रंगपंचमी : खट्टा-मीठा काव्य-रस

होली बीते दिन हुए, अब क्यों मले गुलाल।

मारेगी ताना सखी, देख गुलाबी गाल ॥

सैंया ने रंग दियो, बिना रंग के होली में ।

हो गई मैं तो लाल-गुलाबी, रात की ठिठोली में ॥

हौले-हौले क्या बोले तू, मस्ती भरी इस होली में ।

पकड़ी कलाई अब ना छोड़ूं, भीगे दामन चोली में ॥

धक्‌-धक्‌ मेरा दिल धड़के, उड़ता फिरूं आकाश में ।

फर-फर उड़े चुनरिया तेरी, होली की भागमभाग में ॥

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