फिल्मी गीतों में छुपे अर्थ हंसा देंगे आपको :विनोद वार्ता

फिल्मी गीत हमारा भरपूर मनोरंजन ही नहीं करते हैं अपितु यह उन फिल्मों को हिट करने में भी कामयाब होते हैं जिनमें यह होते हैं किंतु उन गानों पर कभी गौर फरमाइए उनके शब्द और उसमें छुपे अर्थ व मर्म पर अपना ध्यान थोड़ा दीजिए तो आप ताज्जुब करेंगे गीतकार की कलम पर....! 
 
हास्य पर क्या लिखूं जब यह सोच रही थी तो हमेशा की तरह पार्श्व में संगीत बज रहा था जो मेरी सोच में थोड़ा खलल डाल रहा था पर अनायास उस गाने के बोल पर मेरी सोच टिक गई और वहीं से कलम को गति मिल गई...
 
गाना बज रहा था छत पर सोया था बहनोई राणा जी मुझे माफ करना.... तो सवाल यह उठता है कि जब बहनोई छत पर सोया था तो भला वो  क्यों गई छत पर और अब राणा जी क्यों माफ करें भला..? 
 
मेरी बेरी के बेर मत तोड़ो कांटा लग जाएगा... अरे जो भी बेर तोड़ने जाएगा उसे मालूम है कि बेरी में कांटे होते हैं....
चोली के पीछे क्या है चुनरी के नीचे..? लो भला यह भी कोई बताने की बात है कि चोली के पीछे क्या है सबको पता है पर नहीं सखियों जो आप समझ रही हो मैं वह नहीं कह रही हूं मैं तो कह रही हूं कि.... 'वहां एक दिल भी होता है और उस दिल में दर्द की आवाज होती है जो सिर्फ दिल वालो को ही सुनाई देती है...'
 
जादूगर सैयां छोड़ो मोरी बैयां हो गई आधी रात अब घर जाने दे... 
आधी रात तक भला क्यों हो तुम जादूगर सैयां के साथ और जब हो आधी रात तक तो वह भला कैसे जाने देगा...? रुक ही जाओ रात में जाना भी तो भला सुरक्षित नहीं है। रुकने में खतरा है तो जाने में भी खतरा ही है अतः फैसला तुम्हारे हाथ में है।  पर फैसला करने के पहले जरा सोचो.... 
 
'परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता 
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता '
 
माधुरी दीक्षित पर एक गाना फिल्माया गया था... मेरा पिया घर आया ओ राम जी। तो सवाल यह उठता है कि पिया घर नहीं आएगा तो बेचारा कहां जाएगा ..?
 
और अगर कभी कहीं चला गया तो बवाल नहीं उठ जाएगा क्या..? सुहागरात है घूंघट उठा रहा हूं.. सुहागरात है तो घूंघट तो उठाना ही पड़ेगा ना कोई और तो नहीं आएगा उठाने....? 
 
जब हम हास्य ढूंढने बैठते हैं तो हमें हर जगह मिल जाता है बानगी देखिये... चुप चुप खड़े हो जरूर कोई बात है,पहली मुलाकात है जी पहली मुलाकात है ...
 
पहली मुलाकात में तो चुप चुप ही खड़ी रहेगी ना अगर ज्यादा बोलेगी तो बेशर्मी की उपमा पा जाएगी बेचारी ...? 
 
आशा पारिख से लेकर शेफाली जरीवाला तक कह- कह कर थक गई कि... 'बंगले के पीछे तेरी बेरी के नीचे कांटा लगा..' चप्पल जूता अगर नहीं पहनेंगे तो काटा तो लगेगा ना..? पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बस कांटा ही लगा है शायद नियति को यही मंजूर है... 
 
' साथी तुम छाया में चलने के अभिलाषी, मैं किस्मत में धूप लिखा कर ही लाया हूं,
आंख तुम्हारी बस फूलों पर ही जाती है, मैं कांटो की प्यास बुझाने को आया हूं।'
 
शीला शीला की जवानी और मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए, बीड़ी जलई ले पिया जिगर में बड़ी आग है... इन गानों में क्या है कैसी तो उपमा उत्प्रेक्षा अलंकार है शब्दों में भाषा भावना रंग और रस का उपयोग अत्यंत खुले ढंग से किया गया है।

स्त्री का चरित्र वह नहीं है जो इन गानों में दिखाई देता है हम उस देश में रहते हैं जहां स्त्री का सम्मान होता है उसकी पूजा होती है अतः हम किसी मुन्नी को कभी भी बदनाम नहीं होने देंगे बल्कि उसे उचित सम्मान ही देंगे क्योंकि साहित्य मनुष्य से जुड़े हर विषय की गहरी पड़ताल करता है वक्त की हर धड़कन को पहचानता है और भाषा को नए रूप में गढ़ता है। पर वह मूल्यों की भी बात करता है स्त्री के शाश्वत होने की पुष्टि करता है।
 

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी