किपलिंग के सपनों का जंगल

S.Sisodiya
यदि आपने रूडयार्ड किपलिंग की 'जंगल बुक' पढ़ी है और आप पुस्तक में वर्णित जंगल को साक्षात रूप में देखना चाहते हैं तो आपको कान्हा किसली अवश्य जाना चाहिए। कान्हा में साल और बाँस के सघन वन, लंबे चौड़े घास के मैदान तथा कल-कल बहती बंजर नदी की निर्मल धारा देखकर ही किपलिंग ने 'जंगल बुक' लिखने की प्रेरणा प्राप्त की थी।

एशिया के श्रेष्ठ राष्ट्रीय उद्यानों में से एक किपलिंग के सपनों का यह जंगल अनोखे बारहसिंगा का आखिरी घर तो है ही यहाँ जंगल के राजा बाघ को देखने के अवसर भी बहुत ज्यादा हैं। भारत में बाघों की सर्वाधिक संख्या इसी राष्ट्रीय उद्यान में है। ताजा गणना के मुताबिक वर्तमान में कान्हा में 200 के लगभग बाघ हैं। मध्यप्रदेश का राजकीय पशु व दुनिया की सबसे बड़ी हिरण प्रजाति में से एक दुर्लभ बारहसिंगा अब केवल कान्हा में ही बचे हैं। अधिकृत आँकड़ों के अनुसार अब यहाँ उनकी संख्या केवल 48 है। इन्हें बाघों व शिकारियों से बचाने के लिए संरक्षित क्षेत्र में रखा गया है।

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एक अनुमान के अनुसार भारत के वन्य पर्यटन में बाघों के माध्यम से 60 मिलियन डॉलर अर्जित किए जाते है। इतने सघन वन व वन्य प्रणियों की विविधता के कारण वन्य पर्यावरण प्रेमी यहाँ आने से अपने आपको रोक नहीं पाते हैं और प्राणियों और पंछियों विविध प्रजातियों व विस्तृत क्षेत्र के कारण कान्हा वन्य जीव प्रेमियों के लिए स्वर्ग है। यहाँ घास के मैदानों में कुलाँचें भरते चीतलों के झुंड़ पूरे दिन देखे जा सकते हैं।

बामनी दादर : यह सूर्यास्त देखने का मनोरम स्थान और उद्यान का सबसे खूबसूरत हिस्सा है। यहाँ से कान्हा का घना वन भी देखा जा सकता है। यहाँ सांभर, भौंकने वाले हिरण, गौर (बायसन) तथा चार सींगों वाले एंटीलोप देखे जा सकते हैं। कान्हा में मैमल्स की विभिन्न प्रजातियाँ हैं। जिसमें से धारीदार गिलहरियाँ, लंगूर, सियार, जंगली सुअर, चीतल, बारहसिंगा, स्वाम्प हिरण, सांभर आदि मुख्य रूप से पाए जाते हैं।

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अधिकता से पाई जाने वाली प्रजातियाँ- बाघ, जंगली कुत्ता, भौंकने वाला हिरण, गौर (बायसन) हैं। यदि आपमें सब्र अधिक है तो आप भारतीय लोमड़ी, स्लाथ, धारीदार सियार, जंगली बिल्ली, माउस डीयर, चौसिंगा, नीलगिरी, चीतल और से ही भी देख सकते हैं। कभी-कभी दिखने वाले प्राणियों में चिंकारा, भारतीय पेंगोलिन, भारतीय ऑटर और सीवेट हैं।

कान्हा में पक्षियों की 200 से ज्यादा प्रजातियाँ हैं। जिनमें से दुर्लभ भूरा उल्लू, ब्रेन फीवर, कठफोड़वा आदि को पहाड़ियों, बाँस के जंगलों और मैदानों में कहीं भी देखा जा सकता है। जलीय पक्षियों को भी श्रवणताल के करीब देखा जा सकता है। सुबह-सुबह और दोपहर के बाद पक्षियों को देखने का उत्तम समय है। यहाँ जाएँ तो दूरबीन ले जाना न भूलें।

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2000 वर्ग किमी. में फैले इस उद्यान में खूबसूरत जंगल, घास के मैदान और पर्वतीय वन हैं। यहाँ लगभग 200 बाघ, तेंदुए, भालू, जंगली सुअर, अजगर, दुर्लभ बारहसिंगा, नीलगाय, चीतल, गौर, सांभर, हिरण तथा सेही जैसे दुर्लभ जीव हैं। पक्षियों की कई प्रजातियाँ भी यहाँ चहकती हुई सुनाई-दिखाई देती हैं।

उद्यान के दो मुख्य द्वार हैं उत्तर-पश्चिम में खटिया गाँव के पास स्थित किसली और 35 किमी. दूर दक्षिण पश्चिम में मुक्की। कान्हा गाँव दोनों द्वारों के बीच स्थित है। उद्यान की ओर कई सड़कें जाती हैं लेकिन आपको तय करना है कि आपको कौन-सी सड़क चुननी है क्योंकि इसी आधार पर यह तय होगा कि आप कौन से प्राणी को देखने जा रहे हैं। यहाँ ध्यान रखने वाली मुख्य बात है कि आप गाइड अवश्य ले कर जाएँ क्योकि केवल वही आपको इस प्राकृतिक सौन्दर्य के असली दर्शन करा सकता है।

कान्हा न केवल प्राणियों बल्कि दुर्लभ पक्षियों व वनस्पति से भी भरपूर है जिनसे जानकार ही आपको परिचित करा सकता है, बड़े-बड़े घास के मैदानों में हिरणों के झुंड तो कहीं भी देखने को मिल जाते हैं मगर स्वच्छंद विचरण करते जंगल के राजा का सामना करने का रोमांच सिर्फ यहीं मिल सकता है।

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उद्यान सुबह तथा शाम की ट्रिप के लिए 1 नवंबर से 30 जून तक खुला रहता है। यह मानसून के समय बंद रहता है। नवंबर से 15 फरवरी तक सूर्योदय से दोपहर तक तथा 3 बजे से सूर्यास्त तक खुला रहता है। 16 फरवरी से लेकर 30 अप्रैल तक सूर्योदय से दोपहर तक तथा 4 बजे से सूर्यास्त तक खुला रहता है। 1 मई से 30 जून तक सूर्योदय से 11 बजे तक तथा 5 बजे से सूर्यास्त तक खुला रहता है।

दिसंबर तथा जनवरी में यहाँ का तापमान काफी ठंडा रहता है। न्यूनतम तापमान -1 डिग्री तक जा सकता हैं साथ ही ध्यान रखने वाली बात यह है कि जंगल में सुबह हमेशा ठंडी होती है। इसलिए गर्मी के मौसम में भी बच्चों के लिए गर्म कपड़े अवश्य रखें। मई और जून में तापमान 40 डिग्री के आस-पास पहुँच जाता है। इस मौसम में बाघ दिखने के अवसर सबसे ज्यादा होते हैं। जैसे-जैसे सूरज चढ़ता है प्राणी पानी पीने के लिए आते हैं।

बजट - कान्हा भ्रमण के लिए शुल्क - 120 रुपए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन (केवल भारतीय) व 60 रुपए 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए।

जीप राइड - रोजाना दिन में 2 बार सुबह 6.30 से 10.30 व शाम 4.00 से 7.00 तक उद्यान पर्यटकों के लिए खुला रहता है। यहाँ निजी व वन विभाग की कुल मिला कर लगभग 250 खुली जीपें (मारुति जिप्सी) पर्यटकों के लिए उपलब्ध है। एक फेरे में कुल 70 से 90 किमी तक जंगल की सैर कराई जाती है जिसके लिए 900 से 1100 रुपए तक किराया लिया जाता हैं। इस जीप में कुल 7 व्यक्ति सैर कर सकते हैं, यह बुकिंग आप रिसॉर्ट या गाइड के माध्यम से आसानी से करा सकते हैं।

बाघ दर्शन (एलिफेंट राइड) : बाघ दर्शन के लिए 120 रुपए प्रति व्यक्ति (केवल भारतीय) व 60 रुपए 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए। बाघ देखने का सबसे अच्छा तरीका हाथी पर जाना है, मगर छोटे बच्चों का हाथी पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।

* मूवी कैमरा (हैंडी कैमरा) पार्क के अंदर ले जाने का 360 रुपए अलग से देना होगा, डिजिटल कैमरा या स्टिल कैमरे पर किसी प्रकार का शुल्क नहीं है।

विजिटर्स सेंटर : उद्यान में तीन विजिटर्स सेंटर हैं एक कान्हा में और दो किसली और मुक्की द्वार पर। कान्हा सेंटर पर प्रणियों और उनके वातावरण को बड़ी खूबसूरती से दर्शाया गया है। यह प्रदर्शनी दर्शनीय है। यहाँ 20 मिनट का लाइट एंड साउंड शो 'एनकाउंटर इन दी डार्क' होता है। ये सेंटर सुबह 7 से 10.30 तक तथा शाम को 4 से 6 बजे तक खुले रहते हैं। किसली सेंटर पर 6.30 पर शाम को निःशुल्क फिल्म प्रदर्शन होता है।

टिप्स -
• जंगल मे छुट्टियाँ मनाते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होता है जैसे कि भडकीले रंग के कपड़े नहीं पहनें,
• जंगल में किसी भी प्रकार का प्रदूषण व कचरा न फैलाएँ,
• अपने साथ पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में रखे, मच्छरों से बचाव वाली स्किन ट्यूब रखना न भूलें।
• मेडिकल फर्स्ट एड बाक्स रखना भी याद रखें।
• किसी भी जानवर को देखकर शोर न मचाएँ खास तौर पर बाघ को देखकर तो किसी भी हालत में शोर-शराबा न करें।
• साथ में छोटे बच्चे होने की हालत में ऐलिफेंट राइड न लेना ही बेहतर होगा क्योंकि यह खतरनाक हो सकता है व बच्चे के रोने की आवाज सुनकर बाघ हमला कर सकता है।
• वन्य पर्यटन साधारण पर्यटन नहीं है। इसे हम ईको टूरिज्म कह सकते हैं, जंगल में जंगल के नियमों से ही रहना पड़ता है।
• अपने साथ कैमरा अवश्य रखें। वन्य जीवन को देखने का हर पल आप सहेज कर रखना चाहेंगे।
• अगर खुद के वाहन से जा रहे हों तो सफर से पहले वाहन की जाँच करा लें। याद रहे डीजल वाहनों का पार्क में प्रवेश प्रतिबंधित है। केवल पेट्रोल वाहन ही पार्क में अन्दर जा सकते हैं।
• रास्ते का नक्शा जरूर साथ रखें व जंगल के रास्तों पर वाहन से बाहर नही निकलें।

कैसे पहुँचे
रेलमार्ग : किसली से सबसे करीब रेलवे स्टेशन चिड़ियाडोंगरी है, जिसके लिए जबलपुर या गोंदिया से ट्रेन पकड़नी होती है।

वायुमार्ग : सबसे नजदीकी विमानतल जबलपुर है। यहाँ से सड़क दूरी 161 किमी है।

सड़क मार्ग : सबसे नजदीकी शहर मंडला यहाँ से 62 किमी दूर है। आप जबलपुर पहुँच जाएँ तो जबलपुर से किसली और मुक्की के लिए बसें चलती हैं।

कहाँ ठहरे
किसली क्षेत्र में कृष्णा जंगल रिसॉर्ट, वाइल्ड चेलेट, मोगली रिसॉर्ट, किपलिंग कैम्प, कान्हा जंगल लॉज इत्यादि हैं। एसी, नॉन एसी कमरे 600 रुपए से लेकर 3000 रुपए प्रतिदिन किराए में उपलब्ध है। म.प्र. पर्यटन विभाग की होटलों में इस शुल्क में खाना भी शामिल है। यहाँ किराए की जीप लेकर आप कान्हा की सैर को निकल सकते हैं। ड्रायवर के रूप में अनुभवी व्यक्ति को साथ ले जाना आपके लिए फायदेमंद होगा।

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