मो. शहाबुद्दीन : प्रोफाइल

गुरुवार, 19 सितम्बर 2013 (11:24 IST)
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बिहार राज्‍य के सीवान जिले को कौन नहीं जानता। पहले और आज भी सीवान भारत के पहले राष्‍ट्रपति डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद का शहर कहा जाता है। लेकिन इसके साथ ही सीवान के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को कौन नहीं जानता।

भारत के सबसे दबंग सांसदों में एक, भारत के सबसे मोस्‍ट वांटेड अपराधियों की सूची में शामिल और राष्‍ट्रीय जनता दल के पूर्व सांसद वर्तमान के कई तर‍ह के आरोपों में सीवान जेल में बंद हैं।

मो. शहाबुद्दीन का जन्‍म सीवान जिले के प्रतापपुर में 10 मई 1967 को हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पहले प्रतापपुर से फिर सीवान से हुई। उन्‍होंने सीवान के डीएवी कॉलेज से स्‍नातक के पश्‍चात राजनीति शास्‍त्र में एमए की उपाधि प्राप्‍त की।

इसके बाद उन्होंने 2000 में मुजफ्फरपुर के बीआर अंबेडकर बिहार विश्‍वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्‍त की, जो काफी विवादों में रही। उनकी शादी हिना शेख से हुई, जो 2009 में सीवान लोकसभा सीट से राजद के तरफ से चुनाव लड़ी थीं और हार गई थीं। उनके एक पुत्र और दो पुत्रियां हैं।

मो. शहाबुद्दीन 1980 में डीएवी कॉलेज से ही राजनीति में आ गए। वे कॉलेज के दिनों में ही भारतीय कम्‍युनिस्ट पार्टी (भाकपा माले) तथा भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ लड़ाई के बाद से पहचाने जाने लगे।

उनके खिलाफ पहली बार 1986 में हुसैनगंज थाने में आपराधिक केस दायर हुआ जिसके बाद उनके खिलाफ लगातार केस दर्ज होते चले गए जिसके कारण वे देश की क्रिमिनल हिस्‍ट्रीशीटर की लिस्‍ट में शामिल हो गए।

1990 में मो. शहाबुद्दीन लालू प्रसाद की राष्‍ट्रीय जनता दल के युवा मोर्चा में शामिल हो गए। वे सीवान विधानसभा क्षेत्र से 1990 और 1995 में जीत हासिल कर राज्‍य विधानसभा के सदस्‍य बने।

वे 1996 में जनता दल के टिकट पर सीवान लोकसभा सीट से चुनाव जीते जिसके बाद उन्‍हें एचडी देवेगौड़ा सरकार में उन्‍हें गृह मंत्रालय का राज्‍यमंत्री बनाया गया जिसमें राज्‍य की कानून व्‍यवस्‍था बनाए रखने की जिम्‍मेवारी दी गई थी। मीडिया द्वारा उनके अपराधिक रेकॉर्ड के लगातार दिखाए जाने के बाद उन्‍होंने अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया।

मो. शहाबुद्दीन 1997 में केंद्र से इस्‍तीफा देकर लालू प्रसाद के साथ राज्‍य विधानसभा में वापस आ गए। इसके बाद उनका राज्‍य में प्रभाव बढ़ता गया। राज्‍य में उनके बढ़ते प्रभाव का ज्‍यादा असर सीवान जिले पर पड़ा, जहां की जनता भय की काली छाया में जीने लगी।

लोगों में इतना डर था कि वे अपने घर से निकलते समय यह सोचते थे कि वे आपस घर आकर अपने परिवार से मिल पाएंगे कि नहीं? लड़कियों तथा औरतों की इज्‍जत दांव पर लगी होती थी। इस दौरान जिले में उनके गुंड़ों के साथ राज्‍य के कई अपराधियों ने टक्‍कर लेकर अपनी जान गंवाई।

16 मार्च 2001 सीवान पुलिस के लिए काला दिन था, क्‍योंकि मो. शहाबुद्दीन ने राजद नेता मनोज कुमार की गिरफ्तारी के दौरान गई पुलिस को रोका और पुलिस अफसर को जोरदार थप्‍पड़ तथा उनके समर्थकों ने पुलिस को मारा था।

इस घटना ने बिहार पुलिस को झकझोरकर रख दिया। बिहार पुलिस ने तुरंत राज्‍य टास्‍क फोर्स तथा उत्‍तरप्रदेश पुलिस के साथ मिलकर मो. शहाबुद्दीन के गांव तथा घर को घेरकर हमला कर लिया।

इस हमले के बाद दोनों ओर से कई राउंड गोलियां चलीं जिसमें पुलिस वाले सहित कई लोग मारे गए। इस मुठभेड़ के बाद भी मो. शहाबुद्दीन घर से भागकर नेपाल पहुंच गया। पुलिस को उसके घर से तलाशी के दौरान कई विदेशी हथियार सहित कई विदेशी पासपोर्ट मिले लेकिन मनोज कुमार व शहाबुद्दीन नहीं मिले। इस घटना के बाद जिले में तनाव ज्‍यादा बढ़ गया जिससे संभालने के लिए जिले में कई महीनों तक टास्‍क फोर्स मौजूद रही।

2003 में मो. शहाबुद्दीन वर्ष 1999 में माकपा माले के सदस्‍य का अपहरण करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन वे स्‍वास्‍थ्य खराब होने का बहाना कर सीवान जिला अस्‍पताल में रहने लगे, जहां से वे 2004 में होने वाले चुनाव की तैयारियां करने लगे।

चुनाव में उन्होंने जनता दल यूनाइटेड के प्रत्याशी को 3 लाख से ज्‍यादा वोटों से हराया। इसके बाद शहाबुद्दीन के समर्थकों ने 8 जदयू कार्यकर्ताओं को मार डाला तथा कई कार्यकर्ताओं को पीटा। समर्थकों ने ओमप्रकाश यादव के ऊपर भी हमला कर दिया जिसमें वे बाल-बाल बचे, मगर उनके बहुत सारे समर्थक मारे गए।

इस घटना के बाद मो. शहाबुद्दीन के ऊपर राज्‍य के कई थानों में 34 मामले दर्ज हो गए।
2005 में वे रिहा होकर सीवान आए। उसी दौरान राज्‍य में 7 दिन के लिए नीतीश कुमार सत्‍ता में आए और सबसे पहले सीवान के एसपी और डीएम को हटाया तथा देश्‍ा के तेजतर्रार एसपी रत्‍न संजय और डीएम सीके अनिल सीवान में पदस्थ हुए।

इन दोनों के आने के बाद उन पर कई बार शहाबुद्दीन से समझौता करने का दबाव बना, मगर उन्होंने दबाव में न आकर उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी। राज्‍य पुलिस क‍ी विशेष टीम के साथ सीवान प्रशासन ने शहाबुद्दीन के घर की जांच-पड़ताल की जिसमें से कई विदेशी हथियारों सहित पाकिस्‍तानी पासपोर्ट, आईएसआई से संबंधित कागजात आदि बरामद हुए जिसके बाद उनके ऊपर बिहार के डीजीपी डीपी ओझा के निर्देश पर 8 नॉन बेलेबल केस दायर कर वारंट जारी किया गया।

2009 में वे पुलिस के हाथों लग गए और उसके बाद से वे लगातार जेल में ही हैं। इस दौरान उन्‍होंने जेल में ही कई पुलिस वालों को पीटा भी तथा उनके समर्थकों ने कितनों को ही मौत के घाट उतार दिया।

लेकिन उनको चार केस में उम्रकैद की सजा हो चुकी है जिसके कारण उनका राजनीतिक करियर अब लगभग समाप्‍त हो चुका है और सीवान जिले में जो आतंक और भय छाया था वह खत्‍म हो चुका है।

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