उसमें यह आरोप लगाया गया, यदि खालिस्तानियों ने विरोध प्रदर्शन में घुसपैठ की है, तो यह सरकार की ही विफलता है। सरकार विरोध को समाप्त नहीं करना चाहती है और आंदोलन को देशद्रोह का रंग देकर राजनीति करना चाहती है।
सामना में कहा गया, प्रधानमंत्री मोदी को किसानों के विरोध और साहस का स्वागत करना चाहिए। उन्हें किसानों की भावनाओं का सम्मान करते हुए कानूनों को खत्म कर देना चाहिए। मोदी का आज जितना बड़ा कद है, ऐसा करने से उनका कद और बड़ा हो जाएगा।
26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की निर्धारित ट्रैक्टर रैली का जिक्र करते हुए संपादकीय में कहा गया कि अगर सरकार चाहती है कि स्थिति और न बिगड़े, तो किसानों की भावनाओं को समझने की जरूरत है। उसमें कहा गया कि इस प्रदर्शन में अब तक 60 से 65 किसानों की जान जा चुकी है और देश ने आजादी के बाद अब तक ऐसा अनुशासित आंदोलन नहीं देखा है।(भाषा)