प्रेम के न्यारे रंग...!

- पूरन सरम
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हमारे यहाँ प्रेम की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है। वैदिक काल के ऋषि-मुनि इसकी अभिव्यक्ति नाना प्रकार से करके हमारे लिए मार्ग प्रशस्त करते रहे हैं। वह प्रेम भी सर्वथा पवित्रता के साथ किया जाता था तथा उसमें समाज की एन.ओ.सी. की आवश्यकता नहीं थी।

नायिका की माँग 'नीट एंड क्लीन' प्रेम की थी और मैं इस बात को लेकर ऊहापोह में था। कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? बाल्यकाल में जब मैं आठवीं-नवीं कक्षा में पढ़ता था- उस समय तो यह बात सौ-फीसदी लागू होती थी। जैसे कि लड़की को देखकर दिन भर मुस्कराते रहो तो उसी से प्रेमाभिव्यक्ति अत्यंत सघन जाती थी।

आजकल प्रेम के रंग न्यारे है। अब भी उसका प्रचलन नाना प्रकार से हो रहा है। समाज की एन.ओ.सी. को तो अब के प्रेमियों ने अंगूठा दिखा दिया है। प्रेमिका से जो अनापत्ति प्रमाण पत्र चाहिए उसमें भी दो प्रकार का फलसफा प्रचलित है। एक बिना एन.ओ.सी. के तथा दूसरा बाकायदा प्रेमिका से एन.ओ.सी. लेकर। कुछ मामलों में 'वन साइडेड गेम' भी चल रहा है। यानी सामने वाले को पता ही नहीं और प्रेम परवान चढ़ रहा है। ऐसे मामलों को 'दीवाना' कहकर, 'पागल' कहकर टाल दिया जाता है।

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फिल्मी गानों को सुनें तो नायिकाएँ नायक को पागल और दीवाना कहकर उसकी खिल्ली उड़ाती हैं। अब यह बात दीगर है कि अंत में वही दीवाना और पागल उसका असली मजनूँ साबित होता है। मजनूँ बनने के बाद तो खेल और भी जोखिम भरा होता जाता है। दीवानगी चरम पर होती है और नायिका के प्राप्त करने के नायाब नुस्खे काम में लेने पड़ जाते हैं।

मेरे कहने का आशय यह है कि पहले प्रेम 'नीट एंड क्लीन' था लेकिन इस जमाने के प्रेमी तो देह गंध में भीगे हुए हैं। परंतु नायिकाओं की प्रारंभिक माँग भी यही होती है, किया भी क्या जा सकता है। इसी जटिलता का शिकार मैं था। मैंने तर्क दिया भी कि बिना पास बैठे या छुए बिना यह आध्यात्मिक प्रेम मेरे बस में नहीं है, तो इसका उत्तर नायिका ने कुछ नहीं दिया और चली गई।

मैंने इस संबंध में अनुभवी जोगियों और प्रेम पुजारियों से संपर्क किया तो उन्होंने मर्म समझाया कि मूर्ख वह तो यही कहेगी, तुम जो कर सकते हो, वह तुम्हें करना चाहिए। उन्होंने मुझसे ही पूछा, 'बताओ, तुम्हें उसने नादान क्यों कहा?' फिर उन्होंने उत्तर दिया, 'बच्चू, नायिकाएँ प्रेम में तुमसे पचास कदम आगे निकल गई हैं और तुम अभी 'नीट एंड क्लीन' के भय की सीमा रेखा पार करने में उलझे हुए हो। जाओ और अपने प्रेम का बेखौफ इजहार कर दो, तुम्हारी बिगड़ी बात बन जाएगी।'

मैंने शंका भी प्रकट की कि कहीं सिर पर किसी प्रकार का प्रहार तो नहीं हो जाएगा लेकिन उनसे अभयदान लेकर पुनः इस क्षेत्र में आया तो पाया कि जोगियों और प्रेम पुजारियों की बात झूठी नहीं होती।

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