नवरात्रि के साथ ही बाजार सजने लगते हैं रंग-बिरंगी पारंपरिक 'चणिया-चोली' और 'केडि़यों' से। माँ नवदुर्गा की आराधना का यह नौ दिवसीय पर्व बाजारों की खोई रौनक को फिर से लौटा देता है।
फैशन से आज कुछ भी अछूता नहीं है। बदलते समय के साथ-साथ अब गरबा परिधान भी फैशनेबल बन गए हैं। नवरात्रि के लिए विशेष तौर पर गुजरात की 'गरबा ड्रेसेस' बाजार में आती है। सितारों की चमक-धमक तथा कोड़ियों से सजी ये पारंपरिक पोशाकें दिखने में बहुत ही सुंदर व आकर्षक लगती हैं।
केवल बड़ों के लिए ही नहीं बल्कि बच्चों के लिए भी चणिया-चोली व केडि़या की विशेष वैरायटियाँ बाजार में उपलब्ध हैं। पारंपरिक गरबा पोशाकें मुख्यत: राजकोट, अहमदाबाद, भावनगर व बड़ौदा से स्थानीय बाजारों में आती हैं।
* कैसी होती हैं गरबा ड्रेसेस :- महिलाओं और पुरुषों के लिए गरबा ड्रेसेस अलग-अलग होती हैं। महिलाओं की गरबा ड्रेस को गुजराती भाषा में 'चणिया-चोली' व पुरुषों की ड्रेस को 'केडि़या' कहा जाता है।
चणिया-चोली में लहँगा, चोली व ओढ़नी होती है। वहीं पुरुषों के केडि़या में रेडीमेड धोती व घेरदार शार्ट कुर्ता होता है। केडि़या टू पीस, थ्री पीस व फोर पीस में भी मिलता है। जिसमें कुर्ते के भीतर पहनने का जैकेट, सिर की वर्क वाली चमकीली टोपी व अन्य परिधान होते हैं।
Gayarti Sharma
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* बच्चों के लिए क्या है खास :- बच्चों के लिए भी विशेष तौर पर पारंपरिक गरबा ड्रेसेस बाजार में मिलती हैं। जिसमें सुंदर चणिया-चोली व केडि़या होता है। बच्चों की ड्रेसेस में कोड़ी, मोती, घुँघरु आदि बहुत पसंद किए जाते हैं। चमक-धमक वाली ड्रेसेस बच्चों द्वारा ज्यादा पसंद की जाती हैं।
* क्या है विशेष :- चणिया-चोली व केडि़या के वर्क में लगभग समानता रहती है। अभी इनमें आबला (काँच) वर्क, आरी भरत, कोढ़ी वर्क, ऊन भरत, नीम-जरी वर्क, टिक्की-मोती वर्क, स्टोन वर्क आदि का चलन है। फिल्म जोधा-अकबर की तर्ज पर इस बार रजवाड़ी स्टाईल का नया वर्क आया है। जो 'जोधा-अकबर वर्क' के नाम से बिक रहा है।
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* ऊन भरत वर्क :- यह पारंपरिक कच्छी वर्क है। जिसमें मशीन से कपड़े पर ऊन की कसीदाकारी की जाती है। यह सदाबहार वर्क है। जिसका फैशन कभी पुराना नहीं होता।
कपड़े पर रंग-बिरंगे ऊन से की गई यह कसीदाकारी बहुत ही सुंदर व उम्दा होती है। जिसे देखकर हर कोई मोहित हो जा जाता है।
* मिरर वर्क :- यह भी बहुत प्रचलित वर्क है तथा गरबा ड्रेसेस में इसकी विशेष माँग रहती है। इसके लिए कॉटन सिल्क फेब्रिक पर पहले ब्लॉक प्रिंटिग की जाती है। उसके बाद उस पर गोल, चोकोर या तिकोने काँच को धागों से टाँका जाता है।
* पेंटिंग वर्क :- गरबा ड्रेसेस में यह एक नया वर्क है। जो कि फिल्म 'जोधा-अकबर' के पारंपरिक रजवाड़ी परिधान की तर्ज पर आया है। इसमें कॉटन फेब्रिक पर पहले रंग-बिरंगी मनचाही पेटिंग की जाती है। फिर उस पर सितारे व मोती से वर्क किया जाता है।
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* नीम ज़री वर्क :- इसमें कपड़े पर पहले मशीन से सुंदर एम्ब्रायडरी की जाती है। उसके बाद उस पर हैंड वर्क किया जाता है। जो बहुत बारीक होता है।
* दाम पर एक नजर :- चणिया-चोली और केडि़या मुख्यत: कॉटन कपड़े पर ही बनते हैं। क्योंकि यह दाम में सस्ता होता है व इस पर वर्क का उठाव अच्छा आता है। लेकिन आजकल ये ड्रेसेस सिल्क के मटेरियल पर भी बन रही है। जिसके दाम कॉटन से अधिक है।
कॉटन की चणिया-चोली व केडि़या जहाँ हमें 300 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक मिल जाते हैं। वहीं सिल्क मटेरियल में यही ड्रेसे हमें 500 रुपए के शुरुआती दाम से 5000 रुपए तक में मिलती है।
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* क्या कहते हैं दुकानदार :- 'मृगनयनी एंपोरियम' के दिलीप सोनी के अनुसार - 'हमारे यहाँ गरबे की पारंपरिक ड्रेसेस गुजरात से लाई जाती है। लोग शौक से भी इन ड्रेसेस को खरीदते हैं और गरबों में तो इनकी विशेष माँग रहती है।'
'मधुलिका ड्रेसेस' के नाम से गरबा ड्रेसेस के निर्माता व विक्रेता मनीष बोहरा के अनुसार - 'गरबा हमारी संस्कृति की पहचान है। हम कितना भी आगे बढ़ जाएँ पर संस्कृति से हमारा जुड़ाव हमेशा रहेगा। उसी तरह गरबों में पारंपरिक चणिया-चोली व केड़िया पहनकर गरबे खेलने का मजा ही कुछ और है।'
लगातार बीस वर्षों से सम्राट ड्रेसेस के नाम से गरबा ड्रेसेस के विक्रेता 'पवन पंवार' मानते हैं कि आजकल गरबा ड्रेसेस की माँग पहले से अधिक बढ़ी है। पहले तो साड़ी व कुर्ते-पायजामे में भी लड़का-लड़की गरबा खेल लेते थे किंतु अब हर जगह पारंपरिक ड्रेस कोड लागू हो रहा है।
* परंपरा की झलक :- गरबा माँ शक्ति की आराधना का एक माध्यम है। यह हमारी परंपरा की पहचान है। जो हमें हमारी संस्कृति से जोड़े रखती है। पारंपरिक परिधान गरबे की शान होते हैं। जो हमें हमारी गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा का आभास कराते हैं।