दुनिया भर के मजाकिया और हास्य प्रिय लोगों का दिन 'अप्रैल फूल डे' आज है। मजाकिया किस्म के लोग आए दिन अपने दोस्तों-परिचितों के साथ मजाक करके उन्हें बेवकूफ बनाते हैं। एक अप्रैल तो का दिन और खास है इस दिन मजाकिया स्वभाव का आदमी ही नहीं हर व्यक्ति छोटे-मोटे मजाक करने से नहीं चूकता। कुछ क्षणों की बेवकूफियों का उद्देश्य किसी को आहत करना नहीं, बल्कि हँसना-हँसाना होता है।
अप्रिल फूल बनाया, तो उनको गुस्सा आया, इसमें मेरा क्या कसूर, जमाने का कसूर जिसने ये दस्तूर बनाया। 'अप्रैल फूल' फिल्म के गाने की ये पंक्तियाँ 1 अप्रैल यानी मूर्ख दिवस के दिन सभी के जेहन में जरूर आती हैं और अपने यार-दोस्तों को मूर्ख बनाने के बाद लोग इन्हें गुनगुनाते भी हैं।
इस दिन लोग बिना किसी आचार संहिता के एक- दूसरे को मूर्ख बनाने के लिए दिल खोलकर झूठ बोलकर, ऊट-पटांग बातें कहकर, झूठे आरोप लगाकर, गलत सूचनाएँ आदि देकर मूर्ख बनाने के कई सारे फंडे अपनाने की कोशिश में लगे रहते हैं। हर किसी का मकसद यही कि किसी तरह परिवार या दोस्तों को मूर्ख दिवस की टोपी पहनाई जा सके और उठा सकें निश्छल हँसी-मजाक का आनंद।
मूर्ख दिवस का इतिहास :-
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मूर्ख दिवस मनाए जाने को लेकर कई रोचक अवधारणाएँ प्रचलित हैं। इनमें सबसे अधिक प्रचलित अवधारणा के मुताबिक प्राचीनकाल में रोमन लोग अप्रैल में अपने नए वर्ष की शुरुआत करते थे, तो वहीं मध्यकालीन यूरोप में 25 मार्च को नववर्ष के उपलक्ष्य में एक उत्सव भी मनाया जाता था। लेकिन 1852 में पोप ग्रेगरी अष्ठम ने ग्रेगेरियन कैलेंडर (वर्तमान में मान्य कैलेंडर) की घोषणा की, जिसके आधार पर जनवरी से नए वर्ष की शुरुआत की गई। फ्रांस द्वारा इस कैलेंडर को सबसे पहले स्वीकार किया गया था।
जनश्रुति के आधार पर यूरोप के कई लोगों ने जहाँ इस कैलेंडर को स्वीकार नहीं किया था तो वहीं कई लोगों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं थी। जिसके चलते नए कैलेंडर के आधार पर नववर्ष मनाने वाले लोग पुराने तरीके से अप्रैल में नववर्ष मनाने वाले लोगों को मूर्ख मनाने लगे और तभी से अप्रैल फूल या मूर्ख दिवस का प्रचलन बढ़ता चला गया।
तो चलिए आज निश्छल शरारत की कलम को हँसी की स्याही में डुबो, दिमाग के खुराफाती कैनवास में तैयार करते हैं कुछ खुशी की मिठास से भरे प्लान और बनाते हैं दोस्तों को मूर्ख, क्योंकि आज है अप्रैल फूल।
हँसी-मजाक और निश्छल आनंद के लिए मनाए जाने वाले मूर्ख दिवस को मनाएँ तो जरूर, लेकिन साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके द्वारा किया गया मजाक किसी को हानि न पहुँचाए।
निम्न विषयों पर न करें मजाक-
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- किसी के स्वास्थ्य संबंधी खबर को लेकर। - करियर संबंधी किसी विषय को लेकर। - किसी के चलने, बोलने और पहनने के ढंग को लेकर। - न करें अश्लील और भद्दे मजाक। - किसी के धर्म, सम्प्रदाय, जाति आदि को लेकर न करें मजाक।
यूँ बनाएँ अपने दोस्तों को फूल :- * एक जगह तीन चार दोस्त खड़े हो जाएँ और आसमान की तरफ कुछ देखने की कोशिश करें। आपके ऐसा करने से आसपास गुजरने वाले लोग एक बार जरूर आसमान की ओर आँख उठाकर देखेंगे।
* नेट में भेजिए दोस्तों को प्यारे-प्यारे मूर्ख दिवस के कार्ड।
* जरूरी कॉल करना है कहकर दोस्तों से मोबाइल फोन लेकर तब तक झूठ-मूठ बात कीजिए जब तक कि आपके दोस्त के माथे पर बैलेंस खत्म हो जाने को लेकर चिंता की लकीरें न आ जाएँ।
* दोस्तों को फोन कर उन्हीं से अपना नंबर पूछें और उन्हें यह विश्वास दिलाएँ कि आपको कुछ भी याद नहीं है।
कुछ किस्से :-
1 अप्रैल को दोस्तों को मूर्ख बनाने के लिए सभी के दिमाग में कोई न कोई खुरापात चलती ही रहती है। ऐसी ही मस्ती भरी शरारत की शिकार हुई अभिलाषा कहती है- पड़ोस में रहने वाली उनकी सहेली ने यह कहकर उसे बुद्धू बनाया कि मेरे भैया वैष्णोदेवी गए थे, जहाँ से वह यह प्रसाद लेकर आए हैं। अभिलाषा ने जब प्रसाद की पुडि़या खोली तो उसमें उन्हें आटा मिला। जिसे देखकर उन्हें याद आया कि आज एक अप्रैल है।
पीयूष कहते हैं- उन्होंने अपने मित्र रजनीश की नई शर्ट के पृष्ठ भाग पर लाल स्केच पेन से 'किक मी' लिख दिया। वही शर्ट पहनकर रजनीश कॉलेज चला गया, जहाँ दोस्तों ने उसका खूब मजाक उड़ाया और कुछ ने तो दो-चार मुक्के भी जड़ दिए। हक्का-बक्का रजनीश घर लौटा और पीयूष की जम के धुलाई कर दी। तब से दोनों ने अपने मकान अलग कर लिए। बाद में रजनीश को पछतावा हुआ कि एक साधारण से मजाक को वह सह नहीं पाया।
आठवीं की क्लास की शारदा क्लास की मॉनीटर थी और टीचर के आने से पहले डस्टर से ब्लैक बोर्ड साफ करती थी। शारदा अजमत को अक्सर चिढ़ाया करती थी। अजमत ने एक दिन डस्टर में खुजली वाला पदार्थ लगा दिया मगर उस दिन शारदा ने नहीं हिन्दी के मैडम ने आकर ब्लैक बोर्ड साफ किया जिससे उनके हाथों में खुजली शुरू हो गई।
उनकी शिकायत पर प्राचार्य ने कहा कि शरारत करने वाला सामने आ जाए वरना पूरी कक्षा सस्पेंड हो जाएगी। किसी ने मुँह न खोला। अजमत ने पूरी कक्षा को सस्पेंड होने से बचाने के लिए प्राचार्य के सामने अपनी गलती स्वीकार ली मगर आग्रह किया कि उनके पापा को न बताया जाए।