ये जनता को क्या हो गया। अचानक ही क्या पागलपन कर बैठी है। दिन-रात का साथ है। नेताजी को कुछ समझ में नही आ रहा। वे अपने प्यारे नेताओं की बात मानने को ही तैयार नहीं है। पूरे देश में बस एक ही माहौल फैला रखा है कि भ्रष्टाचार को खत्म किया जाए। कितनी गलत बात है। अब भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो। वह तो उनकी आत्मा तक में समा गया है। उन्हें खुद ही पता नहीं है कि कौन सा भ्रष्टाचार है और कौन से वे स्वयं हैं।
उनके अधिक खाने को लेकर लोग भूख हड़ताल कर रहे हैं। वे भी क्या करें। कमबख्त पेट ही चैन नहीं लेने देता। कितना भी डालो, और मांग कर बैठता है। अब उनका कौन सा मन करता है कि अधिक खाएं। इस पापी पेट की खातिर सब करना पड़ता है। फिर क्या करें। बात वसुधैव कुटुंबकम की करते हैं तो और दुनिया का नहीं, तो अपने बच्चों, नाते-रिश्तेदारों, मिलने-जुलने वालों का तो ध्यान रखना ही पड़ेगा। जिन लोगों ने मुसीबत के समय मदद कर जिताया अब उन्हें भला कैसे भूला सकते हैं।
नेताजी तो समझ बैठे थे कि बस घोटालों पर मजबूरी का बयान देने से जनता द्रवित हो उठी होगी और मजबूरी को समझकर माफ भी कर दिया होगा। वह तो बहुत राहत महसूस कर रहे थे। अब तो बस कितने भी घोटालें करें, सात पुश्तों का इंतजाम कर लें। कोई कुछ नहीं कहेगा। रामजी की चिड़िया रामजी के खेत। बस अब तो चुगना ही चुगना है।
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सोचा यही था कि जनता तो बड़ी सीधी-सादी है। थोड़े से वादे करो, उसकी शिकायतों पर कड़ी कार्रवाई के दो-चार बयान उछाल दो। बेचारी मान जाएगी। यही सोचकर संतुष्ट हो जाएगी कि बेचारे पछतावा कर रहे हैं, कड़ी कार्रवाई के लिए कह रहे हैं। अब क्या करें। मजबूर हैं, सत्ता के बिना जी नहीं सकते। और फिर दिल के कितने साफ हैं, साफ-साफ कह दिया। मजबूरी जता भी दी। लाखों करोड़ों के घोटाले पर कैसे उंगली उठा दें।
पर यह तो गजब ही हुआ। सारा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा हो गया। यह तो सोचा ही न था। किंतु यहां तो सबकुछ ही बदल गया। जनता कोई ऐसी भी होती है। ऐसी जनता रहेगी तो आगे क्या होगा। हर बात का जवाब देना होगा। तो फिर घोटाले कैसे होंगे, भ्रष्टाचार कैसे होंगे। सबकुछ दूसरों के बच्चों को देना होगा तो फिर अपने बच्चों का क्या होगा।
सो नेताजी अब बहुत परेशान हैं। जनता कैसे जाग गई। इतने समय से सो रही थी। सोती हुई कितनी अच्छी लगती थी। इन कमबख्तों ने क्यों उठा दिया। अब जाग ही गई है तो फिर देखेगी भी सही। और जब देखेगी तो गलत भी दिखेगा। गलत दिखेगा तो भला वह चुप कैसे रह पाएगी। बोलेगी भी सही। और बार-बार बोलेगी तो फिर केवल बोलकर ही थोड़े रह जाएगी। वह कुछ कर भी सकती है। और करेगी तो फिर कुछ क्या, बहुत कुछ करेगी।