के प्रयासों से भारत और चीन के बीच समझौता हुआ और कैलाश मानसरोवर जाने का रास्ता मिला। इसके साथ ही डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी हमेशा इसराइल से अच्छे संबंधों के समर्थन में रहे हैं।
अपने राजनीतिज्ञ, एकेडमिक और अर्थशास्त्र के करियर के अलावा डॉ. स्वामी ने कई पुस्तकों, शोधपत्रों और पत्रिकाओं को भी लिखा है। अपने कई लेखों के कारण उन्हें आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा।
इन आलोचनाओं की परवाह न करते हुए वे अपना काम करते रहे और एक सच्चे राजनीतिज्ञ और भारतीय के रूप में जनता की प्रशंसा के पात्र बने। 2008 में स्वामी ने देश के बड़े घोटाले 2जी को उजागर कर 11 कंपनियों के 122 लाइसेंस रद्द करने के फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को तत्कालीन संचार मंत्री ए. राजा के खिलाफ कार्रवाई के लिए पत्र लिखे थे, लेकिन प्रधानमंत्री के कोई एक्शन न लेने पर उन्होंने खुद ही 2 जी मामले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।