कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाने वाले विद्याचरण शुक्ल का जन्म 2 अगस्त 1929 को रायपुर में हुआ। विद्याचरण शुक्ल को राजनीति विरासत में मिली थी।
उनके पिता पंडित रविशंकर शुक्ल वकील, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और कांग्रेसी नेता थे। पंडित रविशंकर शुक्ल पुनर्गठित मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री भी थे।
विद्याचरण शुक्ल ने मॉरिस कॉलेज नागपुर से बीए करने के बाद एल्विन कूपर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी शुरुआत की। 1957 में कांग्रेस के टिकट पर वीसी शुक्ल ने महासमुंद सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा। उन्होंने सीट से बड़े अंतर से अपने प्रतिद्वंद्वी को हराया और भारतीय संसद में सबसे युवा सांसद बने।
इस सीट से वे नौ बार लोकसभा का चुनाव जीते। 1966 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कैबिनेट में उन्हें मंत्री बनाया गया। अपने लंबे राजनीतिक करियर में उन्होंने संचार, गृह, रक्षा, वित्त, योजना, विदेश, संसदीय आदि मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली।
1975-77 में जब देश में आपातकाल के समय शुक्ल सूचना और प्रसारण मंत्री थे। आपातकाल की ज्यादतियों की जांच के लिए गठित न्यायमूर्ति शाह आयोग ने अन्य टिप्पणियों के साथ यह भी कहा था कि आपातकाल के दौरान बंसीलाल, विद्याचरण शुक्ल, संजय गांधी जैसी कुछ नाटकीय शख्सियतों ने मध्ययुगीन तानाशाहों की तरह शक्तियों का उपयोग किया।
आपातकाल के दौरान उन्होंने आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर किशोर कुमार के गानों पर रोक लगा दी थी क्योंकि गायक ने मुंबई में कांग्रेस की रैली में गाने से इनकार कर दिया था। लेकिन, शाह आयोग के समक्ष शुक्ल ने अपने निर्णयों की जिम्मेदारी ली थी।
शुक्ल 80 के दशक के बाद के वर्षों में विश्वनाथ प्रताप सिंह से जुड़ गए और 1989 के संसदीय चुनाव से पूर्व गठित जनमोर्चा का हिस्सा रहे। शुक्ल को विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में मंत्री बनाया गया और बाद में वे चंद्रशेखर की तरफ आ गए और कुछ समय तक सत्ता में रही जद (एस) सरकार में मंत्री बने रहे। बाद में वे फिर कांग्रेस में लौटे और प्रधानमंत्री नरसिंह राव के नेतृत्व में संसदीय मामले और जल संसाधन मंत्री बने।
2004 में शुक्ल कांग्रेस छोड़कर शरद पवार की एनसीपी में शामिल हो गए। 2005 में शुक्ल भाजपा में शामिल हो गए। वे केंद्रीय समिति के सदस्य भी रहे। बाद में वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल इनके बड़े भाई थे।
शुक्ल के परिवार में पत्नी सरला शुक्ल और तीन पुत्रियां हैं। माओवादियों द्वारा 25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हमला हुआ जिसमें वीसी शुक्ल भी शामिल थे। शुक्ल का इलाज दिल्ली के गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में किया जा रहा था। अस्पताल में ही 11 जून 2013 को वीसी शुक्ल का निधन हो गया।