श्री गणेश ने अपना वाहन मूषक क्यों चुना (why ganesh vahan rat) ? इस विषय में कई कथाएं मिलती हैं। यहां प्रस्तुत हैं एक रोचक कथा-
एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा इंद्र के दरबार में क्रौंच नामक गंधर्व था। एक बार इंद्र किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे लेकिन क्रौंच किसी और ही मूड में था। वह अप्सराओं से हंसी ठिठोली कर रहा था। इंद्र का ध्यान उस पर गया तो नाराज इंद्र ने उसे चूहा बन जाने का शाप दे दिया।
क्रौंच का चंचल स्वभाव तो बदलने से रहा। एक बलवान मूषक (Rat) के रूप में वह सीधे पराशर ऋषि के आश्रम में आ गिरा। आते ही उसने भयंकर उत्पात मचा दिया, आश्रम के सारे मिट्टी के पात्र तोड़कर सारा अन्न समाप्त कर दिया, आश्रम की वाटिका उजाड़ डाली, ऋषियों के समस्त वल्कल वस्त्र और ग्रंथ कुतर दिए।
आश्रम की सभी उपयोगी वस्तुएं नष्ट हो जाने के कारण पराशर ऋषि बहुत दुखी हुए और अपने पूर्व जन्म के कर्मों को कोसने लगे कि किस अपकर्म के फलस्वरूप मेरे आश्रम की शांति भंग हो गई है। अब इस चूहे के आतंक से कैसे निजात मिले?
तब पराशर ऋषि श्री गणेश की शरण में गए। तब गणेश जी ने पराशर जी को कहा कि मैं अभी इस मूषक (ganesh vahan rat) को अपना वाहन बना लेता हूं। गणेश जी ने अपना तेजस्वी पाश फेंका, पाश उस मूषक का पीछा करता पाताल तक गया और उसका कंठ बांध लिया और उसे घसीट कर बाहर निकाल गजानन के सम्मुख उपस्थित कर दिया। पाश की पकड़ से मूषक मूर्छित हो गया। मूर्छा खुलते ही मूषक ने गणेश जी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा।
गणेश जी मूषक की स्तुति से प्रसन्न तो हुए लेकिन उससे कहा कि तूने ब्राह्मणों को बहुत कष्ट दिया है। मैंने दुष्टों के नाश एवं साधु पुरुषों के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है, लेकिन शरणागत की रक्षा भी मेरा परम धर्म है, इसलिए जो वरदान चाहो मांग लो।
ऐसा सुनकर उस उत्पाती मूषक का अहंकार जाग उठा, बोला, मुझे आपसे कुछ नहीं मांगना है, आप चाहें तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं। मूषक की गर्व भरी वाणी सुनकर गणेश जी मन ही मन मुस्कराए और कहा, यदि तेरा वचन सत्य है तो तू मेरा वाहन (Vehicle) बन जा।
मूषक के तथास्तु कहते ही गणेश जी तुरंत उस पर आरूढ़ हो गए। अब भारी भरकम गजानन के भार से दबकर मूषक को प्राणों का संकट बन आया। तब उसने गजानन से प्रार्थना की कि वे अपना भार उसके वहन करने योग्य बना लें। इस तरह मूषक का गर्व चूर कर गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया।