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आरती जय कुरसी माता,
जगत सब तेरी शरण आता।
मूढ़-अज्ञानी रिश्वतदानी, सब तुम्हरे ही चेले।
जहां बिराजैं देवी मैया, हर दिन लगते मेले।।
भगत भी झूम-झूम गाता,
आरती जय कुरसी माता।
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अतुलित बल की तुम महरानी, हुकुम तुम्हारो चाले।
अपनी सेवा में मैया ने, ढेरों गुण्डे पाले।।
तिकड़मी लोगन से नाता,
आरती जय कुरसी माता।।
सीधा-सादा चुप्पी साधे, दरबारी मुंह खोलें।
आस्तीन के सांप संग में, पालैं बहुत संपोले।।
प्रसादी चमचा ही पाता,
आरती जय कुरसी माता।।
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शत्रु-दलन में तुम हो माहिर, आंख पै पट्टी बांधी।
राज-काज कुछ ऐसे फैलो, रोएं विनोबा-गांधी।।
विदेशी बैंकों में खाता,
आरती जय कुरसी माता।।
चांदी की तुम पहन खड़ाऊं, सम्हल-सम्हल पग धारो।
जल बिच बैर मगर से कैसो, छांटि-छांटि संहारो।
बेचारा मुंह की वह खाता,
आरती जय कुरसी माता।।
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कितने ही आयोग बिठाओ, तुम पर आंच न आवै।
भाई-भतीजा, बेटा-बीवी, सबके सब सुख पावैं।।
खोखला देश हुआ जाता,
आरती जय कुरसी माता।।
हाहाकार, ढेर-सा कर्जा, हमको दी सौगातें,
सत्ता-जनता बीच फासला, बगुला भगत बढ़ाते।
सारथी तेरा मतदाता,
आरती जय कुरसी माता।।
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हाथ तुम्हारे एटम बम है, संग मिसाइल राजै।
लछमीजी का वाहन अपने, दल-बल सहित बिराजै।।
मनोबल चौपट हो जाता,
आरती जय कुरसी माता।।
एक हाथ जादू की लकड़ी, दूजा खप्पर धारी।
तेरे दरवाजे पर मैया, होती मारा-मारी।।
काइयांपन तेरा भाता, आरती जय कुरसी माता।
जगत सब तेरी शरण आता, आरती जय कुरसी माता।।