कैसे मिले विधेयक को मजबूती?

- अतुल कनक
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सरकार कह रही है कि वह एक मजबूत विधेयक लाना चाहती है। विधेयक की मांग करने वाले भी चाहते हैं कि विधेयक बहुत मजबूत हो-लेकिन दोनों इस बात पर एकमत नहीं हो पा रहे हैं कि विधेयक में मजबूती लाई कैसे जाए। ऐसा हमारे जीवन में अक्सर होता है, हम तय ही नहीं कर पाते कि अपनी जरूरतों को मजबूती कैसे प्रदान करें?

किसी तरह किश्तों का जुगाड़ करके कार खरीदते हैं तो पेट्रोल महंगा हो जाता है और महंगाई भत्ते में वृद्धि के आश्वासन पर बिटिया को महंगे स्कूल में दाखिला दिलाते हैं तो स्कूल वाले ट्यूशन फीस से लेकर स्कूल बस की फीस तक न जाने किस-किस किस्म की चौथ वसूली पर आमादा हो जाते हैं। लाख कोशिशों के बावजूद सपनों के फर्नीचर में मजबूती को जोड़ लग ही नहीं पाता है।

अब देखिए, सब चाहते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत विधेयक आए। हम सबने मान लिया है कि बिना मजबूती के भ्रष्टाचार के खिलाफ बातें करना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है। भ्रष्टाचार की भैंस को काबू करने के लिए एक मजबूत विधेयक की लाठी आवश्यक है।

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भैंस उसी की होती है, जिसके पास लाठी होती है। लेकिन केवल लाठी होना महत्वपूर्ण नहीं है, लाठी का मजबूत होना भी महत्वपूर्ण है। लोगों को तो काला अक्षर भी भैंस बराबर दिखाई देता है। लेकिन भ्रष्टाचार के जंगल में केवल भैंसें ही नहीं भ्रमण करतीं, कई दूसरे मरखने जानवर भी विचरते हैं। इसलिए लाठी की मजबूती बहुत आवश्यक है। सरकार विधेयक को मजबूती प्रदान करना चाहती है। विपक्षी भी कमजोर विधेयक के पक्ष में नहीं है। उन्हें भी एक मजबूत विधेयक चाहिए। अब सवाल यह है कि विधेयक को मजबूती मिले कैसे?

एक मजबूत किस्म के लोकतंत्र में एक मजबूत प्रकृति के भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक मजबूत स्वभाव वाले विधेयक को लाने की मजबूत तैयारियां चल रही हैं। हम सब भी चाहते हैं यह विधेयक इतना मजबूत हो कि दुनिया इसे देखते ही कहे- यह लोकतंत्र का विधेयक है। इतनी आसानी से नहीं टूटेगा।

इसीलिए चाहे इसके तलवे पर अतिरिक्त सिलाई करवानी पड़े, जनता के माथे महंगाई का अतिरिक्त बोझ डालकर भी इसे तेल पिलाना पड़े या समूचे लोकतंत्र को कसरत करने के लिए किसी अखाड़े में भेजना पड़े-लेकिन प्लीज, इस विधेयक को मजबूत बनाओ। हमारी उम्मीदें इसकी मजबूती के भरोसे ही टिकी हैं।

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