लखनऊ। उत्तरप्रदेश के लखनऊ में जहां आज किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) बनी हुई है, कभी यहां पर अभेद्य दुर्ग मच्छी भवन होता था और एक समय पर इस भवन में नवाबों का कब्जा होता था। लेकिन एक ऐसा समय आया, जब यहां पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और उनकी फौज यहां पर रहने लगी।
लेकिन 1857 में जब अंग्रेजी सेना भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों से घबराने लगी और अंग्रेजों को लगा कि अब भारतीय स्वतंत्रत सेनानी अभेद्य दुर्ग मच्छी भवन को अपने कब्जे में वापस ले लेंगे तो घबराकर ब्रिगेडियर जनरल हेनरी लॉरेंस ने वहां के गोला-बारूद के गोदाम में आग लगाकर भीषण विस्फोट कर दिया जिसके कारण पूरा मच्छी भवन तहस-नहस हो गया और अंग्रेजों ने जाते-जाते उसका अस्तित्व ही खत्म कर दिया।
1590 में रखी गई थी अभेद्य दुर्ग मच्छी भवन की नींव : लखनऊ में गोमती नदी के किनारे टीले वाली मस्जिद से कुछ ही दूरी पर अभेद्य दुर्ग मच्छी भवन का निर्माण 1590 में शेख अब्दुर्रहीम ने करवाया था। इतिहासकारों की मानें तो एक समय ऐसा था, जब अब्दुर्रहीम कभी बेहद मोहताजी में रहता था। लेकिन समय का पहिया घूमा और वह दिल्ली पहुंच गया। दिल्ली पहुंचने के बाद उसकी किस्मत ही बदल गई और उसने ईमानदारी और काम से बादशाह अकबर को ऐसा खुश किया कि उन्होंने लखनपुर की जागीर उसके नाम कर दी। इसके बाद अब्दुर्रहीम ने अभेद्य दुर्ग मच्छी भवन का निर्माण कराया।
इतिहासकार अब्दुल हरीम शरर ने अपनी किताब 'गुजिश्ता लखनऊ' में लिखा है कि लखना नाम के अहीर ने इस भव्य किले का निर्माण करवाया था। इस किले में 26 मेहराबें थीं जिनमें हर मेहराब पर 2 मछलियां चित्रित थीं। 1766 के आस-पास शायद मेहराबों पर चित्रित मछलियों के ही कारण उसे मच्छी भवन कहा जाने लगा। इसमें शस्त्रागार भी था। उसका मुख्य दरवाजा शेखन दरवाजा कहलाता था।
लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता गया, हालात और वक्त भी बदलता गया और एक समय के बाद इस पर नवाबों ने कब्जा कर लिया। नवाबों का कब्जा भी ज्यादा दिन नहीं रहा, क्योंकि अंग्रेजी सेना के ब्रिगेडियर जनरल हेनरी लॉरेंस लखनऊ में रेजीडेंसी के अलावा सैन्य ठिकाने के लिए जगह तलाश रहे थे। उन्हें मच्छी भवन सबसे मुफीद लगा। 1856 में अंग्रेजी सेना ने हेनरी लॉरेंस की अगुवाई में मच्छी भवन पर कब्जा कर लिया।
मेडिकल कॉलेज खोलने का रखा गया प्रस्ताव : इतिहासकारों की मानें तो अंग्रेजों द्वारा विस्फोट कर पूरे मच्छी भवन को खंडहर में तब्दील कर दिया गया था जिसके बाद 1870 में महाराजा विजयनगरम ने यहां मेडिकल कॉलेज खोलने पर विचार किया। 1905 में जब प्रिंस ऑफ वेल्स किंग सम्राट जॉर्ज पंचम आए तो उनके सामने प्रस्ताव रखा गया और मेडिकल कॉलेज खोलने का फैसला लिया गया और आगे चलकर इसकी पहचान किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के नाम से होने लगी।